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संकट में ‘बायजूस’

‘बायजूस’ एक ऐसा स्टार्टअप है जो भारत में ऑनलाइन एजुकेशन पर एकाधिकार जमाया हुआ है। लगभग हर घर में यह अपनी पहुंच बना चुका है। लेकिन आसमान की ऊंचाई छूने वाला यह स्टार्टअप इन दिनों भारी आर्थिक संकट में नजर आ रह है। इसकी वैल्यूएशन घटकर एक चौथाई के करीब आ गई है। इसके चलते एक ओर जहां अधिकारी इस्तीफा दे रहे हैं और कर्मचारियों की छंटनी जारी है, वहीं दूसरी तरफ ऋणदाताओं ने इसके खिलाफ मुकदमे दायर कर दिए हैं। हालत यह है कि सरकारी एजेंसी ईडी भी इसकी जांच में जुट गई है

‘बायजूस’ कभी भारत का सबसे बड़ा और कीमती स्टार्टअप हुआ करता था। बमुश्किल डेढ़ साल पहले इसकी वैल्यूएशन 22 अरब डॉलर थी। यानी इसकी लागत एक लाख 80 हजार करोड़ रुपये थी। लेकिन उसी स्टार्टअप की हालत अब ऐसी हो गई है कि वह पिछले दिनों अमेरिका में अपने करीब 10 हजार करोड़ रुपये के लोन की किस्त समय पर नहीं चुका सका। ‘बायजूस’ एक ऐसा स्टार्टअप है जो भारत में ऑनलाइन एजुकेशन के आसमान पर एकाधिकार किए हुए है। भारत के हर घर-घर में यह अपनी पहुंच बना चुका है। लेकिन आसमान की ऊंचाई छूने वाले रवींद्रन का यह एडुटेक स्टार्टअप इस वक्त काफी मुश्किल में फंस गया है। वैल्यूएशन अपने शिखर से घटकर एक चौथाई के करीब आ गया है। अधिकारी इस्तीफा दे रहे हैं। कर्मचारियों की छंटनी हो रही है। इतना ही नहीं ऋणदाताओं ने इसके खिलाफ मुकदमे दायर कर दिए हैं। एजुकेशन में शीर्ष पर रहने वाली ‘बायजूस’ की जांच में ईडी जैसी सरकारी एजेंसियां जुट गई हैं।

कैसे शुरू हुआ ‘बायजूस’
कन्नूर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक करने वाले बायजूस रवींद्रन ने शुरुआत में दोस्तों और छात्रों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया था। वर्ष 2011 में बायजूस की मूल कंपनी, थिंक एंड लर्न लॉन्च की गई थी। 2015 में कंपनी का ‘बायजूस’ एप आया। इसके बाद तो देश में इंटरनेट की लहर पर सवार होकर ‘बायजूस’ ने तेजी से रफ्तार पकड़ ली। फिर आया कोविड का दौर, जब स्कूल बंद हुए तो स्क्रीन पर पढ़ाई का माहौल बन गया और मेहरबानी यह हुई कि कोरोनाकाल में इसकी रफ्तार तेज हो गई। इस दौरान बायजूस ने कई अधिग्रहण किए। अगस्त 2020 में इसने ‘व्हाइट हैट जूनियर’ को 300 मिलियन डॉलर में खरीदा। 2021 में 150 मिलियन डॉलर में ‘टॉपर’ खरीदा। 600 मिलियन डॉलर के सौदे में सिंगापुर की ‘ग्रेड लर्निंग’ उसकी झोली में चली गई। कैलिफोर्निया का डिजिटल रीडिंग प्लेटफॉर्म ‘एपिक’ भी इसका बन गया। यह सौदा 500 मिलियन डॉलर का था।

इस डील स्ट्रीट पर ‘बायजूस’ का सबसे बड़ा धमाका
‘आकाश’ को खरीदना था। आज से दो साल पहले भारत की जानी-मानी ऑनलाइन कोचिंग कंपनी ‘आकाश’ एजुकेशनल सर्विस लिमिटेड को बायजूस ने एक अरब डॉलर में खरीदा था। ऐसे सौदों को विदेशी निवेशकों से मिले पैसे से मदद मिल रही थी। बायजूस ने ब्लैकरॉक, सिल्वरलेक, टाइगर ग्लोबल और टेनसेंट जैसे विदेशी निवेशकों से अच्छी-खासी रकम जुटाई। विदेशी निवेशक बायजूस की विकास रणनीति से आकर्षित हुए। बायजूस ने इनसे कुल करीब 50 हजार करोड़ रुपए जुटाए। इन फंडिंग राउंड में बायजूस का वैल्यूएशन बढ़ता गया।

बायजूस भारत के स्टार्टअप इको- सिस्टम का पोस्टर बॉय बन गया। इसके प्रमोटर बायजूस रवींद्रन को एक के बाद एक ‘एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड मिले। कंपनी ने मार्केटिंग पर काफी पैसा खर्च किया। शाहरुख खान जैसे बॉलीवुड
सुपरस्टार इसके ब्रांड एंबेसडर बने। इसमें ‘व्हाइट जूनियर’ के लिए रितिक रोशन को शामिल किया गया। यह भारतीय क्रिकेट टीम का टाइटल स्पॉन्सर बन गया। यहां तक कि इसे फीफा विश्व कप की को-स्पॉन्सरशिप भी मिला। कंपनी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में कदम रख रही थी, इसलिए उसे अंतरराष्ट्रीय तेजी भी दिखानी थी। इसने मशहूर फुटबॉलर लियोनेल मेसी को अपना अंतरराष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर घोषित किया।

निवेशकों की फंडिंग और मार्केटिंग पर भारी खर्च के दम पर बायजूस ने भारत में ऑनलाइन शिक्षा के आसमान पर अपना दबदबा कायम कर लिया। 2022 में एक फंडिंग राउंड में इसकी वैल्यूएशन 22 अरब डॉलर आंकी गई थी। बायजूस रवींद्रन और उनकी पत्नी की संपत्ति भी 3.5 अरब डॉलर से अधिक आंकी गई थी। लेकिन ‘बायजूस’ इस चमक को ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रख सका। कर्ज और फंडिंग के जरिए तेज गति से किए गए अधिग्रहण मुनाफा नहीं दे सके। ‘बायजूस’ ने अपनी वित्तीय स्थिति के बारे में जो आखिरी ब्योरा दिया है, वह वित्तीय वर्ष 2020-21 का है। अन्य भारतीय कंपनियों की 2022-23 की डिटेल भी सामने आ गई है। ‘बायजूस’ की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021 में उसका शुद्ध घाटा 4.5 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा रहा है।

इस बीच कंपनी के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है। हाल ही में इसके ऑडिटर डेलॉइट ने भी इसकी वित्तीय स्थिति पर चिंता जताते हुए कंपनी का ऑडिट करने से इनकार कर दिया। उनके द्वारा कहा गया कि कंपनी अपना वित्तीय रिकॉर्ड नहीं दे रही है। पिछले साल जून में ‘बायजूस’ में बड़े पैमाने पर छंटनी का सिलसिला शुरू हुआ था। इस साल जून तक कंपनी ने करीब 4 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। संकट बढ़ा तो निवेशकों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। ऋणदाताओं ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी। जब कंपनी विवादों में घिरी तो वैल्यूएशन कम होने लगी। पिछले महीने नीदरलैंड की कंपनी प्रोसस के बायजूस में निवेश की खबर आई थी। इस फंडिंग में उन्होंने बायजूस की वैल्यू करीब 5 अरब डॉलर आंकी। अब 22 अरब डॉलर कहां हैं और 5 अरब डॉलर कहां हैं?

इन सबके बीच ही ‘बायजूस’ का अमेरिकी कर्जदाताओं के एक समूह से विवाद हो गया है। मामला लोन की शर्तों को लेकर था। बायजूस ने साल 2021 में एक अरब 200 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया था। कर्जदाताओं ने कर्ज का एक हिस्सा तुरंत लौटाने को कहा साथ ही उन्होंने उन पर ऋण की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। यह मामला अब अमेरिकी कोर्ट में चला गया है। बायजूस की दिक्कतें इतनी नहीं हैं। इसी साल अप्रैल में प्रवर्तन निदेशालय ने बेंगलुरु स्थित बायजूस के दफ्तरों पर छापेमारी की थी। विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया जा रहा है। इसके बाद कंपनी के तीन स्वतंत्र निदेशकों ने इस्तीफा दे दिया है।

