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जन्म दर ने बढ़ाई चीन की मुश्किलें

  •     प्रियंका यादव

बढ़ती आबादी वाले देशों में चीन का नाम सबसे ऊपर आता है। एक समय था जब उसने जनसंख्या दर कम कराने के लिए जबरन गर्भपात करवाने वाले कानून बनाए थे। लेकिन अब देश में लगातार घट रही जन्म दर ने चीन की मुश्किलें बढ़ा दी है। इन मुश्किलों से निपटने के लिए वह अब उसे अपने ही बनाए गए कानूनों को मजबूरन वापस लेना पड़ रहा है। दरअसल चीन की जनता तेजी से बूढ़ी हो रही और युवाओं में कमी आ रही है। इसके लिए वह गर्भपात के स्थान पर अब जबरन गर्भधारण पर विचार किया जा रहा है।

गौरतलब है कि युवा जनसंख्या में कमी होने के कारण आने वाले कुछ सालों में चीन में काम करने वालों की भारी कमी का अंदेशा जताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसके डर से चीन महिलाओं में जबरन गर्भधारण करने का दबाव बना रहा है। इसके साथ ही वह अपने नागरिकों को जल्द से जल्द शादी करने के लिए कह रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए कई प्रतियोगिताएं भी शुरू करा दी गई हैं। इससे पहले पिछले साल उसने एक नया जनसंख्या और परिवार नियोजन कानून जारी किया जिसमें चीनी जोड़ों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी गई थी।

चीन की नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2019 के बीच छह वर्ष की अवधि में चीन में शादियों की संख्या 41 प्रतिशत तक गिर गई थी। जिसमें पिछले साल केवल 7.6 करोड़ जोड़ों ने ही शादी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था। यह चीन के बीते 36 सालों में से सबसे कम आंकड़ा है। जिसके कारण चीन की जन्म दर घटकर प्रति 1 हजार लोगों पर 7.5 जन्म रह गई है। गौरतलब है पांच साल पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2050 तक करीब 30 करोड़ से ज्यादा लोग 60 साल की उम्र से ज्यादा के होंगे। यानी अधिक उम्र वालों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। ऐसे में उनके बच्चों को अपने बुजुर्गों की देखभाल के लिए उन पर ज्यादा समय और पैसा खर्च करना होगा। 2017 के शुरुआत में स्टेट काउंसिल ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया था कि 2020 तक 60 साल से ज्यादा उम्र वालों की संख्या करीब 25 करोड़ के आस-पास होगी।

चीन ने एक समय बढ़ती जनसंख्या को
रोकने के लिए महिलाओं का जबरन गर्भपात करवाया। ऐसा कर वह आबादी कम करने के प्रयास में सफल भी हुआ लेकिन इसके कारण चीन की जन्म दर इतनी कम हो गई कि युवाओं की कमी और बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है। यानी चीनी सरकार अब एक बच्चे की नीति से विश्वास खो चुकी है। चीनी सरकार ने जब एक बच्चे का कानून लागू किया था तब महिलाओं के जबरन गर्भपात करवाये गए थे। जिसमें मुस्लिम अल्पसंख्यक महिलाओं को ज्यादा कष्ट झेलना पड़ा था। दो बच्चे हो जाने पर नागरिकों को जुर्माना व जेल की सजा दी जाती थी। संयुक्त राष्ट्र मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीनी सरकार उइगुर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी और गर्भनिरोधन के लिए मजबूर कर रही थी। जिसे संयुक्त राष्ट्र ने अमानवीय करार दे दिया था।

चीन के अनुसार मुसलमानों की बढ़ती आबादी गरीबी और चरमपंथ को बढ़ावा देती है। तीन बच्चे होने पर माता पिता को उनके बच्चों से दूर कर दिया जाता है और उन्हें सुधार केंद्र भेज दिया जाता था। उनके सामने शर्त रखी जाती थी या तो भारी जुर्माना दे या परिवार से दूर हो जायें। यही नहीं तीन से अधिक बच्चे होने पर महिलाओं के शरीर में आईयूडी डाल दिए जाते हैं। डिटेंशन सेंटर में रह चुकी एक महिला तुरसुनेय जियावुदुन के अनुसार उनके शरीर में बार-बार आईयूडी डाले गए। ऐसा तब तक किया गया जब तक माहवारी पूरी तरह बंद नहीं हो गई। हर महीने उनकी जांच की जाती और इस जांच के दौरान उनके पेट पर लातें मारी जाती हैं। जिसके कारण उन्हें अकसर दर्द उठता है और गर्भाशय से खून भी आता है और वह मां नहीं बन सकती हैं।

चीन के नागरिकों का विरोध
अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन की जनता सरकार के इस निर्णय का विरोध कर सकती है। दरअसल वहां के नागरिकों के अनुसार वे उस पीड़ा और यातना को याद करते हैं जब सरकार ने एक बच्चे की नीति को लागू कराने के लिए जबरन गर्भपात, नसबंदी जैसे अमानवीय तरीके को क्रूरता पूर्वक लागू किया था। यही नहीं चीन में जो जोड़ा दूसरा बच्चा करता है तो उसे जुर्माना देने के साथ जेल भी जाना पड़ता है। इसी नीति को लेकर पहले लाखों गर्भपात करवाए गए थे। अब सरकार परिवार नियोजन के वृद्धि पर दबाव दे रही है। जिससे सरकार का परिवार नियोजन में सीधा हस्तक्षेप देखा जा रहा है। अधिकांश माता-पिता को लगता है कि वे अपने बच्चों को घरों में बंद रहने के लिए मजबूर होने, भोजन की कमी, आय की कमी, बढ़ती कीमतों, स्वास्थ्य समस्याओं आदि के कारण अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर पायेंगे।

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