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इमरान खान के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनते ही दुनियाभर में उनके ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ के रूप-स्वरूप को लेकर चर्चाएं होने लगी हैं। पाकिस्तान को बदलने और नया पाकिस्तान के उनके नारे को दुनिया के साथ-साथ उनके देश में भी लोग गंभीरता से ले रहे हैं। शपथ समारोह में उनके भाषण को लोगों में अपने-अपने ढंग से लिया और अब उनकी व्याख्या में जुट गए हैं।
बतौर क्रिकेट कप्तान इमरान ने पाक क्रिकेट टीम को नई बुलंदियों तक पहुंचाया था। उन्होंने उसे विश्व चैंपियन भी बनाया। इमरान खान अपने दौर के श्रेष्ठ ऑल राउंडर थे। जिन लोगों में उनकी गेंदबाजी पर गौर किया है, वे जानते हैं कि अगर शुरुआती ओवरों में उनको विकेट मिल जाता था तो वे विपक्षी टीम पर कहर बनकर टूटते थे। क्या सियासत और सरकार में भी उनसे ऐसी ही उम्मीद की जानी चाहिए कि वह क्रिकेट की तरह देश को भी नई बुलंदियों तक ले जाएंगे। लेकिन हमें यह नीं भूलना चाहिए कि क्रिकेट और सियासत में फर्क है। दोनों की कप्तानी के भी जुदा अंदाज होते हैं।
खास बात यह कि उनके बतौर वजीरे आलम इमरान खान के भाषण को उनके दोस्त-दुश्मन दोनों ने ही पसंद किया। उनकी बातों में उम्मीद के लॉ को जलाया है। उनके समर्थक और विरोधी इस बात पर सहमत हैं कि शपथ के वक्त वह ऐसे शख्स नजर आए जो उसके पहले कभी दिखाई नहीं दिए।
इमरान खान सामान्य बहुमत से पाक के प्रधानमंत्री चुन गए हैं। शपथ समरोह में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों समेत उनकी तीसरी पत्नी बुशरा मनेका भी पहुंची थी। समरोह के दौरान पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने पूर्व भारतीय क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को गले मिल गया जिस पर भारत में बवाल मचा।
गौरतलब है कि 25 जुलाई को हुए आम चुनाव में 116 सीटों के साथ इमरान खान की पार्टी पीटीआई सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। बाद में नौ निर्दलीय उम्मीदवारों के खान की पार्टी में शामिल होने से संख्या 128 हो गई। इसके बाद संसद में महिलाओं के लिए आरक्षित 116 सीटों में 28 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित 10 में से पांच सीटें मिने के बाद पीटीआई के सदस्यों की तादाद 158 हो गई।
नए प्रधानमंत्री इमरान का फोकस युवाओं पर है जिसे सही कदम बताया जा रहा है। बकौल इमरान ‘मेरा मिशन भी आज का वोटर नहीं है।’ इमरान परंपरागत राजनीति की तस्वीर को बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा भी है कि वे युवाओं के भीतर के गुस्सा को आवाम की ताकत बनाना चाहते हैं। पाक में एक करोड़ 68 लाख से अधिक नौजवान वोटर है। पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी चुनौती वहां की अर्थव्यवस्था को ठीक करना, अमेरिकी दया से निजात पाने, आंतरिक आतंकवाद से निपटना और भारत के साथ कश्मीर विवाद को सुलझाना। सेना वहां लोकतंत्र को कमजोर करने की सबसे बड़ी वजह रही है। लेकिन वह सेना के करीबी और खासमखास है। सेना के साए में वह नया पाकिस्तान का सपना कैसे पूरा करते हैं, यह एक यक्ष प्रश्न है।

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