[gtranslate]
world

कनाडा की मैगपाई नदी को मिला एक ‘जीवित इंसान’ का दर्जा 

कहीं भी किसी के साथ जब अन्याय होता है तो हर कोई अपनी गुहार लेकर न्यायालय जाता है। उम्मीद होती है कि न्यायालय में न्याय जरूर मिल जाएगा। इंसान तो न्याय लेने के लिए न्यायालय पहुंच जाता है मगर सवाल है कि नदियों की जीवंतता को समाप्त कर देने वाले इंसानों के खिलाफ न्यायालय कौन जाए ? लेकिन कनाडा की एक नदी है जिसे इंसानों की तरह ही कई कानूनी अधिकार दिए गए हैं। जिस तरह हमें 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं उसी तरह कनाडाई प्रांत क्यूबेक में मौजूद एक नदी को नगर परिषद द्वारा कानून एक जीवित व्यक्ति होने का अधिकार दिया गया है।

कोटे नॉर्ड क्षेत्र में 120 मील की दूरी पर बहने वाली मैगपाई नदी को फरवरी में एक्यूनिटिश के इनु काउंसिल द्वारा यह विशेष अधिकार दिया गया। कनाडा की ये पहली नदी है जिसे कानूनी अधिकार दिए गए हैं। नदी इस क्षेत्र के इनू समुदाय के केंद्र में रही है। समुदाय का जीवन इसी नदी से चलता है।

लाॅक डाउन बना गंगा के लिये वरदान

परिषद ने नदी को नौ अधिकार दिए हैं। जिसमें प्रवाह का अधिकार, अपने प्राकृतिक विकास को जारी रखने का अधिकार, अपनी जैव विविधता को बनाए रखने का अधिकार, दूसरों के बीच अपने आवश्यक कार्यों को पूरा करने का अधिकार, दूसरों के बीच खुद को पुन: उत्पन्न करने का अधिकार शामिल है।

मैगपाई नदी, जिसे बोलचाल की भाषा में मुत्सेका शिपू के नाम से जाना जाता है, अपने मजबूत रैपिड्स के लिए जानी जाती है और वर्तमान में इस पर एक पनबिजली बांध है। एक विदेशी न्यूज़ पोर्टल अल जज़ीरा ने बताया कि स्वदेशी समुदाय चिंतित था कि नदी का संसाधनों के लिए दोहन किया जा सकता है, लेकिन प्रांतीय ऊर्जा प्राधिकरण ने कहा कि उसके पास जलमार्ग के विकास की कोई योजना नहीं है।

गंगा पर अब टूटी सबकी नींद 

हालांकि मैगपाई को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिए दो महीने हो चुके हैं।  यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि अदालत में इसके लिए कौन लड़ेगा इसके सरंक्षक कौन होंगे ? अन्य बातों के अलावा, यह संकल्प नदी के “जीने, अस्तित्व और प्रवाह के अधिकार” की पुष्टि करता है, प्राकृतिक रूप से विकसित होने, प्रदूषण से बचाने, इसकी अखंडता बनाए रखने और कानूनी कार्रवाई करने के लिए है। यह कहता है कि “नदी संरक्षक” जल्द ही यह सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किए जाएंगे कि उन अधिकारों का सम्मान किया जाए जो नदी को दिए गए हैं।

प्रकृति के अधिकार

यह कदम दुनिया भर के पर्यावरण आंदोलनों में सबसे बड़ी जीत माना जा रहा है, विशेष रूप से इक्वाडोर और न्यूजीलैंड में। 2011 में इक्वाडोर प्रकृति के अधिकारों को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया जब एक प्रांतीय अदालत ने सड़क निर्माण को नुकसान पहुंचाने के खिलाफ विलकंबा नदी के पक्ष में फैसला सुनाया। वहीं साल 2017 में न्यूज़ीलैंड के नॉर्थ आईलैंड पर वुहानगुई नदी दुनिया में पहली थी जिसे कानूनी रूप से सम्मानित किया गया था।

भारत में भी वर्ष 2017 में उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा ऐतिहासिक फैसले में देश की दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना को ‘जीवित’ का दर्जा देने का आदेश दिया गया था। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और आलोक सिंह की एक खंडपीठ ने अपने आदेश में दोनों पवित्र नदियों गंगा और यमुना के साथ एक ‘जीवित मानव’ की तरह व्यवहार किए जाने का आदेश दिया था। जिसके बाद न्यूजीलैंड इक्वाडोर और अब कनाडा में भी एक नदी को जीवित होने का दर्जा दिया गया है।

उन दिनों अपने इस ऐतिहासिक फैसले के लिए राजीव शर्मा और आलोक सिंह देशभर में चर्चा में रहे। आईए जानते हैं इन दोनों जजों और उनके ऐतिहासिक फैसलों के बारे में…

राजीव शर्मा

राजीव शर्मा उत्तराखंड हाई कोर्ट में हैं। इससे पहले वे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में अपनी सेवाएं दे रहे थे। अपने नौ साल के कार्यकाल में राजीव शर्मा ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा को तीन अप्रैल 2007 को हिमाचल हाई कोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्त किया गया था। शिमला में जन्मे न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने अपना करियर 1982 में शुरू किया था।

आलोक सिंह

वर्ष 2013 से आलोक सिंह उत्तराखंड में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे झारखंड व पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD