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महिला सशक्तिकरण में बाधक बनता बाल विवाह

वैसे तो गरीबी बाल विवाह की मुख्य वजहों में से एक है, लेकिन जब वैश्विक महामारी के चलते सारे काम-धंधे ठप पड़े थे तो बाल विवाह की तादाद पहले से भी ज्यादा बढ़ गई, जिसने महिला सशक्तिकरण की राह में कई बाधाएं उत्पन्न कर दी हैं। संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 45 प्रतिशत यानी 29 करोड़ बाल दुल्हनें केवल दक्षिण एशिया में मौजूद हैं

एक कहावत है कि जब हम किसी महिला को शिक्षित करते हैं तो पूरे समाज को शिक्षित करते हैं। इस कथन की तार्किकता इसमें है कि महिला ही परिवार की धुरी होती है। इस धुरी को धारणीय बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण यह है कि उसकी पहुंच न केवल शिक्षा, बल्कि सभी संसाधनों तक सुनिश्चित हो, यदि किसी बालिका को इससे वंचित रखा जाए और उसे सुकुमार अवस्था में विवाह करने पर विवश किया जाए तो यह उसकी संवृद्धि और विकास में बाधक तो होगा ही, साथ ही उसके सामने स्वास्थ्य के गंभीर जोखिम भी उत्पन्न होंगे। दरअसल बाल विवाह की बुराई पीढ़ियों से चली आ रही है जो हानिकारक है। इस प्रथा से निपटने में गरीबी उन्मूलन के प्रयासों से भी मदद मिल सकती है लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। 18 साल की उम्र से पहले शादी करना मानवाधिकार का उल्लंघन है। भले ही इसे रोकने के लिए कानून हैं, फिर भी कई देशों में यह प्रथा जारी है। हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट में पाया गया है कि विश्व की 45 प्रतिशत यानी 29 करोड़ बाल दुल्हनें केवल दक्षिण एशिया में मौजूद हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में बढ़ते कर्ज और कोरोना के मामलों की वजह से स्कूलों की हालत खस्ता होने के कारण पारिवारिक सदस्यों पर नाबालिग लड़कियों की शादी का दबाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। ऐसे में यूनिसेफ ने बाल विवाह को जड़ से खत्म करने की मांग उठाई है। दक्षिण एशिया की यूनिसेफ की डायरेक्टर ‘नोआला स्किनर’ ने एक मीडिया संगठन से बातचीत करते हुए कहा कि ‘दक्षिण एशिया में दुनिया भर में सबसे अधिकतम बाल विवाह होना बेहद ही दुखद है।’

यह रिपोर्ट बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान के 16 अलग- अलग स्थानों पर लोगों से बातचीत कर तैयार की गई है। बातचीत के दौरान पता चला कि कोरोना के दौरान लॉकडाउन के चलते बच्चियों के पास पढ़ने के सीमित संसाधन मौजूद थे ऐसे में
परिजनों के पास एक ही विकल्प मौजूद था वी था विवाह। वहीं विभिन्न देशों में विवाह की कानूनी उम्र अलग-अलग है। जहां भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका में 18 तो वहीं अफगानिस्तान में वैवाहिक उम्र 16 वर्ष है। संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड में एशिया की रीजनल डायरेक्टर ब्योर्न एंडरसन बताती हैं कि शिक्षा के जरिए लड़कियों को मजबूत करने की आवश्यकता है। इस शिक्षा में यौन शिक्षा को शामिल करना बेहद जरूरी है। साथ ही हमें लड़कियों की स्किल डेवलपमेंट पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए तमाम समाजों को साथ आकर बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए आवाज उठानी चाहिए।

दक्षिण एशिया में एक दिन में छह लड़कियों की मौत
बाल विवाह से दुनियाभर में हर दिन 60 से अधिक तो दक्षिण एशिया में छह लड़कियों की मौत होती है। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर जारी एक नए विश्लेषण में दावा किया गया था कि बाल विवाह के कारण गर्भधारण और बच्चे को जन्म देने की वजह से हर साल तकरीबन 22 हजार लड़कियों की मौत हो रही है। ‘सेव द चिल्ड्रन’ की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में हर साल बाल विवाह से संबंधित 2 हजार मौतें होती हैं। इसके बाद पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 650 और लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों में हर साल 560 मौत होती हैं। हालांकि, पश्चिम और मध्य एशिया में दुनिया में बाल विवाह की सबसे अधिक दर है। पिछले 25 वर्षों में दुनियाभर में करीब आठ करोड़ बाल विवाहों को रोका गया लेकिन कोविड-19 महामारी से पहले ही इसमें प्रगति रुक गई और महामारी से असमानताएं और ज्यादा गहरी हुई हैं जिससे बाल विवाह बढ़ते हैं। स्कूलों के बंद होने, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ने और परिवारों के गरीबी की ओर बढ़ने के कारण महिलाओं और लड़कियों पर लॉकडाउन के दौरान हिंसा का खतरा बढ़ रहा है। कहा जा रहा है कि 2030 तक एक करोड़ नाबालिक बालिकाओं की शादी होने की आशंका है यानी कि और लड़कियों की मौत होने का खतरा है।

