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वर्ष 2030 तक एड्स के खात्में की संभावना

एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (एड्स) रोग, से दुनिया भर के देश लम्बे समय से ग्रस्त रहे हैं। लेकिन अब संभावना जताई जा रही है कि  अगले सात सालों के अंदर दुनिया भर के देश इस रोग से निजात पा सकते हैं। दरअसल एचआईवी – एड्स मामलों पर संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ‘UNAIDS’ द्वारा एक नई रिपोर्ट जारी की गई है। जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2030 तक एड्स का खात्मा करने के लिए एक स्पष्ट मार्ग मौजूद है। जिसके के लिए सभी देश के राजनेताओं को विज्ञान का पालन करना होगा। इसके अतिरिक्त दुनिया भर के देशों को  पर्याप्त धन निवेश करना होगा।  विश्व के कई हिस्सों से पिछले कुछ वर्षों में एड्स के मामलों में कमी की खबरें आई हैं। इस आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि अगर थोड़े और प्रयास कर लिए जाएं तो निश्चित ही एड्स की रोकथाम में मदद मिल सकती है।

भारत में एचआईवी /एड्स की स्थिति

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के  अनुसार विश्व स्तर पर साल 2022 के अंत तक 39 मिलियन (3.9 करोड़) से अधिक लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे। दुनियाभर में 15-49 वर्ष की आयु के वयस्कों में से अनुमानित 0.7% इसकी चपेट में हैं। एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) ही एड्स रोग का कारण बनती है।

 

जारी की गई रिपोर्ट में भारत द्वारा किए गए सराहनीय कदमों का उल्लेख किया गया है।  भारत सरकार ने एड्स प्रतिक्रिया में राष्ट्रीय स्वामित्व और नेतृत्व का प्रदर्शन किया है। भारत में 2022 में एचआईवी से पीड़ित 79% लोगों को अपनी स्थिति की जानकारी है।  जो लोग अपनी एचआईवी स्थिति जानते हैं, उनमें से एचआईवी से पीड़ित 86% लोग एंटीरैट्रोवाइरल उपचार करा रहे हैं। जिन लोगों का इलाज चल रहा है और वायरल लोड के लिए परीक्षण किया गया है, उनमें से 93% पीड़ितों का वायरल दबाने में सफलता प्राप्त हुई है।  देश के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता -, एचआईवी से पीड़ित उन लोगों तक पहुँचना है जो अपनी स्थिति के बारे में तो जानते हैं लेकिन इलाज के बारे में नहीं।

 

यूएनएड्स में एशिया प्रशान्त, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, एमॉन मर्फ़ी का कहना है कि इस लक्ष्य को हासिल करना, हमारे क्षेत्र के लिए एक चुनौती है, क्योंकि यहाँ लापरवाही के कारण जवाबी कार्रवाई में कमी आई है, जिससे नए संक्रमण सामने आ रहे हैं, और जो कि चिंता का विषय है।  रिपोर्ट में कहा गया है कि एड्स मुक्त विभिन्न देशों को करने के लिए वही कार्रवाई सफल हो सकती है जो मजबूत राजनीतिक नेतृत्व पर आधारित हो ।  इसके लिए चार क़दम अहमियत रखते हैं।  साक्ष्य-आधारित रोकथाम और उपचार बढ़ाना। उन असमानताओं से निपटना जो कई देशों में प्रगति को रोक रही हैं।  समुदायों और नागरिक समाज संगठनों को प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु सक्षम बनाना, और कार्रवाई के लिए पर्याप्त एवं टिकाऊ वित्तपोषण सुनिश्चित करना।

 

कम्बोडिया और थाईलैंड जैसे देश एड्स मुक्त की राह में श्रेष्ठ उदहारण है। परीक्षण और उपचार लक्ष्यों के लिए  95 आँकड़े तक पहुँचने के लिए ये देश बहुत करीब माने जा रहे हैं। एमॉन मर्फ़ी ने कहा है कि कंबोडिया और थाईलैंड यदि ऐसा कर सकते हैं , तो अन्य देशों व लोगों के लिए भी ऐसा करना संभव  होगा। हालांकि इसके लिए विभिन्न दृष्टिकोणों को मिलाकर काम करने की जरूरत है, जो एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व के जरिए आपस में बंधे हों।

एड्स को कैसे रोका जा सकता

 

संयुक्त राष्ट्र के रिपोर्ट अनुसार इस बीमारी से निजात पाने के लिए प्रमुख आबादी पर ध्यान देने की जरुरत है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि वे उन सेवाओं तक पहुँच सके है या नहीं। एमॉन मर्फ़ी के अनुसार  हमें नीति, विधायी और सामाजिक कार्य प्रणालियों की आवश्यकता है, ताकि इस तरह का वातावरण बनाया जा सके जिसमें एचआईवी पीड़ित लोग ज्यादा से ज्यादा समर्थित महसूस करें।

 

PrEP  एड्स के लिए असरदार

 

 

वहीं  स्व-परीक्षण, बड़े पैमाने पर उपचार सेवाओं जैसे कि रोकथाम के आधुनिक उपाय भी मुहैया करवाने होंगे। इसके लिए, PrEP का विस्तार करने की आवश्यकता है, जो बहुत से देशों में असरदार साबित हो चुका है।  जिन देशों ने इसे बड़े पैमाने पर अपनाया है, वहाँ नए संक्रमणों में भारी गिरावट देखी गई है। वे लोग जिन्हें एचआईवी नहीं है लेकिन एचआईवी होने का खतरा है, वे एचआईवी संक्रमण को रोकने के लिए हर दिन एचआईवी दवा लेते हैं। PrEP का उपयोग बिना एचआईवी वाले लोगों द्वारा किया जाता है, जिन्हें सेक्स या इंजेक्शन नशीली दवाओं के उपयोग के माध्यम से एचआईवी के संपर्क में आने का खतरा होता है। इसलिए, यह देश भर में उपलब्ध होना चाहिए।

सामुदायिक नेतृत्व को भी प्राथमिकता देनी होगी।  स्वास्थ्य सेवाएं तभी असरदार साबित होती हैं, जब वे समुदायों के साथ साझेदारी में काम करती हैं। एचआईवी पीड़ितों को एक सुरक्षित एवं गोपनीय कलंक-मुक्त वातावरण प्रदान करना और आबादी को जोखिम से दूर रखना।

 

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