पड़ोसी देश बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के मौके पर पंडालों और मूर्तियों पर हमलों की कई हिंसक घटनाएं सामने आई हैं। देश के अलगदृअलग हिस्सों में दुर्गा की प्रतिमाओं के साथ तोड़-फोड़ और खूनी हिंसा हुई हैं। इस खूनी हिंसा की आंच अब भारत में भी दिखने लगी है। इस बीच भाजपा ने दावा किया है कि बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हुई हिंसा धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों पर एक व्यवस्थित हमले का हिस्सा है और स्थिति नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने की मांग करती है। सीएए साल 2015 से पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुसलमानों को नागरिकता प्रदान करता है। इसके आलोचकों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हैं। ममता का कहना है कि यह कानून भेदभावपूर्ण है, क्योंकि इसमें मुस्लिमों के अलावा अन्य सभी धर्म को भारत की नागरिकता दी जा रही है।
बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के मौके पर हुई खूनी हिंसा को लेकर वहां के गृह मंत्री असदुज्जमां खान ने कहा कि कुरान की कथित अपमान और उसके बाद कोमिला में हिंदुओं पर हमले पूर्व नियोजित थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक निहित समूह द्वारा उकसाया गया था। दुर्गापूजा के दौरान न केवल कोमिला में बल्कि रामू और नसीरनगर में सांप्रदायिक हिंसा के जरिए देश को अस्थिर करने का प्रयास किया गया है। कोमिला में हुई घटना के पीछे के कारण के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने कहा, ‘सभी सबूत मिलने के बाद हम इसे सार्वजनिक करेंगे और इसमें शामिल लोगों को कड़ी सजा दी जाएगी।’
दरअसल, सोशल मीडिया पर कुरान की बेअदबी की अफवाह के बाद कट्टरपंथियों की भीड़ बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर लगातार हमले कर रही है, हिंदू धार्मिक स्थलों, देवी-देवताओं की मूर्तियों को निशाना बना रही है और उनके घरों को आग के हवाले करने को आमादा है। कोमिला जिले से शुरू हुई हमलों की यह आग नोआखाली और राजधानी ढाका तक पहुंची। वही नोआखाली जहां 7 नवंबर 1946 को सांप्रदायिकता की आग बुझाने के लिए महात्मा गांधी को जाना पड़ा था। वही ढाका जिसका नाम बांग्लादेश के सबसे बड़े ढाकेश्वरी मंदिर के नाम पर रखा गया है।
बांग्लादेश के इतिहास को देखें तो देश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले कोई नए नहीं हैं। भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले 29 अक्टूबर 1990 को बांग्लादेश में राजनीतिक संगठन जमात-ए-इस्लामी ने बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की अफवाह फैला दी थी। इसके चलते भड़की हिंसा में कई हिंदू मारे गए थे। साल 2001 में बीएनपी-जमात गठबंधन की जीत के बाद हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई थी। 2004 की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट के अनुसार 2001 के चुनाव के बाद चटगांव में एक ही हिंदू परिवार के 11 सदस्यों को जिंदा जला दिया गया था, लेकिन अब जबकि बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता है, एक पंथनिरपेक्ष सत्ता तो ऐसे में हिंदुओं पर हमले की घटनाएं लगातार क्यों हो रही हैं?
मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात सामने आ रही है कि हमले की ताजा घटनाओं में प्रदर्शनकारी भारत विरोधी नारे लगा रहे हैं, साथ ही शेख हसीना को यह संदेश भी दे रहे हैं कि वो नई दिल्ली से अपनी नजदीकियां खत्म करें। दरअसल, बांग्लादेश में कई इस्लामिक कट्टरपंथी धड़े हैं जो शेख हसीना की सरकार से खफा हैं। पिछले साल जब बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन हजरत-ए-इस्लाम के चीफ जुनैद बाबूनगरी ने कहा था कि हम देश की सभी मूर्तियों को गिरा देंगे और कोई मायने नहीं रखता है कि कौन-सी मूर्ति किसकी है। यहां तक कि बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान की 100वीं जयंती पर उनकी मूर्ति लगाने तक का विरोध जुनैद ने किया था। पहली बात तो यही है कि शेख हसीना की भारत के साथ दोस्ताना संबंध इन कट्टरपंथी संगठनों को रास नहीं आ रहा है। ऐसे संगठन बांग्लादेश को पूरी तरह से इस्लामिक राष्ट्र के तौर पर देखना चाहते हैं जो शेख हसीना की सत्ता के रहते संभव नहीं है। क्योंकि शेख हसीना बांग्लादेश की आजादी में भारत के अमूल्य योगदान का जिक्र करने से कभी पीछे नहीं हटती हैं। हमले की ताजा घटनाओं के बाद भी शेख हसीना ने कहा कि बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान यही चाहते थे कि बांग्लादेश में सभी धर्मों के लोग अपने धर्म का आजादी से पालन करें। बंगबंधु ने जिस मकसद से स्वतंत्र मुल्क बनाया था, हम उसी रास्ते पर चलेंगे। शेख हसीना का यही भारत प्रेम कट्टरपंथियों को रास नहीं आ रहा है और मौका पाते ही वो हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हमले कर भारत-बांग्लादेश के संबंधों को खराब करने का मौका तलाशते रहते हैं।
बांग्लादेश में 9 प्रतिशत की आबादी वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं का एक सच ये भी है कि हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में हिंदुओं का यहां से पलायन हुआ है। ऐसे में कोई यह अफवाह फैलाकर हिंदुओं पर हमला करने लगे कि उसने कुरान या पैगंबर मोहम्मद की बेअदबी की तो यह बात गले से नीचे उतरती नहीं है। यह पूरी तरह से बांग्लादेश से हिंदुओं को भगाने की साजिश का एक हिस्सा है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले को अगर विस्तार से देखें तो दक्षिण एशिया के देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो चीन भारत को दुश्मन नंबर एक मानता है। चीन लगातार इस कोशिश में जुटा है कि भारत को उसके सभी पड़ोसी देशों से अलग- थलग किया जाए। यहां तक कि नेपाल और श्रीलंका को भीबड़ी आर्थिक मदद देकर इन दोनों देशों को भारत के खिलाफ खड़ा करने में चीन काफी हद तक सफल होता दिख रहा है। अब बांग्लादेश को भी चीन उसी कतार में खड़ा करने की कोशिश में जुटा है। विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि चीन की दृष्टि साफतौर पर इसी फॉर्मूले पर काम कर रही है कि बांग्लादेश में जब हिंदुओं पर हमले होंगे, मंदिरों पर हमले होंगे तो इसकी प्रतिक्रिया भारत में होगी। भारत-बांग्लादेश के संबंधों में खटास पैदा होगी तो बांग्लादेश का चीन से दोस्ती गांठना उसकी मजबूरी होगी। इस तरह से जब भारत के सभी पड़ोसी देशों पर चीन का शिकंजा कस जाएगा तो उसके लिए भारत को झुकाना काफी आसान हो जाएगा।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि इस मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस धर्म के हैं। साथ ही भारत से भी गुजारिश की है कि इस मसले पर वहां शांति कायम रखी जाए। अगर भारत में कुछ होता है तो बांग्लादेश के हिंदू प्रभावित होना लाजमी है। लिहाजा अब भारत और बांग्लादेश को मिलकर वक्त रहते इसका स्थायी समाधान तलाशना जरूरी है, नहीं तो आतंकवादी संगठन और चीन जैसी साम्राज्यवादी ताकतें इसका फायदा उठाने से नहीं चूकेंगे।
त्रिपुरा में दुर्गा पूजा के दौरान हादसे
इस बीच दुर्गा पूजा के दिनों में बांग्लादेश में भीषण हिंसा को लेकर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देब ने पूजा पंडालों पर हमलों की निंदा की और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। त्रिपुरा में नागरिक समाज समूहों ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों की सुरक्षा और अपराधियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है। त्रिपुरा में भी 12 अक्टूबर से अलग-अलग जगहों पर दुर्गा पूजा के दौरान अलग-अलग हादसों में पांच लोगों की मौत हो गई थी और 13 लोग घायल हो गए हैं।