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मृत्युदंड खत्म किए जाने को लेकर लगाई गई गुहार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR) ने सभी देशों से मृत्यु दंड के प्रावधान को खत्म करने के लिए विश्व भर के देशों से गुहार लगाई है। दिशा निर्देश देते हुए कहा गया है कि इस मुद्दे पर और भी कार्य किया जाना चाहिए। उच्चायुक्त मानवाधिकार के मुताबिक अभी भी तकरीबन 79 देशों में मौत की सजा का प्रावधान है। जिन्हे अक्सर साधारण अपराध के मामले में भी दिया जाता है। हालांकि मानवधिकार के मुताबिक मृत्यु दंड सिर्फ सर्वाधिक गंभीर अपराधों तक ही सीमित होना चाहिए। मृत्यु दंड पर स्वेच्छिक रोक लगाए जाने के विरोधियों के मुताबिक अगर ऐसा होता है तो यह पीड़ितों के साथ अनदेखी करना साबित हो सकता है। उनकी दलील है कि बदला लेना ही, सबसे अच्छा जवाब है। हालांकि इस दलील पर वोल्कर टर्क ने बयान देते हुए कहा है कि बदले की कार्यवाई में इंसानियत नहीं ठहरती। इंसानों को उनकी जिंदगियों से वंचित करके समाज का पतन किया जा रहा है । यूएन मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क के मुताबिक मृत्यु दंड का यह मुद्दा यूएन चार्टर में वर्णित है जो कि सभी इंसानो के संरक्षण के उच्चतम मानकों के वादे के बारे में है। जोकि मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र की भावना के अनुरूप है।

वहीं संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में आपराधिक न्याय क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक मृत्यु दंड देने के स्थान पर अपराधों को नियंत्रित करने और उनकी रोकथाम करने के लिए ज्यादा बल दिया जाना चाहिए। इसके अलावा इन विशेषज्ञों ने मानवाधिकारों पर आधारित आपराधिक न्याय प्रणालियाँ बनाए जाने की सिफ़ारिश की है। जिनमें, अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। इसके तहत पीड़ितों को न्याय, क्षतिपूर्ति और गरिमा तक पहुँच हो। यूएन मानवाधिकार प्रमुख के मुताबिक दुनिया भर के कई देशों में मृत्युदंड को खत्म करने के मामले में उपलब्धियां देखी जा सकती हैं। इसी संदर्भ में अफ़्रीकी संघ, मृत्युदंड की समाप्ति पर चार्टर के लिए एक प्रोटोकॉल के मसौदे पर विचार कर रहा है। 26 देशों ने मृत्यु दंड की इस प्रथा को खत्म कर दिया है वहीं 14 अन्य देशों ने इस मुद्दे पर स्वैच्छिक रोक लगाई हुई है। वोल्कर टर्क के मुताबिक इन प्रयासों के बावजूद अफ़्रीकी महाद्वीप के कई क्षेत्रों में अब भी मृत्यु दंड की घोषणा जारी है। ऐसे में यदि कोई भी न्यायिक त्रुटि होती है तो जोखिम बढ़ जाता है। अधिकतर अफ्रीकी देशों में मृत्यु दंड अभी भी दिया जाता है। उच्चायुक्त मानवाधिकार ने मृत्यु दंड को वैश्विक स्तर पर ख़त्म करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, अन्य देशों व अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया।

गौरतलब है कि दुनिया में कुछ ऐसे देश भी है जो मामूली अपराध के लिए भी कड़ा मृत्युदंड देते हैं। ऑस्ट्रेलिया की सहायक प्रोफ़ेसर माई साटोशेष ने दावा किया है कि 77 देश, सर्वाधिक गम्भीर अपराध के मानकों का पालन करने में नाकाम रहे हैं। 11 देशों में, ऐसे अपराधों के लिए मृत्यु दंड दिया जाता है जिन्हें अपराध ही नहीं समझा जाना चाहिए, जैसेकि व्याभिचार के मामले में , धार्मिक अपराध के मामले और समलैंगिक यौन गतिविधियों को लेकर भी कई देशों मृत्यु दंड के प्रावधान हैं। यूएन मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क के अनुसार जब तक प्रत्येक देश इस तरह के प्रावधान को खत्म नहीं कर देता तब तक मानव गरिमा के संरक्षण के रास्ते पर मंजिल हासिल नहीं की जा सकती । यूएन महासभा में मृत्युदंड के प्रयोग पर विश्व भर के देशों से स्वैच्छिक रोक लगाने के लिए एक दिसम्बर 2022 में प्रस्ताव पारित किया गया था। जिसके समर्थन में करीब 125 देशों ने मतदान किया था। इस प्रस्ताव में मृत्यु दंड की पूर्ण समाप्ति का उद्देश्य भी रखा गया था। इसी तर्ज पर वोल्कर टर्क ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। अगर हम इस अमानवीय दंड को सदैव के लिए ख़त्म करने के उद्देश्य से स्वैच्छिक रोक बरकरार रखें, तो हम मानव गरिमा का धागा, हमारे समाजों के ताने-बाने में फिर से पिरो सकते हैं।

 

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