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बांग्लादेश पर छाए आर्थिक संकट के बादल

पिछले करीब दो साल से भी ज्यादा समय से कोरोना महामारी से जहां दुनिया अभी उभरी भी नहीं कि रूस – यूक्रेन युद्ध से दुनियाभर में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। ऐसी स्थिति में पड़ोसी देश श्रीलंका जहां आर्थिक संकट के चलते दिवालिया हो गया है वहीं अब बांग्लादेश में भी भारी आर्थिक संकट का दौर चरम पर है। 

दरअसल,बड़े पैमाने पर कई परियोजनाओं के लिए बांग्लादेश ने विदेशी कर्ज लिया हुआ है। देश  के लोगों को डर है कि देश को कहीं श्रीलंका जैसे हालातों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि बांग्लादेश में व्यापार घाटे के साथ विदेशी कर्ज का बोझ भी बैठता ही जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश ने वित्तीय वर्ष 2021-2022 के पहले लगभग 9 महीनों में 61.52 डॉलर की कीमत के सामान का आयात किया था। जो पिछले साल इसी अवधि में किए आयात की तुलना में यह 43.9 फीसदी की बढ़ोत्तरी थी। लेकिन दूसरी तरफ निर्यात की गति धीमी रही और इसमें सिर्फ 32.9 फीसदी का इजाफा हुआ,और प्रवासी बांग्लादेशियों का भेजा धन, जो कि विदेशी पूंजी का मुख्य स्रोत है, उसमें भी 2022 के पहले चार महीनों में पिछले साल से 20 फीसदी यानी सात अरब डॉलर की गिरावट पाई गई है। 

चरम पर है ‘विदेशी मुद्रा भंडार 



एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेशी अर्थशास्त्री मुइनुल इस्लाम का कहना है कि आने वाले वर्षो में व्यापार का घटा और बढ़ सकता है क्योंकि देश में निर्यात की तुलना में आयात ज्यादा हो रहा है। बांग्लादेश का आयात इस वर्ष 85 अरब डॉलर का हो जाएगा। जबकि निर्यात 50 अरब डॉलर से ज्यादा का नहीं होगा और 35 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को सिर्फ विदेशों से भेजे गए धन से नहीं भरा जा सकता है। इस वर्ष हमें करीब 10 अरब डॉलर की कमी से जूझना पड़ेगा। रिपोर्ट में  अर्थशास्त्री मुइनुल इस्लाम ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि पिछले 8 महीनों में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 48 अरब डॉलर से गिरकर 42 अरब डॉलर पर आ गया है।और  आने वाले समय यह और  गिर सकता है।अगर निर्यात के विपरीत अधिक आयात का ट्रेंड बना रहा तो हम विदेशों से भेजे गए धन से अंतराल को पाटने में नाकाम रहे, तो हमारा विदेशी मुद्रा भंडार अगले तीन से चार साल में खतरनाक स्तर तक लुढ़क जाएगा।अगर  ऐसा हुआ तो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले, राष्ट्रीय मुद्रा की कीमत और घट जाएगी। 

गौरतलब है कि बांग्लादेश भी श्रीलंका की तरह हाल के वर्षों में परियोजनाओं के लिए विदेशी कर्ज लिए है। आलोचक इन्हे सफेद हाथी प्रोजेक्ट कहते हैं इसलिए कि वे ना सिर्फ महंगे हैं बल्कि लाभहीन भी हैं।अर्थशास्त्री मुइनुल इस्लाम के मुताबिक जब कर्ज चुकाने का समय आएगा तो ये गैरजरूरी प्रोजेक्ट मुसीबत बनकर बांग्लादेश के सामने आएगा। इसके साथ उन्होंने बताया कि,महज 2400 मेगावॉट क्षमता वाले एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए। बांग्लादेश ने रूस से 12 अरब डॉलर का कर्ज लिया है। इस क़र्ज़ को 20 वर्षो में चुका सकते है लेकिन 2025 से, हर वर्ष साढ़े 56 करोड़ डॉलर की किस्त भरनी होगी,इसलिए ये प्रोजेक्ट एक बहुत खराब सफेद हाथी प्रोजेक्ट है।

