शीतकालीन ओलंपिक खेल खेलों के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं , जिनमें में अधिकांश प्रतियोगिताएं बर्फ पर खेले जाने वाले खेलों की स्पर्धा होती है। इन खेलों को लेकर अब कूटनीतिक जंग भी शुरू हो गई है। दरअसल , दो दिन पहले अमेरिका ने ऐलान किया था कि वह अगले साल चीन में खेले जाने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक रूप से बहिष्कार करेगा।

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन
अब ऑस्ट्रेलिया ने भी बीजिंग ओलंपिक का राजनयिक बहिष्कार करने का फैसला कर चीन को बड़ा झटका दे दिया है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने बीजिंग ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार की बात कही है। वहीं बीजिंग में 2022 शीतकालीन ओलंपिक खेलों के कूटनीतिक बहिष्कार के बारे में अमेरिकी फैसले से कनाडा अवगत है और इस मामले में सहयोगियों के साथ परामर्श जारी रखे हुए है। ग्लोबल अफेयर्स कनाडा के प्रवक्ता क्रिस्टेल चार्टेंड ने कहा कि चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की परेशान करने वाली रिपोर्टों से कनाडा भी काफी परेशान है। वहीं इटली ने कहा है कि वह फिलहाल बीजिंग 2022 शीतकालीन ओलंपिक के अमेरिकी राजनयिक बहिष्कार में शामिल होने की योजना नहीं बना रहा है।
दरअसल, हाल ही में चिनफिंग और बाइडन के बीच हुई वर्चुअल बैठक बेनतीजा रहने के बाद बाइडन प्रशासन ने शायद यह तय किया कि चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर शिकस्त देनी जरुरी है। उसे दुनिया के अन्य मुल्कों से अलग-थलग करना है। लोकतंत्र पर चीन के बहिष्कार को इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है । आने वाले समय में बाइडन प्रशासन की नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राष्ट्रपति बाइडन चीन से सामरिक या रणनीतिक संघर्ष के बजाए कूटनीतिक दांव से चित करने की रणनीति अपनाई हैं।
गौरतलब है कि शीतकालीन ओलंपिक दो महीने बाद शुरू होने वाले हैं। फरवरी 2022 में खेल शुरू होने से पहले अमेरिका ने यह ऐलान कर दिया है। वैसे अमेरिका द्वारा इस तरह तरह का फैसला लिए जाने की संभावना काफी पहले से लगाई जा रही थी। हालांकि अमेरिकी खिलाड़ियों के शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने की उम्मीद है। बाइडेन प्रशासन अपने केवल एक राजनयिक प्रतिनिधि को बीजिंग नहीं भेजेगा।
अमेरिकी ने यह फैसला प्रतिस्पर्धा से रोके बिना विश्व मंच पर चीन को एक कड़ा संदेश देने के लिए लिया है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि हमें अमेरिकी एथलीटों का पूरा समर्थन है, हम पूरी तरह से उनके साथ हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने अमेरिका पर बिना निमंत्रण के ओलंपिक का राजनयिक बहिष्कार करने का आरोप लगाया।
पहले भी कर चुका है बहिष्कार
अमेरिका ओलंपिक खेलों का बहिष्कार पहली बार नहीं कर रहा है। इससे पहले अमेरिका ने वर्ष 1980 में मास्को ओलंपिक का पूरी तरह बहिष्कार किया था। शीत युद्ध के दौरान तब अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर थे। इसके अलावा कई अन्य देश भी ओलंपिक खेलों का बहिष्कार कर चुके हैं।
ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का इतिहास
वर्ष 1956 (मेलबोर्न), 1964 (टोक्यो), 1976 (मॉन्ट्रियल), 1980 (मास्को), 1984 (लॉस एंजिल्स) और 1988 (सियोल) में विभिन्न देशों ने युद्ध, आक्रामकता और रंगभेद जैसे कारणों से ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था ।
चीन ने जताई आपत्ति
अमेरिका द्वारा शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बहिष्कार के फैसले पर चीन ने आपत्ति जताई और उसने धमकी दी कि यदि वाशिंगटन फरवरी में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों का राजनयिक बहिष्कार करता है तो बीजिंग इस पर जवाबी कार्रवाई करेगा। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा कि यदि अमेरिका ऐसा करता है तो यह राजनीतिक तौर पर भड़काने वाली कार्रवाई होगी।
भारत का चीन ने किया समर्थन
हाल में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोफ और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ वर्चुअल बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों के आयोजन में चीन की तरफदारी की। इसके बाद रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा बयान जारी कर कहा गया कि चीन में 2022 में विंटर ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों की मेजबानी के लिए मंत्रियों ने समर्थन किया है। बता दें कि चीन और भारत के बीच पिछले 19 महीनों से सीमा पर तनाव है। इतना ही नहीं, चीन भारत से लगी सीमा पर सैन्य ठिकाना और मजबूत कर रहा है।
चीन के समाचार पत्र ने लिखा है कि भारत ने विंटर ओलंपिक में चीन का समर्थन कर राजनयिक और रणनीतिक स्वायत्तता का परिचय दिया है। अमेरिका की तरफ झुकाव के बावजूद भारत ने दिखाया कि वह सभी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामले में अमेरिका के साथ नहीं रह सकता। इससे लगता है कि भारत वाशिंगटन का स्वाभाविक सहयोगी नहीं है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया से मजबूत होते संबंधों के बावजूद भारत ने चीन, रूस और शंघाई सहयोग संगठन के साथ ब्रिक्स के सदस्य देशों से भी संबंधों को आगे बढ़ाना जारी रखा है। इससे पता चलता है कि भारत अपनी विदेश नीति उदार रखना चाहता है और अपने संबंधों को किसी खेमे तक सीमित नहीं रखना चाहता है।