आर्थिक तंगी से जूझ रहा श्रीलंका अपने खर्चों को कम करने के लिए अलग-अलग तरीके आजमा रहा है। अब वहां की सरकार अपने टोक मैकाक बंदरों पर होने वाले खर्चे को कम करने के लिए चीन से मदद लेगी। श्रीलंका के एग्रीकल्चर मिनिस्टर महिंद्रा अमारावीरा ने ये जानकारी दी है।
12 अप्रैल को दिए अपने बयान में उन्होंने बताया कि चीन ने उनसे 1 हजार चिड़िया घरों के लिए बंदरों की मांग की है। इस पर विचार करने के लिए एक कमेटी बनाई गई है। जो एक लाख बंदरों को चीन को बेचने की पूरी योजना बनाएगी।
पर्यावरणविदों का सवाल- क्या चीन मीट के लिए बंदर खरीद रहा?
चीन को मकैक बंदर देने से पहले ही श्रीलंका के पर्यावरणविदों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इनका कहना है कि सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले देश में बंदरों की गणना करानी चाहिए। उन्होंने बंदर खरीदने के चीन के फैसले पर सवाल उठाए हैं।
पर्यावरण पर काम करने वाले जगथ गुनावर्दना ने न्यूज एजेंसी एएफपी को कहा, हम जानना चाहते हैं कि चीन को ये बंदर क्यों चाहिए, क्या वो इन पर कोई रिसर्च करना चाहते हैं, या इन्हें खाने के मकसद से खरीदा जा रहा है। बेशक श्रीलंका में बंदर संरक्षित जानवरों की सूची में नहीं हैं, लेकिन इंटरनेशनल रेड लिस्ट में इन्हें खत्म होने की कगार वाले जानवरों की सूची में शामिल किया गया है।
श्रीलंका में बंदरों की तीन प्रजातियां हैं। इनमें टोक मैकाक बंदरों की तादाद सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका में टोक मैकाक बंदरों की तादाद 20 से 30 लाख के बीच है। जो वहां कई तरह की परेशानियों की वजह बनती जा रही है। इसी के चलते हाल ही के दिनों में श्रीलंका ने कुछ जानवरों को प्रोटेक्टेड यानी संरक्षित जानवरों की सूची से बाहर कर दिया था। इससे वहां के किसानों को इन्हें मारने का परमिट मिल गया।
प्रोटेक्टेड सूची से बाहर किए गए जानवर
1) बंदर
2) मोर
3)सूअर
एग्रीकल्चर मिनिस्टर के मुताबिक श्रीलंका में बंदर और गिलहरियां हर साल 10 करोड़ नारियलों को बर्बाद कर देते हैं। जिससे उन्हें लगभग 157 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। ये बंदर किसानों की फसलों को भी खराब कर देते हैं। ऐसे में वहां अनाज भी खराब होता है।
पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने जमकर कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल करने के बजाय दुरुपयोग ही किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत जैसे देशों से लिए हैं। 2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की। इसके अलावा उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है।
2019 में एशियन डेवलेपमेंट बैंक ने श्रीलंका को एक ‘जुड़वा घाटे वाली अर्थव्यवस्था’ कहा था। जुड़वा घाटे का मतलब है कि राष्ट्रीय खर्च राष्ट्रीय आमदनी से अधिक होना।
श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें, जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए बुरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है। ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से वह ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा है। पिछले 2 वर्षों में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 70% तक घट गया है। श्रीलंका में महंगाई दर 50% से ऊपर है। वहां एक डॉलर की कीमत करीब 323 श्रीलंकाई रुपए तक पहुंच गई है और एक भारतीय रुपए की कीमत 82 श्रीलंकाई रुपए हो गई है।