अफगानिस्तान में जारी संकट के बीच अमेरिका ने तालिबान सरकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही यह अहम सवाल खड़ा हो गया है कि जिस सरकार का नेतृत्व वैश्विक अंातंकियों के हाथों में हो,क्या उसे दुनिया के बाकी मुल्क मान्यता दे सकेंगे। दरअसल, गत सफ्ताह दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुई बैठक के बाद तालिबान का बड़ा बयान सामने आया है। दोहा वार्ता खत्म होने के बाद तालिबान की ओर से कहा गया है कि इस बैठक में अमेरिका, अफगानिस्तान की मदद को तैयार हो गया है लेकिन वह तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देगा। अमेरिकी अधिकारी ने तालिबान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कतर के दोहा में बैठक की। अगस्त में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद यह इस तरह की पहली बैठक है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक कतर में वार्ता के बाद तालिबान ने घोषणा की है कि अमेरिका तालिबान को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देगा लेकिन अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करेगा। अगस्त के अंत में अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान से हटने के बाद से तालिबान के वरिष्ठ प्रतिनिधियों और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के बीच दोहा वार्ता पहली आमने-सामने की बैठक थी। बयान का हवाला देते हुए तालिबान ने कहा कि उनकी चर्चा अच्छी रही।
तालिबान की ओर से बयान में कहा गया है कि अमेरिका अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए सहमत है, जबकि तालिबान ने यह भी कहा कि वे विदेशी नागरिकों के सैद्धांतिक आंदोलन की सुविधा देंगे। इस दौरान विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका की प्राथमिकताओं में से एक अमेरिका और अन्य विदेशी नागरिकों, अफगानियों को वहां से सुरक्षित वापसी को जारी रखना था, जिनके लिए हमारी एक विशेष प्रतिबद्धता है जो भी लोग देश छोड़ना चाहते हैं।
दरअसल, तालिबान के सत्ता में आने के बाद से इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने समूह, जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले तेज कर दिए हैं। अमेरिका के एक अधिकारी के मुताबिक कतर के दोहा में होने वाली वार्ता के केंद्र में अफगानिस्तान के तालिबान नेताओं से यह वादा लेना होगा कि वे अमेरिकी लोगों, विदेशी नागरिकों और अमेरिकी सरकार और सेना के मददगार रहे अफगान सहयोगियों को अफगानिस्तान से निकलने की इजाजत दें। दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दो या दो से अधिक वैश्विक आतंकी किसी सरकार में सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जिन-जिन देशों ने इन आतंकियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं, वे आखिरकार तालिबान सरकार को मान्यता कैसे देंगे। अगर ये देश नियमों को ताक पर रखकर मान्यता देते हैं तो इसे आतंकवाद के साथ समझौता माना जाएगा।