अर्थशास्त्री मुइनुल इस्लाम का अनुमान है कि बांग्लादेश को कुल मिलाकर 2024 से विदेशी कर्ज वापसी की किस्त के रूप में प्रति वर्ष चार अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ सकता है। अर्थशास्त्री मुइनुल इस्लाम के आलावा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम  के ढाका कार्यालय में तैनात बांग्लादेशी अर्थशास्त्री नाजनीन अहमद का कहना है कि बांग्लादेश सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि परियोजनाओं पर और खर्च ना हो और उन्हें पूरा करने में देरी ना की जाए। सरकार को विशाल परियोजना कार्य को सावधानी से पूरा करना चाहिए। अगर समय पर काम को पूरा नहीं कर पाएंगे तो देश को क़र्ज़ चुकाने में बहुत समय लगेगा।

 ‘कीमतों की मार गरीबों पर’

किसी देश में क़र्ज़ और घाटे की समस्या का प्रभाव वाला की बुनियादी चीजों पर पड़ती है। बांग्लादेश में भी रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद महंगाई बढ़ी है।और बांग्लादेश इस मामले में खासतौर पर असहाय रहा है क्योंकि वह खाद्य तेल, गेहूं और दूसरे खाद्य पदार्थों के अलावा ईंधन भी बड़ी मात्रा में आयात करता है। अर्थशास्त्री नाजनीन अहमद के  मुताबिक, आसमान छूती कीमतों से गरीब लोग सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। सरकार को सस्ती दरों में उपभोक्ता सामान गरीबों को मुहैया कराना चाहिए। सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के तहत उन्हें अतिरिक्त वित्तीय सहायता भी दी जानी चाहिए। वही अपने देश के भविष्य को लेकर आशावादी हैं। उनका कहना है कि कोविड महामारी की वजह से पस्त पड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था में नई जान आते ही मौजूदा आर्थिक सूचकों में सुधार आ सकता है। मिडिया से बात – चित के दौरान उन्होंने कहा है कि कोविड की रिकवरी वाले चरण में हमने पूरी दुनिया में मुद्रास्फीति को देखा है। यूक्रेन युद्ध से उसमें और अनिश्चितता आई है।  श्रीलंका के आर्थिक संकट ने भी डर बनाया है। फिर भी, अगले कुछ वर्षों में कुछ बड़ा नहीं हुआ तो वैश्विक अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ जाएगी।

 शेख हसीना ने लोगों से की मितव्ययता की अपील’

प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने खर्चों में कटौती के लिए कई कदम उठाए हैं और विदेशी मुद्रा भंडार को बचाए रखा है।सरकार ने अधिकारियों के विदेशी दौरे रद्द करने का फैसला किया है और उन परियोजनाओं को भी स्थगित किया है जो कम महत्त्व की हैं और जिनमें दूसरे देशों से आयात की जरूरत होती है। शेख हसीना ने लोगों से भी अपील की है कि वे फिजूलखर्ची ना करें, और किफायत बरतें।  बांग्लादेश के नियोजन मंत्री एमए मनन ने भी एक प्रेस कॉंफ्रेंस में कहा कि, प्रधानमंत्री ने सरकारी अधिकारियों को खर्चों में संयम रखने का निर्देश दिया है।

इस पर भी मुइनुल इस्लाम कहते हैं कि सरकार को आर्थिक प्रबंधन में ओर अत्यधिक सावधानी बरतनी होगी।क्योंकि आसमान छूती कीमतों के चलते चौतरफा हाहाकार मचा है जो पहले से मौजूद राजनीतिक तनावों को और भड़का सकता है। देश का पिछला चुनाव अच्छा नहीं रहा था। उसमे फर्जीवाड़ा हुआ था। अगले दो वर्षो में फिर देश में आम चुनाव होंगे। लिहाजा राजनीतिक हालात तो वैसे भी तनावपूर्ण बनी रहेगी। ऊपर से आर्थिक अनिश्चितता, आग में घी का काम कर सकती है।

गौरतलब है कि विशेषज्ञों को निकट समय में आर्थिक संकट दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन उनका विश्वास है कि श्रीलंका के आज जैसे हालात से बचने के लिए बांग्लादेश को अच्छे प्रशासन और वित्तीय प्रबंधन की जरूरत है।

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