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भले ही भारत को पड़ोसी मुल्क चीन से 1962 में पहला युद्ध लड़ना पड़ा था। चीन भारत के लिए बड़ी चुनौती भी समझा जाता है, लेकिन आमतौर पर भारतीय सेना का फोकस पाकिस्तान से लगती सीमा पर ही रहा है। अब बीते कुछ सालों में चीन सीमा पर भी तेजी से परिदृश्य बदला है। चीन द्वारा सीमा पर अतिक्रमण, इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और सेना एवं हथियारों की तैनाती में इजाफा किए जाने के चलते भारत की ओर से भी इस मोर्चे पर सतर्कता बढ़ गई है। बीते साल जून माह में लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प देखने को मिली है। तब से भारत और चीन के बीच लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में सीमा विवाद जारी है। इस बीच दोनों देशों के कमांडर स्तर की वार्ताएं हुई। बारहवें दौर की बैठक के बाद सैन्य गतिरोध दूर करने की दिशा में काफी दिनों बाद सकारात्मक संकेत मिले हैं। दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को गोगरा इलाके से पीछे हटाने पर सहमति जताई है।

दरअसल, काफी समय बाद पिछले हफ्ते हुई सैन्य स्तर की 12वें दौर की बातचीत में दोनों पक्षों में पेट्रोलिंग पाइंट 17-ए से पीछे हटने को लेकर समझौता हुआ है। पट्रोलिंग पाइंट 17-ए को गोगरा के नाम से जाना जाता है। इससे पहले इस साल फरवरी में दोनों पक्ष पैंगोंग झील से अपने सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमत हुए थे। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस सिलसिले में कदम उठाया जाएगा। दोनों पक्ष पीपी-15 (हाट स्प्रिंग्स) और डेपसांग सहित टकराव के अन्य बिंदुओं को हल करने के लिए अपनी बातचीत जारी रखेंगे।

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चुशुल- मोल्डो में दोनों देशों के बीच वार्ता हुई थी, जिसके बाद उन्होंने इसी हफ्ते एक संयुक्त बयान जारी किया था। बयान के अनुसार, दोनों पक्षों के बीच सीमा के पश्चिमी इलाके में वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिकों की वापसी पर विचारों का स्पष्ट और गहन आदान-प्रदान हुआ। दोनों पक्षों ने इस बात पर ध्यान दिया कि बैठक का यह दौर रचनात्मक रहा, जिसने आपसी समझ को और बढ़ाया।

बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष मौजूदा समझौतों और प्रोटोकाल के अनुसार शेष मुद्दों को शीघ्रता से हल करने और बातचीत की गति को बनाए रखने पर सहमत हुए। बयान के
मुताबिक, दोनों देश इस बात के लिए राजी हैं कि पश्चिमी सेक्टर में एलएसी पर स्थिरता बनाए रखने के लिए वे संयुक्त प्रयास जारी रखेंगे और शांति बनाए रखने के लिए काम करेंगे।

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