ग्रीस के बाद यूरोप का दूसरा सबसे पुराना राष्ट्र इटली इन दिनों चर्चा में है। अमूमन अस्थिर और खबरों में बने रहने वाले इस देश का सुर्खियों में रहना दिलचस्पी पैदा करता है। इन दिनों इटली के खबरों में बने रहने की वजह अप्रवासियों के बाबत उसकी नई नीति है जिसे काफी आक्रमक माना जा रहा है। इटली सरकार के गृहमंत्री मात्तेओ सलबीनो ने अपने अप्रवासी विरोध द्वारा इरादे जाहिर कर दिए। गृहमंत्री की लीग पार्टी का मानना है कि अप्रवासियों की बढ़ती भीड़ से इटली में रोजगार की स्थिति बदतर हुई है। बकौल मात्तेओ ‘जिंदगियां बचाने का बेहतर तरीका यही है कि लोगों को नाव पर सवार होने से रोका जाए। मैं यूरोपीय सहयोगियों और उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ इस पर काम करूंगा ताकि उन लोगों का यह भ्रम टूटे कि इटली में सबके लिए द्घर और नौकरी है, यहां इतालवी लोगों के लिए भी द्घर और नौकरियां नहीं हैं।’ मात्तेओ यही नहीं ठहर जाते हैं, बल्कि उनका यह भी मानना है कि सिर्फ नए अप्रवासियों को रोकने से काम नहीं चलेगा, अलबत्ता जो पहले आ चुके हैं उन्हें जल्द ही वापस भेजना होगा। इटली सरकार का यह निर्णय उस देश की परंपरागत सोच के विपरीत है। इसलिए इस फरमान को लेकर दुनिया में हैरानी का भाव है। इटली दुनिया में अप्रवासियों का चहेता देश था जहां सबके लिए द्वार खुले रहते थे। शायद यही वजह रही जो यहां लोग ज्यादा संख्या में आए। छोटे से इस देश में बाहरी लोगों की तादात बढ़ गई। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मान रहे हैं कि इटली के बढ़ते हुए मूड के मूल में यूरोपीय संद्घ का भेदभावपूर्ण रवैया भी रहा है। इटली लंबे समय से शरणार्थी समस्या का सामना कर रहा है। लेकिन उसकी समस्या के समाधान की दिशा में यूरोपीय संद्घ ने कभी भी किसी किस्म की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब इटली सरकार के इस फैसले से यूरोपीय संद्घ भी खुद को असहज महसूस कर रहा है। उसको भी इसका अंदाजा नहीं था कि सरकार ऐसा कठोर फैसला ले लेगी। इटली का जो आधुनिक रूप आया वह १८६१ से माना जाता है। इसका क्षेत्रफल ३ लाख १३०० वर्ग मीटर है जो महाराष्ट्र के क्षेत्रफल से ५ हजार किलोमीटर कम है। यह १० जून १९४६ यानी भारत की आजादी के साल भर पहले एक लोकतांत्रिक देश बना यहां दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, यहां के लोगों का जीवन स्तर बहुत ही बढ़िया है। असल में अप्रवासी मामले में आक्रामक नीति का आना वहां की सरकार में कट्टरवादी दल के सत्तासीन होने का नतीजा माना जा रहा है। अपने अस्थिर राजनीतिक इतिहास के लिए अभिशप्त इटली में दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक ६६ सरकार बदल चुकी हैं। मार्च २०१८ में हुए चुनावों के बाद लगभग तीन महीने की अस्थिरता से गुजर कर उसे एक नया प्रधानमंत्री मिला। अब वहां गठबंधन की सरकार है। और जो गठबंधन सरकार की मुश्किलें होती हैं वह भी साथ हैं। नए प्रधानमंत्री बने कानून के प्रोफेसर रहे जुनैद कोंते की मुश्किल यह है कि वह मजबूरी में साथ आए दो बेमेल विचार दलों की गठबंधन सरकार के मुखिया हैं। यह गठबंधन व्यवस्था विरोधी फाइव स्टार मूवमेड पार्टी और धुर दक्षिणपंथी पार्टी लोक यानी नार्थ यांग के बीच है। जो गृहमंत्री ने अप्रवासी की नीति में बदलाव लाए हैं वह नार्थ लीग पार्टी के ही हैं। सिर्फ इटली ही नहीं पूरी दुनिया में कुछ समय से कट्टरपंथी ताकतें सत्तासीन हुई हैं। सत्तासीन होते ही वह अपनी कट्टरता को इसी तरह की फैसले के जरिए अभिव्यक्त कर रही हैं। कई बार लगता भी है कि कहीं फिर से सौ साल पहले १९३० का वह दौर तो नहीं आने वाला है जब पूरी दुनिया में कट्टरता बढ़ी थी- हिटलर-मुसलोनी सरीखे राष्ट्र अध्यक्ष उभरे थे। लाखों लोगों को केवल नस्लीय आधार पर कल्लो गारद किया गया था। दूसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि बननी शुरू हो गयी थी। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, कोरिया, इटली में कट्टरपंथी ताकतें लगातार मजबूत हो रही हैं। जहां तक इटली का प्रश्न है तो इस छोटे से देश का राजनीतिक इतिहास बहुत विविधतापूर्ण रहा है। यहां उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रभावना उभरी। कई सालों के विदेशी प्रभाव से मुक्त होकर १८७७ तक इटली तकरीबन एकीकूत हो चुका था और एक बड़ी शक्ति बन गया था। इसके बाद पहले विश्वयुद्ध में जीत। फिर राजनीतिक अस्थिरता का दौर भी आया। फासिस्ट पार्टी के नेता बेनितो मुसोलिनी इटली के तानाशाह बने। दूसरे विश्वयुद्ध में इटली को पराजय का साथ करना पड़ा। १९४६ में जनमत संग्रह के बाद इटली को गणतंत्र द्घोषित किया गया। जानकारों की राय में इटली की वर्तमान सरकार में शामिल लीग पार्टी ने अपने उदय के साथ ही अप्रवासी विरोध अपनाया था। इसकी सोच में ही कट्टरता है और वह उत्तरी इटली और दक्षिणी इटली को बांटकर देखती है। बहरहाल भारी आर्थिक संकट से जूझ रहे इटली में गठबंधन की सरकार देश को कहां ले जाएगी, इसे लेकर वहां के लोगों में अनिश्चितता है।
आक्रामक अप्रवासी नीति