हर वर्ष होता है 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह

बाल विवाह का विरोध करते बच्चे

बाल विवाह की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा यूएनएफपीए (यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन्स फंड) द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है। यूएनएफपीएकी रिपोर्ट के अनुसार प्रति वर्ष करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाता है। इस लिहाज से अनुमान लगाया जा रहा है कि दुनिया भर में करीब 65 करोड़ महिलाओं और लड़कियों का विवाह उनके बालिक होने की उम्र पूरा करने से पहले ही हो चुका था। दुनिया भर में बाल विवाह के मामले सबसे ज्यादा पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका में सामने आते हैं जहां 31 फीसदी लड़कियों का विवाह बचपन में ही हो जाता है। जिससे उनके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। यह सीधे तौर पर उनके अधिकारों का हनन है।

विशेषज्ञों के अनुसार बाल विवाह बच्चियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर असर डाल रहा है। यह न केवल यौन हिंसा को बढ़ावा दे रहा है बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। बचपन में ही विवाह हो जाने के कारण इन बच्चियों को जोखिमभरी गर्भावस्था और प्रसव का सामना करना पड़ता है, जो उनके जीवन के लिए बड़ा खतरा है। यही नहीं यह एचआईवी के जोखिम को भी बढ़ा रहा है। अनुमान है कि प्रति हजार में से 95 बच्चियां 15 से 19 वर्ष की आयु में पहली बार मां बनी थीं।
हालांकि अच्छी खबर यह है कि वर्ष 2000 के बाद से बाल विवाह के मामलों में गिरावट दर्ज की गई है। 2000 के आस-पास 20 से 24 साल की हर तीन में से एक महिला ने यह जानकारी दी थी कि उनका विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हुआ था। वहीं 2017 में यह आंकड़ा पांच में से एक पर आ गया था। जहां 15 वर्ष से छोटी बच्चियों के बाल विवाह की दर 11 फीसदी थी वो 2017 में घटकर 5 फीसदी पर आ गई है। फिर भी दुनिया के कई देशों में यह कुरीति आज भी जारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विकासशील देशों में हर साल 15 से 19 वर्ष की आयु की करीब 1.2 करोड़ बच्चियां, बच्चों को जन्म देती हैं। वहीं 15 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के लिए यह आंकड़ा करीब 7.8 लाख है।

जहां पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया में बाल विवाह के मामलों में कमी आई है। वहीं अब बाल विवाह का यह बोझ अफ्रीका पर आ गया है। जहां एक दशक पहले बाल विवाह का आंकड़ा पांच में से एक था वह अब बढ़कर तीन में से एक हो गया है। हालांकि यदि संख्या की बात करें तो अभी भी दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा बच्चों का विवाह बचपन में हो जाता है। वहीं अगर हम भारत की बात करें तो यह एक बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसके कारण यहां न केवल वैयक्तिक कानून प्रचलन में हैं, बल्कि ये विभिन्न समुदायों में लगभग सभी सिविल मामलों को दिशा देने वाले महत्वपूर्ण कारक भी हैं। हिंदू विवाह अधिनियम-1955 की धारा-पांच में यह उल्लेख है कि विवाह के समय वर की आयु 21 वर्ष और वधू की आयु 18 वर्ष होना अनिवार्य है। दूसरी ओर मुस्लिम वैयक्तिक विधि के अनुसार किसी बालिका का विवाह तब किया जा सकता है जब उसने रजस्वला होने की आयु प्राप्त कर ली है। कर्नाटक तथा हरियाणा में विद्यमान विधियों में संशोधन कर बाल विवाह को आरंभ से ही शून्य मान लेने का प्रावधान किया गया है।

 

 

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