दुनिया के लिए ग्लोबल वार्मिंग कितना बड़ा खतरा साबित हो सकता है लगातार इस मुद्दे पर चेतावनी दी जाती रही है। लेकिन बावजूद इसके इन प्रयासों का कोई असर नजर नहीं आता है। इसी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अब जो तस्वीर सामने आ रही है वो बेहद भयावह है। दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव आए दिन देखने को मिलते हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इसकी भयावहता और भी भीषणता कैसी होगी इसका एक ताजा उदाहरण इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता है।
इंडोनेशियाई सरकार ने अपनी राजधानी को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है। इंडोनेशिया बोर्नियो द्वीप पर अपनी नई राजधानी बना रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौजूदा राजधानी यानी जकार्ता में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। इस शहर की आबादी भी काफी हद तक बढ़ गई है। साथ ही इसका एक बड़ा हिस्सा शहर के किनारे जावा सागर में डूब रहा है। इसी वजह से इंडोनेशिया सरकार ने यह फैसला लिया है।
ऐसा केवल जकार्ता के साथ ही नहीं है बल्कि दुनिया के कई बड़े शहर पानी के अंदर समा जाएंगे। हालिया समय में जलवायु परिवर्तन को लेकर आईं दो रिपोर्ट चर्चा में हैं। इनमें ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों के लिए आगाह किया गया है। इन रिपोर्ट्स के अनुसार, आगामी 27 वर्षों में कुछ देशों के कई शहर दुनिया के नक्शे पर दिखाई नहीं देंगे। वहीं भारत में चेन्नई और मुंबई जैसे तटीय शहरों के सामने भी ये खतरा है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र के स्तर में लगातार वृद्धि भारत और चीन के साथ-साथ बांग्लादेश, नीदरलैंड, मालदीव और अन्य देशों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और देश के अन्य तटीय शहरों पर बड़े पैमाने पर असर देखा जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई, शंघाई, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता, लागोस, काहिरा, लंदन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स जैसे शहरों को समुद्र के स्तर में वृद्धि से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि बढ़ते समुद्र स्तर से पता चलता है कि मालदीव जैसे निचले तटीय क्षेत्र 2050 तक डूब सकते हैं।
पर्यावरणविद् इंडोनेशिया की नई राजधानी का विरोध
इंडोनेशिया बोर्नियो द्वीप पर अपनी नई राजधानी बना रहा है। इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है। इस क्षेत्र में नया शहर बनाते समय पर्यावरण का पूरा ख्याल रखा जाएगा। साथ ही नवनिर्मित शहर पर्यावरण के अनुकूल है और 2045 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का प्रयास किया जाएगा, ऐसा इंडोनेशियाई सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है। हालांकि, पर्यावरणविदों ने सरकार के इस नए महानगर का विरोध किया है। इस शहर के निर्माण के दौरान बड़ी मात्रा में जंगल को नष्ट किया जाएगा। पर्यावरणविदों द्वारा यह भी दावा किया जा रहा है कि इससे कुछ लुप्तप्राय जानवरों और पक्षियों की प्रजातियों के आवास को खतरा होगा। फिलहाल, नए आबाद शहर में जाने पर रोक है।
राजधानी को स्थानांतरित करने का निर्णय क्यों
इंडोनेशिया की मौजूदा राजधानी जकार्ता में करीब एक करोड़ लोग रहते हैं। इस शहर को सबसे तेजी से डूबने वाला शहर कहा जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि 2050 तक शहर का एक तिहाई हिस्सा पानी के नीचे होगा। इस शहर में पानी की खपत बहुत बढ़ गई है। जलवायु परिवर्तन भी इस शहर को प्रभावित कर रहा है। शहर की हवा और भूजल अत्यधिक प्रदूषित हैं। इस शहर में भीड़ बढ़ गई है। इंडोनेशिया को कंजेशन प्लानिंग और सड़कों पर करीब 4.5 अरब डॉलर खर्च करने हैं। इसी वजह से राष्ट्रपति जोको विडोडो ने जकार्ता शहर में आबादी कम करने के लिए नई राजधानी की अवधारणा का प्रस्ताव रखा है।
नई राजधानी फॉरेस्ट सिटी अवधारणा पर आधारित
इंडोनेशिया की नई राजधानी का नाम ‘नुसंतरा’ होगा। नई राजधानी में इंडोनेशियाई सरकार के सरकारी कार्यालय, भवन और घर होंगे। प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, लगभग 15 लाख सरकारी कर्मचारियों को शहर में स्थानांतरित किया जाएगा। नुसंतरा नेशनल कैपिटल अथॉरिटी के बंबांग सुसानटोन ने इस शहर के बारे में और जानकारी दी है। यह शहर ‘फॉरेस्ट सिटी’ की अवधारणा से साकार होगा। उन्होंने कहा है कि इस नए शहर का उद्घाटन अगले साल इंडोनेशिया के स्वतंत्रता दिवस यानी 17 अगस्त को होने की संभावना है। हालांकि, ऐसी संभावना है कि शहर का निर्माण वर्ष 2045 तक जारी रहेगा।
पर्यावरणविदों द्वारा क्या आपत्तियां
नुसंतरा शहर लगभग 2 लाख 56 हजार हेक्टेयर में बनेगा। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले वनमानुषों, चीतों और वन्य जीवों के आवास नष्ट होने की आशंका है। इस शहर का निर्माण करते समय लगभग पांच गांवों का पुनर्वास किया जा रहा है। वर्तमान में शहर का विस्तार हो रहा है। इसलिए आने वाले समय में भी कई गांवों के उत्थान की संभावना है। इससे पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों के आवास को भी खतरा होने की आशंका है, इसलिए पर्यावरणविद शहर के इस निर्माण पर आपत्ति जता रहे हैं।
इस बीच नए शहर के निर्माण के दौरान स्थानीय लोगों का कोई विरोध नहीं है। इंडोनेशियाई सरकार का दावा है कि विस्थापित लोगों को मुआवजा दिया जा रहा है।