एक ओर जहां रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन ताइवान तनाव के कारण पूरी दुनिया में मची उथल- पुथल के बीच हर देश अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए भारी मात्रा में हथियारों की खरीद कर रहा है वहीं हथियार बेचने वाले देशों को अरबों डॉलर का फायदा पहुंच रहा है। इसमें सबसे ज्यादा फायदा कोई उठा रहा है तो वह अमेरिका है
पिछले कुछ समय से जारी उथल-पुथल के बीच एक ओर जहां पांच महीनों से रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से दुनिया के मुल्क भारी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं वहीं अब जिस तरह ताइवान और चीन युद्ध के मोर्चे पर आने से अमेरिका हथियार बेचने में व्यस्त है।
भले ही पूरी दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए प्रयास होते रहते हो। लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि हर देश खुद को सुरक्षित रखने के लिए हथियारों के निर्माण और उनकी खरीद पर काफी खर्च करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन ताइवान तनाव के कारण पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है। हर देश अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए भारी मात्रा में हथियारों की खरीद कर रहा है। यही कारण है कि हथियार बेचने वाले देशों को अरबों डॉलर का फायदा पहुंच रहा है। सबसे ज्यादा फायदा इस समय कोई उठा रहा है तो वह अमेरिका उठा रहा है।
वर्तमान में हथियारों के व्यापार में दुनिया के नंबर दो और तीन पर काबिज देश या तो युद्ध में उलझे हुए हैं या फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। ऐसे में उनके सामने अपने मुल्क के लिए हथियारों के स्टॉक को बनाए रखने की चुनौती आ खड़ी हुई है। लेकिन अमेरिका के साथ ऐसा नहीं है। वह वैश्विक तनाव के बीच लगातार अपने दोस्त देशों को अरबों रूपयों के हथियार बेच रहा है। अमेरिका की हथियार निर्माता कंपनियां इस समय जमकर कमाई कर रही है। हालिया समय में जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, एस्टोनिया और इंडोनेशिया ऐसे देश हैं, जिन्होंने पिछले एक से डेढ़ महीने के भीतर अमेरिका से हथियारों की डील को फाइनल किया है। इन हथियारों की बिक्री से अमेरिका को लगभग 30 अरब डॉलर का मुनाफा होगा।
पिछले महीने ही चीन से जारी तनाव के बीच जापान ने अमेरिकी विदेश विभाग से 150 हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें खरीदने की मंजूरी पाई थी। अमेरिका से ही खरीदे हुए एफ-35 लड़ाकू विमानों पर इन मिसाइलों को तैनात किया जाएगा। 293 मिलियन के सौदे का प्रमुख ठेकेदार रेथियॉन टेक्नोलॉजीज है। जापान इस अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनी से एआईएम-120 अमराम मिसाइलों की खरीद कर रहा है। अमेरिका ने इस डील को मंजूरी देते हुए कहा कि जापान की मातृभूमि और वहां तैनात अमेरिकी कर्मियों की रक्षा करके वर्तमान और भविष्य के खतरों को पूरा करने के लिए जापान की क्षमता में सुधार होगा। एआईएम-120 अमराम अडवांस मीडियम रेंज एयर टू एयर मिसाइल है। यह बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइल है, जिसे रात के समय भी ऑपरेट किया जा सकता है। इस मिसाइल की लंबाई 12 फीट है, जिसकी एक यूनिट की कीमत 3 लाख से 4 लाख डॉलर है।
हाल में अमेरिका ने 44 सैन्य डील को दी मंजूरी
जापान को मंजूरी देने के दिन ही अमेरिका ने सिंगापुर को भी 630 मिलियन डॉलर में लेजर-गाइडेड बम और विभिन्न अन्य युद्ध सामग्री बेचने की अनुमति दी। इसके चार दिन पहले ऑस्ट्रेलिया ने लॉकहीड मार्टिन से 235 मिलियन डॉलर में 80 हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों की खरीद की मंजूरी पाई थी। इस बीच दक्षिण कोरिया ने भी 130 मिलियन डॉलर में अपने एमएच-60आर हेलीकॉप्टरों के साथ पनडुब्बी रोधी युद्ध के लिए उपयोग करने के लिए डील को फाइनल किया था। विदेशों से आ रही हथियारों की डिमांड को देखते हुए पेंटागन की विदेशी सैन्य बिक्री की देख-रेख करने वाली ब्रांच डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्पोरेशन एजेंसी इन दिनों काफी व्यस्त है। इस साल के पहले सात महीनों में एजेंसी ने 44 सौदों को मंजूरी दी है। इसमें जर्मनी को 8.4 अरब डॉलर में 35 एफ-35 विमानों की संभावित बिक्री भी शामिल है। हालांकि, पिछले तीन साल में इस अवधि में 25, 43 और 40 सौदों को ही फाइनल किया था।
रक्षा खर्च को हर देश के लिए अहम और जरूरी माना जाता है। इसलिए हथियारों की डील और खरीद की बातचीत करने में महीनों तक लग जाते हैं। लेकिन वर्तमान में युद्धों और जारी संकटों में उलझे देश हड़बड़ी में अपनी-अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने के प्रयासों में जुट गए हैं। यही कारण है कि वे बातचीत में महीनों समय ने गंवाकर डील को तुरंत फाइनल कर रहे हैं।
धड़ल्ले से हो रही हथियारों की खरीद युद्ध और जारी संकटों का यह दौर अमेरिकी रक्षा कंपनियों के लिए एक स्वर्णिम काल बन गया है। अमेरिकी रक्षा कंपनियां हथियारों की आपूर्ति करके अरबों डॉलर कमा रही हैं। माना जा रहा है कि अब हथियार बाजार में अमेरिका का कब्जा और भी बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि हर स्वणि्र्ाम काल एक चेतावनी के साथ आता है।
इस सदी के पहले दो दशकों में अमेरिकी सैन्य खर्च में काफी वृद्धि हुई है, खासकर 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद, जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक हथियारों के व्यापार में बेतहाशा वृद्धि हुई है। लेकिन, एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ जो लड़ाई चलाई है, असल में उससे फायदा किसे हो रहा है। या फिर पिछले 20 सालों से अफगानिस्तान, इराक में जो अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के नाम पर जो जंग लड़ी है और अमेरिकी बमबारी में ये देश जो बर्बाद हुए हैं, उसका असल में फायदा किसे मिला है, क्योंकि इराक और अफगानिस्तान की जो स्थिति है, उसमें वे अगले कई सालों तक अपने पैरों पर नहीं खड़े हो पाएंगे। लेकिन, इस युद्ध का किसी न किसी को तो फायदा हुआ है।