अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन को पाकिस्तान का सदाबहार मित्र माना जाता रहा है। लेकिन अब दुनिया में कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को मिल रही सफलता के बीच पाकिस्तान के लिए भारी चिंता का विषय है कि चीन के रुख में उसके प्रति जबर्दस्त बदलाव आया है। अब वह आंख मूंदकर पाक का समर्थन नहीं कर रहा है। यह जानते हुए भी कि इमरान खान पाक के प्रधानमंत्री बनने के बाद तीसरी बार चीन की यात्रा कर रहे हैं, जम्मू-कश्मीर के मसले पर चीन की ओर से ऐसा बयान आया जिससे पाक का मायूस होना स्वाभाविक है।

जानकार मानते हैं कि चीन की इस पलटी के साफ संकेत हैं कि कश्मीर मसले पर पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है। फिर चीन की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर है। करीब एक हजार चीनी कपंनियों ने भारत के औद्योगिक पार्कों, ई-कॉमर्स और अन्य क्षेत्रों में अपना निवेश बढ़ाया है। उनका कुल निवेश आठ अरब डालर का है। दक्षिण एशिया में इस समय चीन-भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ऐसे में भला वह पाकिस्तान प्रेम के बहाने अपना नुकसान क्यों करना चाहेगा? उसकी तो कोशिश होगी कि भारत अपने यहां चीनी कंपनियों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करे। इन कंपनियों को अपने यहां काम करने के लिए और अधिक अनुकूल और सुविधाजनक माहौल प्रदान करे। यह तभी संभव होगा जब वह पाकिस्तान के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाएगा। चीन के रवैये में इस बीच आए बदलाव को इसी नजरिये से देखा जा रहा है।

दरअसल, कुछ दिन पहले चीन ने यूएनजीए में कहा था कि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा यूएन चार्टर के तहत सुलझाया जाना चाहिए। लेकिन अब राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा से पहले चीन ने पाकिस्तान को चौंका दिया है। चीन का कहना है कि दोनों देशों को द्विपक्षीय बातचीत से इस मसले को सुलझाना चाहिए। चीन के विदेश मंत्री गेंग शुआंग ने कहा कि जम्मू- कश्मीर पर चीन की नीति साफ और स्पष्ट है। भारत और पाकिस्तान को इस मुद्दे को आपसी बातचीत और समझ से सुलझाने की आवश्यकता है। अगर भारत और पाकिस्तान दोनों देश इस मुद्दे पर किसी सार्थक नतीजे पर पहुंचते हैं तो यह उनके साझा हितों के लिए बेहतर होगा। अंतरराष्ट्रीय समाज के लिए भी यही अच्छा रहेगा।

गौरतलब है कि इस साल पांच अगस्त को जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया तो पाकिस्तान, चीन की शरण में पहुंचा था। चीन ने यूएन की बंद दरवाजे की मीटिंग बुलाई। हालांकि जानकारों की नजर में उस बैठक का कोई अर्थ नहीं था। ये बात अलग है कि पाकिस्तान ने यह कहकर प्रचार शुरू किया कि उसे दुनिया के एक ताकतवर मुल्क का समर्थन है। इसके बाद चीन ने यूएनजीए में कहा कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को चार्टर के हिसाब से सुलझाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दूसरे अनौपचारिक शिखर सम्मेलन से पहले चीनी राजदूत सुन वीदोंग ने भी कहा कि भारत और चीन को क्षेत्रीय स्तर पर संवाद के माध्यम से शांतिपूर्वक विवादों का हल करना चाहिए और संयुक्त रूप से शांति एवं स्थिरता को बुलंद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत और चीन दोनों को मतभेदों के प्रबंधन के मॉडल से आगे जाना चाहिए और सकारात्मक ऊर्जा के संचय के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को आकार देने और साझा विकास के लिए अधिकतम सहयोग की दिशा में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, क्षेत्रीय स्तर पर, हमें शांतिपूर्वक बातचीत और विचार-विमर्श के जरिए विवादों को हल करना चाहिए तथा संयुक्त रूप से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को कायम रखना चाहिए।

चीनी राजदूत ने कहा कि चीन-भारत संबंध द्विपक्षीय आयाम से आगे चले गए हैं और इनका वैश्विक और रणनीतिक महत्व है। दोनों पक्षों को रणनीतिक संचार को मजबूत करना चाहिए, परस्पर राजनीतिक भरोसे को बढ़ाना चाहिए, द्विपक्षीय संबंधों में दोनों नेताओं के स्थिर मार्गदर्शन का भरपूर लाभ लेते हुए दोनों नेताओं के बीच बनी सहमति का ठोस कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।

भारत ने जब जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का फैसला किया, तब भारत और चीन के संबंधों में कुछ तनाव आ गया था। चीन ने भारत के फैसले की आलोचना की और उसके विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी यह मुद्दा उठाया। उसके कुछ दिनों बाद पाकिस्तान में चीन के राजदूत याओ जिंग ने कहा कि चीन कश्मीरियों की मदद के लिए काम कर रहा है ताकि उन्हें उनके मौलिक अधिकार और न्याय मिल सके।

मोदी और शी जिनपिंग के बीच पहला अनौपचारिक शिखर सममेलन वुहान में अप्रैल 2018 में हुआ था। उसके कुछ महीनों पहले ही डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच 73 दिनों तक गतिरोध रहा था। उस सम्मेलन में मोदी और शी ने अपनी सेनाओं को रणनीतिक निर्देश जारी करने का फैसला किया था ताकि संचार को मजबूत किया जाए और परस्पर भरोसा तथा आपसी समझ बन सके।

इस सम्मेलन में परस्पर विकास और समग्र संबंधों का विस्तार सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर वार्ता केंद्रित रही। सीमा से जुड़े दशकों पुराने मामलों पर चीनी राजदूत ने कहा कि पड़ोसियों में मतभेद होना सामान्य बात है और मुख्य बात उन्हें ठीक से संभालने और बातचीत के जरिए उनका समाधान खोजना है। पिछले कई दशकों में चीन- भारत सीमा क्षेत्र में एक भी गोली नहीं चली है और शांति कायम रखी गई है। सीमा का सवाल चीन-भारत संबंधों का केवल हिस्सा है। उन्होंने कहा, ‘हमें इसे चीन-भारत संबंधों के बड़े परिदृश्य में रखने और सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य प्रगति को प्रभावित नहीं करने देने की जरूरत है। चीन और भारत को अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में संचार और समन्वय को मजबूत करना चाहिए।’

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