24 सितंबर 2021 रूस को की पर्म स्टेट यूनिवर्सिटी में एक 18 साल के युवक ने ट्रोमैटिक हथियार से गोलीबारी कर आठ की जान ले ली| बताया जा रहा है कि गोलीबारी के समय यूनिवर्सिटी में 3 हजार से अधिक विद्यार्थी मौजूद थे।अचानक हुए हमले की गूँज से यूनिवर्सिटी में अफरा तफरी मच गई। जिसके बाद वहां मौजूद शिक्षक और विद्यार्थियों ने खुद को कमरों में बंद कर लिया। एक रूसी न्यूज़ वेबसाइट पर मौजूद वीडियो में विद्यार्थी दो मंज़िला ऊँची खिड़कियों से कूदकर भागते नजर आ रहे हैं । ट्रोमैटिक हथियार का इस्तेमाल कर लोगों की जान लेने वाले की पहचान यूनिवर्सिटी के 18 वर्षीय छात्र के रूप में की जा रही है। इस हमले में आठ की मौत होने और कईयों के गंभीर रूप से घायल होने की बात सामने आयी है। हमलावर स्वयं भी पुलिस संग हुई गोलाबारी में मारा गया है।
माना जाता है कि युवा पीढ़ी देश का भविष्य होती है। परन्तु विदेशों में सबसे ज़्यादा मानसिक तनाव से जूझने वाले ज़्यादातर युवा ही हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका सरीखे विकसित देशों में परिवार नामक संस्था पूरी तरह समाप्त हो चली है। माता-पिता अपनी नौकरी अथवा व्यापार में व्यस्त होने के चलते अपने बच्चों संग समय व्यतीत नहीं कर पाते हैं। जिसकी वजह से छोटी उम्र में ही बच्चे अकेले रह जाते हैं और अपना समय वीडियो गेम्स और अलग-अलग तरह की सोशल वेबसाइट्स पर समय बिताते हैं। वह जिस अकेलेपन का शिकार हो रहे होते हैं उसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। उनके भीतर पल रहे गुस्से और निराशा से उनके मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव पड़ता है और उसी के प्रभाव से प्रभावित होकर वह छोटी उम्र में ही बड़े-बड़े हिंसक कदम उठा लेते हैं।
विकसित कहलाये जाने वाले देशों में हुआ हिंसा का यह कोई पहला वाक्या नहीं है| अमेरिका में तो कई बार इस प्रकार कि गोलीबारी की घटनाएं होती आई हैं। वर्ष 2018 में अमेरिका के ही राज्य टेक्सास में एक स्कूल में गोलीबारी से दस लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। कई लोग उस घटना के वक्त घायल भी हुए थे। घटना को अंजाम देने वाला कोई आतंकवादी नहीं बल्कि वह भी एक 17 वर्षीय छात्र था।अनेक बार विदेशी स्कूलों और सार्वजानिक जगहों पर होती हिंसा की घटनाओं ने विदेशी अख़बारों में एक विशेष जगह बना ली है। वर्ष 2018, फरवरी महीने में ही फ्लोरिडा हाई स्कूल में 17 लोगों की गोली मारकर हत्या होने के बाद जनता सड़कों पर उतर आई। देश भर में हथियार नियंत्रण कठोर कानूनों की मांग को लेकर प्रदर्शन होने लगे।
