चीन और नेपाल के बीच पिछले दिनों इस कदर घुट रही थी कि मानों दोनों परंपरागत दोस्त हों ,लेकिन बहुत जल्दी ही उनकी दोस्ती में दरार भी पड़ गई है। इसका कारण यह है कि नेपाल से आने वाले सामान पर कोरोना की आड़ में चीन ने अघोषित ब्लाॅकेज लगा दिया है। पिछले दस महीनों से तिब्बत सीमा पर नेपाल के 12 सौ कंटेनर फंसे हुए हैं। यहां तक कि माल फंसने के कारण एक नेपाली कारोबारी राम पौडेल ने आत्महत्या कर ली।
नेपाल से दोस्ती का नाटक करते हुए चीन ने न सिर्फ उसके क्षेत्र हड़पे , बल्कि नेपाल में सियासी संकट को भी गहरा दिया है। अपनी विस्तारवादी नीति से पड़ोसी मुल्कों पर खंजर घोंपने के लिए कुख्यात चीन ने कुछ महीने पहले ही बने अपने ‘दोस्त’ नेपाल को भी नहीं छोड़ा। दोस्ती का नाटक करते हुए पहले तो चीन नेपाल के करीब आया और उसके बाद उसकी घरेलू राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप कर रहा और अब नेपाल से आने वाले सामान पर कोरोना की आड़ में चीन ने अघोषित ब्लाॅकेज लगा दिया है।
माल फंसने के कारण जिस नेपाली कारोबारी ने आत्महत्या की उनके परिजनों के अनुसार कारोबारी राम ने दो करोड़ का लोन लिया था, माल फंसने का कारण वह किस्त नहीं चुका पा रहा था। नेपाल के वित्त मंत्रालय में तैनात एक उच्च पदस्थ अधिकारी का कहना है कि चीनी कस्टम अधिकारी सामान्य तौर पर नेपाली मजदूरों के कोरोना के आरटी-पीसीआर टेस्ट को भी नहीं मान रहे हैं।
लिहाजा हम भूमि मार्ग से माल लाने के लिए व्यापारियों को हतोत्साहित कर रहे हैं। हम उन्हें कोलकाता पोर्ट के रास्ते सामान लाने को कह रहे हैं , क्योंकि, हमें चीन से सहयोग नहीं मिल रहा। हमें बताया गया है कि कोरोना खत्म होने के बाद सामान आगे जाएगा।
कस्टम अधिकारियों के मुताबिक तिब्बत सीमा पर फंसे कंटेनरों में ऊनी कपड़ों के भी कंटेनर हैं। ये माल तिब्बत की राजधानी ल्हासा, शिगत्से, न्यालम, केरूंग आदि में फंसा हुआ है। नेपाली व्यापारियों के अनुसार तिब्बत के शहरों में फंसे हुए माल की कीमत 13 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा है। वित्त मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि यह चीन का अघोषित ब्लाॅकेज है, क्योंकि आपातकाल में भी सप्लाई नहीं रोकी जा सकती। वहीं, माल भेजने के लिए चीनी सीमा शुल्क एजेंटों को रिश्वत देनी पड़ती है, नहीं देने पर चीनी एजेंट माल नहीं भेजता।
कारोबार की दृष्टि से चीन के साथ नेपाल के दो बॉर्डर प्वांइट मुख्य हैं, रसुवागड़ी-केरुंग और टाटोपानी-खासा। टाटोपानी पुराना प्वाइंट है। 2015 में आए भूकंप के बाद से ये बंद था, लेकिन इसे पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेपाल दौरे के बाद खोला गया। केरूंग-रसुवागड़ी को चीन ने इंटरनेशनल बॉर्डर प्वाइंट के तौर पर विकसित किया है। चीन केरुंग के रास्ते नेपाल के सिर्फ 5 कंटेनर्स और टाटोपानी-खासा के जरिए 2 कंटेनर ही जाने दे रहा है।
चीन ने 13 सीमा बिंदु खोलने पर सहमति व्यक्त की थी
पहले 30 से 40 कंटेनर माल प्रतिदिन जाता था। चीन ने मौखिक रूप से नेपाल-चीन के बीच 13 सीमा बिंदु खोलने पर सहमति व्यक्त की थी। लेकिन चीन ने दो सीमाओं पर भी आयात/निर्यात आसान नहीं किया। रसुवागड़ी में तैनात नेपाली कस्टम अधिकारी पुण्य बिक्रम खड़के बताते हैं कि बड़े कारोबारियों ने चीन के शहरों से माल भारत के कोलकाता पोर्ट पर भेज दिया है। कोलकाता पोर्ट के जरिए सामान 35 दिन में चीन से नेपाल वापस आ सकता है। हमें उम्मीद थी इस साल करोड़ों रुपए का राजस्व पैदा होगा, लेकिन अब तक हम 100 करोड़ रुपए के स्तर को भी नहीं छू सके।
टाटोपानी सीमा पर कस्टम अधिकारी लाल बहादुर खत्री की मानें तो इस रास्ते से गए करीब 800 कंटेनर्स तिब्बती हिस्से में फंसे हैं। कस्टम अधिकारियों ने चीन से कंटेनर्स प्राप्त करने के लिए अलग से एक यार्ड बनाया है। यहां नेपाली वर्कर्स को तैनात किया गया है। इन्हें हेल्थ प्रोटोकॉल से लैस किया गया है। लेकिन चीनी अधिकारी कोरोना का डर बताते हुए कंटेनर भेजने में आनाकानी कर रहे हैं।