ईरान और सऊदी अरब करीब सात वर्षों के बाद एक बार फिर राजनयिक संबंधों को स्थापित करने जा रहे हैं । दोनों देशों की ओर से उठाए गए इस कदम को ऐतिहासिक माना जा रहा है। इनके बीच संबंधों को स्थापित करने की भूमिका चीन द्वारा निभाई गई है। गौर करने वाली बात है कि सऊदी अरब एक सुन्नी बहुलता वाला देश है और ईरान शिया बहुलता वाला । जिससे इन दोनों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है। इन दोनों मुल्कों के बीच जारी दुश्मनी का असर पूरे मध्य पूर्व दिखाई देता है।
दोनों देश किसी न किसी कारण वस एक दूसरे के विरोध में ही खड़े दिखाई देते हैं। यमन में हौथी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन मिलता रहा है तो वहीं ईरानी सरकार का साथ देने वाले सैन्य गठबंधन को सऊदी अरब का। इसके अलावा लेबनान, सीरिया और इराक जैसे देशों के अंदर जारी लड़ाई में ईरान एक गुट के साथ रहा है तो सऊदी अरब दूसरे गुट के साथ। लेकिन ईरान और सऊदी अरब के बीच दुश्मनी की खाई तब और गहरी हुई जब वर्ष 2016 में सुन्नी बहुलता वाले सऊदी अरब ने 46 लोगों समेत एक शिया मौलाना धर्म गुरु को फांसी देदी।परिणाम स्वरूप ईरान के तेहरान में सऊदी अरब के दूतावास पर शिया प्रदर्शनकारियों ने धावा बोल दिया। जिससे सऊदी अरब ने तेहरान से अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया। इसके बाद इन दोनों मुल्कों के बीच राजनयिक संबंध टूट गए।
लेकिन हाल ही में खबरों के मुताबिक दोनों देशों ने सात वर्षों के बाद राजनयिक संबंधों को स्थापित किया है। अगले दो महीनों के अंदर दोनों देश अपने- अपने दूतावास खोलेंगे। जिससे माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। इसी संदर्भ में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच बैठक भी तय हुई है। सऊदी अरब और ईरान ने एक दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न देने और एक दूसरे की संप्रभुता के सम्मान का भरोसा दिया है। ईरान और सऊदी अरब के मध्य स्थापित हो रहे संबंधों से संभावना जताई जा रही है कि मिडिल ईस्ट में दोनों देशों की आपसी खींचतान खत्म होने से सुरक्षा का बेहतर माहौल बन सकेगा। इससे यमन, सीरिया, लेबनान इराक जैसे देशों की अंदरूनी लड़ाई पर भी एक हद तक नियंत्रण लग सकेगा।
यह भी पढ़ें : सऊदी अरब ने बदले नागरिकता के नियम