अमेरिका से शुरू हुआ बैंकिंग संकट अब यूरोप की दहलीज पर पहुंच चुका है। दुनिया भर के निवेशकों में दहशत है। अमेरिका में निवेशक छोटे बैंकों से पैसा निकाल कर बड़े बैंकों में रख रहे हैं। अमेरिका में दिवालिया बैंकों का रिकॉर्ड रखने की शुरुआत साल 2001 से हुई थी। तब से अब तक 560 बैंक डूब चुके हैं। देश में साल 2009 में 140 और साल 2010 में सबसे ज्यादा 157 बैंक डूबे थे। इससे पहले साल 2008 में 25 बैंक फेल हुए थे। आधुनिक अमेरिकी इतिहास में यह सबसे बड़ा बैंकिंग संकट था। इस बार सिर्फ दो बैंक डूबे हैं फिर भी इतना बवाल क्यों?
इसका कारण यह है कि अमेरिका में संपत्ति के मामले में यह 2008 के बाद से सबसे बड़ा बैंकिंग संकट है। 2008 में विफल हुए 25 बैंकों की संयुक्त संपत्ति 374 अरब डॉलर थी। इस बार सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक की संयुक्त संपत्ति 319 अरब डॉलर है। बैंक डूबने की कगार पर पहुंच गया है। फर्स्ट रिपब्लिक बैंक पर भी दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है। पिछले साल अमेरिकी बैंकों को 620 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। अमेरिकी फेड रिजर्व जिस तरह से महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहा है, उससे कई और बैंकों के डूबने का खतरा मंडरा रहा है।
अमेरिका में 2001 से लेकर अब तक 560 छोटे-बड़े बैंक फेल हो चुके हैं। 2001 में चार बैंक, 2002 में 10, 2003 और 2004 में तीन-तीन बैंक विफल हुए। इसके बाद 2007 में तीन और 2008 में 25 बैंक विफल हुए। 2008 में वाशिंगटन म्यूचुअल डूब गया था, जिसकी संपत्ति 307 अरब डॉलर थी। इसके अलावा 32 अरब डॉलर की संपत्ति वाली इंडिमैक भी डूब गई। 2009 में 140 बैंक, 2010 में 157, 2011 में 92, 2012 में 51 और 2013 में 24 बैंक डूबे। इसके बाद 2014 में 17 बैंक डूबे। तब से हर साल फेल होने वाले बैंकों की संख्या सिंगल डिजिट में रही है। लेकिन इस बार सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के धराशायी होने से जमाकर्ताओं में हड़कंप मच गया है । लोग छोटे बैंकों से पैसा निकाल कर बड़े बैंकों में जमा कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि बैंकों में जमा कम होने से वे कम कर्ज देंगे. इससे अर्थव्यवस्था में पूंजी का प्रवाह रुक जाएगा और मंदी का खतरा बढ़ जाएगा। इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया पर देखा जा सकता है।