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ओली को हटाने में जुटी कांग्रेस

नेपाल में कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड और जनता समाजवादी पार्टी के सहयोग से सरकार बनाने की कोशिश में है, लेकिन यह आसान काम नहीं होगा। अंततः देश में चुनाव कराना पड़ सकता है

नेपाल में बीते साल दिसंबर में प्रतिनिधि सभा को निलंबित करने के बाद से खड़ा हुआ सियासी संकट अभी टला नहीं है। इस बीच काफी समय के बाद नेपाली कांग्रेस ने देश में जारी राजनीतिक संकट के बारे में अपना रुख साफ किया है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने फैसला कर लिया है कि वह प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को उनके पद से हटाने की कोशिश में शामिल होगी। साथ ही वह अपने नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश   रेगी। पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) और जनता समाजवादी पार्टी ने नेपाली कांग्रेस के इस रुख का स्वागत किया है। इसे इस बात का संकेत माना जा रहा है कि ये दोनों पार्टियां नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा को सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन दे सकती हैं। नए सियासी समीकरणों के जन्म लेेने के बावजूद यह गारंटी नहीं है कि देश में नई सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है। नेपाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष बिमलेंद्र निधि ने कहा है कि माओवादी सेंटर और जनता समाजवादी पार्टी अगर समर्थन देते हैं, तो इसमें कोई शक नहीं है कि नेपाली कांग्रेस ओली को हटाने की पहल करेगी। उस हाल में पार्टी अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगी। निधि ने ध्यान दिलाया कि पहले जनता समाजवादी पार्टी के मन ना बना पाने के कारण ओली को हटाना संभव नहीं हुआ था। इस पार्टी के संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में 32 सदस्य हैं। ओली को समर्थन देने या न देने के सवाल पर जनता समाजवादी पार्टी में मतभेद रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष महंथ ठाकुर के नेतृत्व वाले खेमे को ओली के करीब माना जाता है। उसकी ओली के साथ बातचीत भी चलती रही है। उधर उपेंद्र यादव और बाबूराम भट्टराई के नेतृत्व वाला खेमा ओली से हाथ मिलाने का विरोधी है।

जानकारों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का 23 फरवरी का फैसला नहीं आया होता, तो नेपाली कांग्रेस के रुख तय करने के बाद देश की सियासी सूरत साफ हो जाती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक सत्ताधारी पार्टी के माधव नेपाल खेमे की ओली के नेतृत्व वाले गुट के साथ बने रहने की अनिवार्यता बन गई। इससे पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या कम रह गई। ऐसे में अब नेपाली कांग्रेस, दहल खेमा और जनता समाजवादी पार्टी तीनों मिलकर बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं। गौरतलब है कि अभी तक दहल के नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी ने ओली के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया है। सुप्रीम कोर्ट के 23 फरवरी के फैसले के तहत की गई व्याख्या के मुताबिक माओवादी सेंटर पार्टी ने ये समर्थन 2018 में ओली सरकार को दिया था। कोर्ट ने व्याख्या इसलिए की क्योंकि उसने दहल, माधव नेपाल और ओली खेमों के विलय से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाए जाने को अवैध ठहरा दिया था। इस व्याख्या के मुताबिक ओली के नेतृत्व वाली सरकार सीपीएन- यूएमएल पार्टी की सरकार है।

जनता समाजवादी पार्टी ने कहा है कि उसने नेपाली कांग्रेस के सामने कुछ शर्तें रखी हैं। अगर वह उन्हें मान लेती है, तो वह उसे अपना समर्थन देगी। पार्टी ने कहा है कि इस बीच अगर माओवादी सेंटर ने समर्थन वापस ले लिया, तो उसके सामने नेपाली कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने की मजबूरी भी बन सकती है। इस पेंच दर पंेच को देखते हुए ज्यादातर विशेषज्ञ यही मान रहे हैं कि अगले जून-जुलाई तक संसदीय चुनाव कराने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। नेपाली कांग्रेस के नेता रमेश पोखरियाल ने कहा भी है कि पार्टी को इसी सदन में सरकार का नेतृत्व करने के बजाय अगले चुनाव की तैयारी करनी चाहिए। गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने अप्रैल में चुनाव कराने की लगभग पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन सदन भंग कराने के ओली सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। उसके बाद नए हालात पैदा हो गए। ये हालात इतने उलझे हुए हैं कि नए चुनाव के बिना कोई समाधान निकलता नहीं दिखता।

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएन-यूएमएल) ने पूर्व प्रधानमंत्री तथा पार्टी में प्रतिद्वंद्वी गुट के नेता माधव कुमार नेपाल और भीम रावल को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निलंबित कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री नेपाल और उपाध्यक्ष रावल को जारी किए गए दो अलग-अलग पत्रों में पार्टी ने कहा कि दोनों को छह महीने के लिए निलंबित किया गया है। पत्र में कहा गया है कि यह कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोपों पर आपका जवाब संतोषजनक नहीं था। यूएमएल के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री ओली द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है, ‘यदि आप पार्टी विरोधी गतिविधियों में भविष्य में हिस्सा नहीं लेते हैं तो निलंबन की अवधि को कम भी किया जा सकता है।’ माधव नेपाल और रावल ने पिछले सप्ताह पार्टी के संसदीय दल की बैठक का बहिष्कार किया था। ज्ञात हो कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों ओली की कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल और प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के 2018 में हुए विलय को खारिज कर दिया था।

इन दोनों से ही पार्टी के नाम का अधिकार छीनकर ऋषि कुमार कट्टेल को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का चेयरमैन माना था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से प्रधानमंत्री ओली को थोड़ा लाभ हुआ है, लेकिन प्रचंड को ज्यादा नुकसान हुआ था। निर्णय के बाद प्रचंड का साथ दे रहे पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और झालानाथ खनल सहित कुछ सांसदों को ओली की पार्टी में जाना पड़ा था। ये सभी ओली की पार्टी के ही सिंबल से लड़े थे, ऐसी स्थिति में अलग होने पर उनकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। उस समय माधव कुमार ने कहा था कि हम दिल बड़ा करके जा रहे हैं, लेकिन हमारा संघर्ष जारी रहेगा। अब ओली और प्रचंड दोनों के ही दल ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद चुनाव आयोग में पंजीकरण कराने के लिए आवेदन किया है। उल्लेखनीय है कि नेपाल की प्रतिनिधि सभा में सदस्यों की संख्या 275 है। 2017 के चुनावों में ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल ने 121 सीटें जीती थीं, जबकि प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने 53 सीटों पर जीत हासिल की थी।

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