बायजूस की मुश्किलों की कुछ खास वजहें
कोविड के दौर में ऑनलाइन एजुकेशन का चलन बढ़ गया था। लेकिन जब कोविड के बाद जब स्कूल खुले तो ऑनलाइन शैक्षिक संस्थानों की मांग कम हो गईं। इससे बायजूस और उसके निवेशकों की आसमान छूती उम्मीदों को झटका लगा। बायजूस ने कोविड काल में ग्रोथ हासिल करने के लिए ज्यादा पैसा खर्च करना शुरू कर दिया। इसके बजाय, उन्हें आसमान छूती उम्मीदों को वास्तविकता के करीब लाना चाहिए था। बदले हुए माहौल के हिसाब से अपने उत्पाद में बदलाव करना चाहिए था। शैक्षिक ब्रांडों को एक ठोस पहचान बनाने में दशकों लग जाते हैं। यह तिमाही और छमाही में मुनाफा मापने का खेल नहीं है।

यह सच है कि ‘बायजूस’ तेजी से बढ़ा है और अभी भी यह 5 अरब डॉलर से ज्यादा वैल्यूएशन वाली कोई हल्की कंपनी नहीं है। इस पर जो हंगामा मचा है, वह दरअसल बढ़ी हुई उम्मीदों के कारण है। निवेशक एक के बाद एक पैसा लगाते रहे और हर
फंडिंग राउंड के साथ बायजूस की कीमत बढ़ती रही। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा था। निवेशक बढ़ते वैल्यूएशन का ढोल बजाकर अगले निवेशक को लुभाने की कोशिश कर रहे थे। जब तक गुब्बारा फूलता रहा, सभी खुश रहे। जब मुसीबतें शुरू हुईं तो उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया।

वैल्यूएशन के इस खेल में भी बायजूस को ज्यादा मुश्किल तो नहीं हुई, लेकिन वह एक बड़ी गलती में फंस गई। बड़े पैमाने पर नकदी झोंकने और मुनाफा न मिलने के बाद भी कंपनी ने भारी मात्रा में विदेशी कर्ज लिया। यह वही एक अरब 200 करोड़ डॉलर का अमेरिकी कर्ज है, जिसका मामला अब अदालत में जा चुका है। विदेशी ऋणदाताओं की शर्तें बहुत कड़ी होती हैं। ‘बायजूस’ समय पर वित्तीय रिकॉर्ड भी पेश नहीं कर सका। अगर कर्ज की शर्तों में कर्ज को इक्विटी में बदलने की बात होगी तो अमेरिकी कर्जदाता बायजूस का अधिग्रहण करने के लिए भी कदम उठा सकता है।

बायजूस का मामला कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानकों से भी जुड़ा है। कंपनी ने निवेशकों से पैसा जुटाया था, इसलिए उसे बताना चाहिए था कि वह उस पैसे का क्या कर रही है। हालत यह है कि वित्तीय वर्ष 2021 के बाद उन्होंने बही-खाता सामने नहीं रखा है। आश्चर्य की बात है कि बड़े विदेशी निवेशक भी इस पर लंबे समय तक चुप रहे। अब बायजूस के रवींद्रन कह रहे हैं कि वित्तीय रिकॉर्ड जल्द ही सामने आएंगे।

2023 हुरुन ग्लोबल रिच लिस्ट के अनुसार, रवींद्रन दुनिया में शिक्षा क्षेत्र के दूसरे सबसे अमीर उद्यमी हैं। वह और उनका परिवार भारतीय अरबपतियों की वैश्विक सूची में 994वें स्थान पर हैं। पिछले तीन वर्षों में उनका स्थान 1000 से अधिक पायदान चढ़ गया है। लेकिन जिस गति से ‘बायजूस’ फिसल रहा है, उसे देखते हुए उबरने की राह कठिन हो सकती है। निवेशकों को पहले ही भारी नुकसान हो चुका है, हजारों कर्मचारियों की नौकरी चली गई है और कई अन्य की नौकरियों पर तलवार लटक गई है। जिन बच्चों ने बायजूस का कोर्स खरीदा है उन्हें भी दिक्कत हो सकती है। इससे भारत के दूसरे स्टार्टअप्स भी प्रभावित हो सकते हैं। उनके लिए पैसा जुटाना मुश्किल हो जाएगा।

माहौल को संभालने के लिए बायजूस के सीईओ रवींद्रन ने कर्मचारियों से कहा है कि बायजूस अब मुनाफे वाली ग्रोथ पर फोकस करेगा। उन्होंने कंपनी के शेयरधारकों से कहा है कि एक बोर्ड सलाहकार समिति का गठन किया जाएगा। यह समिति
सीईओ रवींद्रन को शासन के मामलों में सलाह देगी। यह एक आवश्यक कदम है। बायजूस और रवींद्रन दोनों को एक बार फिर उद्यमिता का सबक सीखने की जरूरत है।

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