दुनियाभर में सिर्फ 53 ऐसे देश हैं, जहां किसी अपराध के लिए मौत की सजा दी जाती है। भारत भी इन 53 देशों में शामिल है। दुनिया के 142 देशों ने किसी भी तरीके से मौत की सजा का प्रावधान खत्म कर दिया है। हाल ही में अफगानिस्तान समेत ईरान में मौत सजा में बढ़ोतरी पाई गई है। अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता आने के बाद से ही वहां सार्वजनिक तौर पर मौत की सजा दी जाती है। इसके अलावा हर छोटे से बड़े अपराध में लोगों सजा के रुप में पीटा जाता है। इसी संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें कहा गया है कि पिछले 6 महीनो के अंदर अफगानिस्तान में तालिबान ने तीन सौ से भी ज्यादा लोगों को सजा के रूप में पीटा है। इस अवधि में कम से कम 274 पुरुष ,58 महिलाओं और दो लड़कों को सार्वजनिक रुप से कोड़े मारने की सजा या पीटने की सजा दी गई। जिसमें हर व्यक्ति को 30 से 39 बार पीटा गया। अधिकतर लोगों को जिन अपराधों के लिए सजा दी गई उनमें विवाह होने के बावजूद संबंध बनाना ,घर से भाग जाना , चोरी , समलैंगिकता , शराब पीना , धोखाधड़ी और नशीले पदार्थों की तस्करी शामिल हैं। अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के सहायता मिशन में मानवधिकार प्रमुख फियोना फ्रेजर के कहने मुताबिक तालिबान द्वारा दी जा रही इस तरह की सजा शारीरिक दंड यातना के खिलाफ संधिपत्र का उलंघन है और यह बंद होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र मौत की सजा का मजबूती से विरोध करता है और इस पर तुरंत प्रतिबंध लगना चाहिए। गौरतलब है कि इस अवधि में मौत की सजा की एक खबर मिली है। जिसमे कोर्ट के निर्देश से एक व्यक्ति को सार्वजनिक तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में मौत की सजा दी गई। इस व्यक्ति को चाकू मार कर जान से मार देने का दोषी पाया गया था।
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट का जवाब देते हुए तालिबान विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अपराधियों को इस्लामी कानून के तहत सजा दी गई है। मंत्रालय के अनुसार लोगों के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के लिए सजाओ की जरूरत है। तालिबान के अनुसार प्रत्येक राजनीतिक तंत्र के अपने मानक और तरीके होते हैं जो उसे दूसरे तंत्रों से अलग बनाते हैं। इस्लामी अमीरात अपनी सभी गतिविधियां इस्लाम धर्म की रोशनी में निभा रहा है और उसके प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। तालिबान ने इस तरह की सजाएं देना करीब दो साल पहले ही शुरू कर दिया था। हालांकि सत्ता में आने से पहले तालिबान ने वादा किया था कि 1990 के दशकों के अपने शासन के मुकाबले ज्यादा नरम शासन इस बार बरतेगा।
संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट मुताबिक दोषियों को कोड़े मारने का पहला मामला अक्टूबर 2021 में कपीसा राज्य से सामने आया था। उस मामले में एक पुरुष और एक महिला को विवाहेतर संबंध बनाने का दोषी पाया गया था। उन्हें धार्मिक गुरुओं और स्थानीय तालिबान अधिकारियों की मौजूदगी में लोगों के सामने सौ -सौ बार कोड़े मारे गए थे। इसके बाद दिसम्बर 2022 में भी तालिबान के अधिकारीयों ने हत्या के दोषी पाए गए एक व्यक्ति को मौत की सजा दी थी। फाराह प्रान्त में तालिबान के आदेश पर सैकड़ों लोगों के सामने मृतक के पिता द्वारा उस व्यक्ति को गोली मार दी गई थी। बीते कुछ दिनों पहले जारी किए गए एक वीडियो मैसेज में तालिबान के उप मुख्य न्यायाधीश अब्दुल मालिक हक्कानी ने कहा था कि तालिबान के सुप्रीम कोर्ट ने सत्ता हासिल करने के बाद प्रतिशोध के 175 फैसले दिए हैं। जिसके तहत पीड़ित या उसके रिश्तेदार को अपराध करने वाले को सजा देने का अधिकार दिया जाता है। हक्कानी के मुताबिक इन 175 फैसलों में ‘कोड़े मारने ‘ के 79 मामले और पत्थर से मारने के 37 मामले शामिल हैं। साल 2001 में अमेरिका के हमले के बाद सत्ता से बाहर हो जाने के बाद भी तालिबान ने उन इलाकों में इस तरह की सजा जारी राखी जहां उसका नियंत्रण था। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2010 से अगस्त 2021 के बीच तालिबान ने इस तरह के 182 फैसले दिए, जिनकी वजह से 213 लोगों की मौत हुई और 64 लोग घायल हुए।
दो हफ्तों में कई लोगों को दी गई मौत की सजा
गौरतलब है कि केवल अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि ईरान में भी मौत की सजा देने में बढ़ोतरी होती जा रही है। तेहरान के एक मानवाधिकार समूह ने दावा किया है कि पिछले 10 दिनों में ईरानी शासन ने हर 6 घंटे में एक व्यक्ति को फांसी दी है। ईरान ह्यूमन राइट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में अब तक 194 लोगों को मौत की सजा दी जा चुकी है । पिछले दो हफ्तों में ईरान में मारे गए 42 लोगों में से आधे कथित तौर पर ईरान-पाकिस्तान सीमा पर बलूचिस्तान क्षेत्र से थे। उन 42 में से ज्यादातर को ड्रग्स के आरोपों में मार दिया गया। गौरतलब है कि ईरानी शासन पर पहले भी मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बावजूद, दोहरी नागरिकता वाले कई ईरानियों को भी मृत्युदंड दिया गया है। स्वीडिश-ईरानी दोहरी नागरिकता वाले हबीब फ़राजुल्लाह चाब को शनिवार को मार दिया गया जिसकी स्वीडन सरकार ने कड़ी निंदा की है। ईरान ने 2022 में कम से कम 582 कैदियों को फांसी दे दी जो 2015 के बाद से सबसे अधिक संख्या है। 2021 में यही आंकड़ा काफी कम 333 था।