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स्वच्छ ईंधन से बचाई जा सकती है 25 लाख लोगो की जान

एक स्वस्थ जीवन के लिए अच्छा खाना आवश्यक है। जिसके लिए खाना बनाने वाले ईंधन का स्वच्छ होना भी आवश्यक है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार अगर घरों में स्वच्छ ईंधन में का प्रयोग किया जाए तो हर साल वैश्विक स्तर पर करीब 25 लाख लोगों की जानें बचाई जा सकती है। साथ ही अच्छे ईंधन के इस्तेमाल से वायु प्रदूषण के स्तर में कमी होगी। जिसके वजह से करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य में सुधार आएगा।

 

यह रिपोर्ट इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी और अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक ग्रुप द्वारा ‘विजन फॉर क्लीन कुकिंग एक्सेस फॉर ऑल 2030’ नाम से जारी की गई है। रिपोर्ट में स्वच्छ ईंधन के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कई सुझाव भी दिए गए हैं। जिसके द्वारा साल 2030 तक करोड़ों लोगों को खाना तैयार करने के आधुनिक साधनों तक पहुंच प्रदान कर सकते हैं। रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार आज भी दुनिया का हर तीसरा व्यक्ति अपना भोजन बनाने के लिए खुली आग, बुनियादी स्टोव या चूल्हों आदि का इस्तेमाल करता है। इस प्रकार के ईंधनों में मिट्टी का तेल, लकड़ी, कोयला, कंडे या फसलों के बचे अवशेष आदि की जरुरत होती है जिसके जलने से वायु में प्रदुषण की मात्रा बढ़ने लगती है। जो बड़ी मात्रा में घरेलू वायु प्रदूषण की वजह बनता है। जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आंकड़ों को देखा जाये तो पता चलता है कि घरेलू वायु प्रदूषण से हर साल करीब 32 लाख लोगों की जिंदगियां छीन रहा है। जो वर्तमान में वैश्विक स्तर पर असामयिक होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण बना हुआ है।

 

ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषण अधिक

 

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के परिवेश के आधार पर शहरी क्षेत्रों में 14 फीसदी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 52 फीसदी आबादी इन प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन और तकनीकों पर निर्भर है। यह समस्या कमजोर और माध्यम आय वाले देशों में अधिक देखने को मिलती है। इस प्रकार के ईंधनों से फैलने वाले प्रदुषण के संपर्क में आने से स्ट्रोक, हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

 

स्वच्छ ईंधन के प्रयोग से होगी समय की बचत

 

स्वच्छ ईंधन यानि एलपीजी गैस से समय की भी बचत होगी। क्योंकि चूल्हे जैसे ईंधन के प्रयोग के लिए लकड़ी इकट्ठा करने और उपले बनाने जैसी गतिविधियों में ही दिन का आधा समय निकल जाता है। अनुमान के अनुसार इस प्रकार के इंधनों का प्रयोग करने के लिए सामान जुटाने में हर दिन औसतन पांच घंटे का समय लगता है। अधिकतर खाना बनाने का काम महिलाओं को होता है और अगर वह दिन के 5 घंटे इसी काम में गुज़ार देती हैं तो वह को शिक्षा, रोजगार, मनोरंजन या व्यवसाय शुरू करने बारे में अधिक नहीं सोचती। वहीं दूसरी ओर खाना पकाने के साफ-सुथरे, और स्वच्छ साधनों की मदद से एक परिवार हर दिन लगभग डेढ़ घंटे के समय की बचत कर सकता है।

 

दूषित साधनो के प्रयोग में आई कमी

 

रिपोर्ट के अनुसार, भारत, चीन, इंडोनेशिया जैसे कई देशों ने दूषित साधनों पर निर्भरता को कम कर दिया है। भारत में शुरू की गई उज्ज्वला योजना भी इसी का एक उदाहरण है। जिसके तहत 21 मई 2023 तक करीब 9.6 करोड़ कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद भारत में अभी भी करीब 44.8 करोड़, चीन में 18.5 करोड़, बांग्लादेश में 12.8 करोड़ और पाकिस्तान में 11.7 करोड़ लोग खाना पकाने के लिए दूषित साधनों पर निर्भर हैं। हालांकि भारत में इस दिशा में तेजी से प्रगति हो रही है।

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