नेपाल और भारत के संबंध् ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों ही लिहाज से बेहद मजबूत माने जाते हैं। भारत को नेपाल अपना बड़ा भाई मानता आया है। भारत ने नेपाल की मदद हर क्षेत्र में की है और नेपाल भी भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता देता आया है। लेकिन अब चीन इस रिश्ते पर हावी होता नजर आ रहा है।
नेपाल करीब 20,000 तिब्बती शरणार्थी को शरण दिए हुए है। लेकिन नेपाल की मौजूदा वाम सरकार शरणार्थियों पर सख्त रूख अपनाती प्रतीत हो रही है।
6 जुलाई को तिब्बती समुदाय के इलाकों में भारी सुरक्षा बल तैनात थे। यहां दलाई लामा का 84वां जन्मदिन मनाया जाना था। सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थी। लेकिन आखिर में इस आयोजन की अनुमति नहीं मिलने के कारण दलाई लामा का 84 जन्मदिन तिब्बती समुदाय के लोग नहीं बना सके। नेपाल सरकार ने इसके लिए शांति व्यवस्था बिगड़ने का हवाला दिया। इसे चीन का बढ़ता प्रभाव माना जा रहा है।
पिछले दिनों ही नेपाल के शिक्षण संस्थानों में चीनी भाषा को अनिवार्य कर दिया गया था। हलांकि वहां की सरकार द्वारा इस निर्णय से किनारा कर लिया गया। चीन की रणनीति हमेशा से पड़ोसी देशों पर अपना प्रभुत्व कायम करने की रही है। पहले भारत नेपाल का मुख्य रूप से मददगार हुआ करता था। और वहां की अर्थव्यवस्था इसका बड़ा प्रभाव था, लेकिन अब यह ध्ीरे-ध्ीरे कम हो रहा है। चीन अब नेपाल में अपना दबदबा कायम करने की ओर पूर्णरूप से अग्रसर दिखाई दे रहा है।