लंबे इंतजार का मतलब पत्थर हो जाना भी होता है। अहिल्या ने इतना लंबा इंतजार किया कि उन्हें पत्थर मान लिया गया। इसे सामाजिक बहिष्कार भी माना जा सकता है जो किसी भी संवेदनशील इंसान को पत्थर बना देता है। पिछले कुछ समय से भारतीय स्त्रियों को पत्थर बना देने का टेªड चला रहा है। वह अहिल्या बना देने का टेªड चला था। वह टेªड यह था कि अप्रवासी पुरुष भारतीय स्त्रियों से शादी रचाते है, उन्हें या तो यही भारत में ही शादी के बाद छोड़ देते है या अगर उन्हें ले भी गए साथ तो वहां जाकर नयी नवेली दुल्हन को पता चलता था कि उनके पति की तो वहां पहले से ही पत्नी है।
ऐसे में वह या तो वह दासी की तरह रहती है। कुछ समय बाद वह उनको भारत भेज दिया जाता था। यहां वह अपने एनआरआई पति की सालों साल इंतजार करती है जो कभी खत्म नहीं होता।

एनआरओ पतियों की धोखेबाज की घटनाएं पंजाब में बहुत ज्यादा घटित होती है। पंजाब के कई संस्थाओं ने समय-समय पर अपनी चिंताए राज्य सरकार के सामने रखी भी। लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने इस बाबत गंभीरता नहीं दिखाई। अलबत्ता उन्होंने कानूनी पेचीदगियां बताकर अपनी लाचारी ही प्रकट की।
बीबीसी के एक खबर के मुताबिक रूपाली, अमृतपाल और अमरप्रीत भी अपने-अपने पतियों की यातना सह रही थी। इन तीनों में अपना दर्द सम्मान किया और अब वह इस तरह की लड़कियेां के वास्ते एक मोर्चा लेती दिखाई दे रही है। तीनों के पति शादी के बाद छोड़कर विदेश चले थे। थाना-अदालत एनआरआई कमीशन के बहुत चक्कर काटे। मगर हिम्मत नहीं हारी और अखिरकार तीनों की मुलाकात चंडीगढ़ के आरपीओ दफ्तर में हुई। तीनों अपने-अपने केस में अपने केस में अपना पति रिश्तेदारों की पासपोर्ट जब्त करवाए। इन तीनों लड़कियों से प्रेरणा लेकर और भी लड़कियां सक्रिय हो सकती है। अहित्याओं की यह जुम्बिश स्त्री के सम्मान के प्रति एक अहम उठता हुआ कदम है।