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भारत-चीन के मध्य शीत युद्ध के चलते माले की पौ बारह

200 मिलियन डॉलर की लागत से बना है चीन-माले मैत्री सेतु

 

भारत-चीन के संबंध हमेशा से एक-दूसरे के प्रति अविश्वास लिए रहे हैं। नेहरू के पंचशील सिद्धांत को धता बताने वाला चीन अपनी आतंरिक समस्याओं से निपटने के लिए एक बार फिर से भारत संग उलझने की नीति पर काम करने लगा है। पाकिस्तान के साथ-साथ उसने भारत के अन्य पड़ोसी देशों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर डाली है। दशकों से भारत की मदद से आगे बढ़ने वाला नेपाल अब पूरी तरह से चीन परस्त हो चुका है। चीन ने कई अरब डॉलर का निवेश कर नेपाल संग भारत की मित्रता को दुश्मनी की हद तक पहुंचा डाला है। अब उसका अगला टारगेट हिंद महासागर में स्थित देश माले है।

माले के भारत संग प्रगाढ़ रिश्तों को प्रभावित करने में वह कुछ हद तक सफल भी हो चुका है। सामरिक और आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए महत्वपूर्ण माले में चीन ने कई खरब डॉलर का निवेश कर केंद्र सरकार की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल 2008 तक माले की सत्ता में तीस बरस से काबिज तानाशाह अब्दुल क्यूम का झुकाव भारत की तरफ था। 2008 में पहली लोकतांत्रिक सरकार के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद भी भारत के विश्वस्त थे। 2013 में लेकिन अब्दुलाह यामीन के राष्ट्रपति बनते ही हालात बदल गए। यामीन भारत के बजाए चीन की तरफ हो गए। बड़े पैमाने में चीन ने माले में इन्वेस्ट करना यामीन के शासनकाल में किया।

पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम (भारत परस्त)
पूर्व राष्‍ट्रपति मोहम्‍मद नशीद (भारत परस्त)
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन (चीन परस्त)
इब्राहिम मोहम्मद सोलिह (भारत परस्त)

 

 

 

 

 

 

 

चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी ‘बेस्ट एंड रोड इनिशि्एटिव’ (बीआरआई) के जरिए माले को अपनी तरफ आकर्षित करने का काम किया। 2011 तक चीन का माले की तरफ कोई ध्यान नहीं था। पहली बार उसने 2011 में अपना दूतावास यहां खोला। 2014 में चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने माले की यात्रा की। तब तक भारत के मित्र मोहम्मद नशीद सत्ता से बाहर और अब्दुलाह यामीन सत्ता में काबिज हो चुके थे। जिनपिंग ने माले और उसके एक महत्वपूर्ण द्वीप हुलहुली को जोड़ने के लिए दोनों टापुओं के मध्य एक पुल का निर्माण 2 करोड़ डॉलर की लागत लगाकर कर डाला। इसके बाद तो चीनी इन्वेस्टमेंट की बरसात होने लगी। एक अनुमान के मुताबिक चीन ने 17 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर अब तक माले में निवेश कर डाले है। 2018 में अब्दुलाह यामीन को चुनाव में परास्त कर राष्ट्रपति बने इब्राहिम मोहम्मद सोलेह सरकार ने इस पूंजी निवेश में भारी धांधली की जांच में दोषी पाए गए पूर्व राष्ट्रपति को जेल में डाल दिया है। उन्हें पांच वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है।

सोलेह भारत के करीबी रहे मोहम्मद नशीद की विदेश नीति पर अमल करते नजर आ रहे हैं। चीन के बजाए उनका प्रयास भारत संग अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने का है। मोदी सरकार भी अब अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को अमल में लाते हुए माले में भारतीय पूंजी निवेश को बढ़ाने में जुट गई है। चीन द्वारा बनाए गए पुल का जवाब भारत द्वारा पांच सौ मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से 6.7 किलोमीटर समुद्री पुल बना देने जा रहा है। चीन के पुल की कुल लागत 200 मिलियन डॉलर और लंबाई मात्र 2.1 किलोमीटर थी। इतना ही नहीं सोलेह के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत अब तक 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय मदद कर चुका है। सोलेह के सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1.4 बिलियन डॉलर के राहत पैकेज का एलान कर विदेश नीति के विशेषज्ञों को चौंकाने का काम किया था। इस सहायता के कुछ समय बाद ही 500 मिलियन डॉलर की लागत से बनने वाले पुल के जरिए माले के तीन टापुओं को आपस में जोड़ दिया जाएगा। भारत सरकार की माले में बढ़ती सक्रियता से चीन विचलित है। माले सरकार पर चीन ने ऋण के रूप में दिए गए धन की वापसी की डिमांड कर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।

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