नेपाल की संसद जिसे प्रतिनिधि सभा कहा जाता है, अब अस्तित्व में नहीं है। इस सभा का कार्यकाल 2022 में पूरा होना था, लेकिन नेपाली प्रधानमंत्री केपी ओली के संसद भंग का प्रस्ताव राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने स्वीकार कर समय पूर्व ही संसद भंग कर डाली है। अब अगले चुनाव तक औली कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर बगैर राजनीतिक दबाव सत्ता चलाने के लिए स्वतंत्र हैं। औली के इस फैसले से काठमांडू का राजनीतिक तापमान खासा गर्म और तनावपूर्ण हो चला है। सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल इस मुद्दे पर दो धड़ों में बंट गई है। पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ के समर्थक सात मंत्रियों ने औली के फैसले से नाराज हो इस्तीफा दे डाला है।
औली के मास्टर स्ट्रोक से तिलमिलाए प्रचंड
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ सीपीएन (माओवादी) के सह अध्यक्ष प्रचंड और वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ‘औली’ के संबंध पिछले लंबे अर्से से बेहद तनावपूर्ण हो चले हैं। तीन बरस पहले औली और प्रचंड ने अपनी पार्टियों का विलय कर एक नई पार्टी सीपीएन (माओवादी) का गठन किया था। इस पार्टी ने 2017 में हुए आमचुनावों में नेपाली कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत से मात देकर सत्ता हासिल कर ली थी। दोनों दलों का विलय लेकिन प्रचंड और औली धड़ों में एकता ला पाने में सफल नहीं रहा। पिछले तीन बरसों में नेपाल की राजनीति भारी अस्थिरता से जूझती रही है। प्रचंड और औली की निजी महत्वाकांक्षा इस अस्थिरता के पीछे एक बड़ा बनकर उभरी है। दरअसल, दोनों नेताओं की पार्टियों का विलय इस समझ के आधार पर हुआ था कि चुनाव बाद पहले ढाई बरस औली तो अगले ढाई बरस प्रचंड प्रधानमंत्री रहेंगे। प्रचंड समर्थकों का आरोप है कि औली ने ढाई बरस पूरे होने के बाद पद छोड़ने से मना कर डाला जिससे दोनों नेताओं के मध्य गहरा तनाव पैदा हो गया। रही-सही कसर प्रधानमंत्री औली द्वारा बगैर पार्टी को विश्वास में लिए एक अध्यादेश लाना रहा। यह अध्यादेश संवैधानिक पदों में आसीन व्यक्तियों के मध्य सत्ता संतुलन बनाने के अधिकार प्रधानमंत्री को देता है। औली के इस अध्यादेश का विरोध विपक्षी दलों के विरोध का कम खुद औली के दल के विरोध का ज्यादा शिकार रहा। नतीजा यह अध्यादेश प्रधानमंत्री को वापस लेना पड़ा। उन पर भारी दबाव डाल प्रचंड गुट ने एक तरह से प्रधानमंत्री को हाशिए में ला खड़ा कर दिया। इसके बाद से ही औली पर इस्तीफा देने का भारी दबाव भी बनाए जाने लगा था। औली ने प्रचंड को मात देने के लिए मास्टर चाल चल दी है। रविवार 20 दिसंबर को अपने कैबिनेट की आपात बैठक बुला उन्होंने संसद भंग करवाने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास करा राष्ट्रपति विद्या देव भंडारी को तत्काल भेज दिया। इससे पहले प्रचंड कुछ कर पाते राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह पर अपनी मुहर लगा डाली।
अब शुरू होगा राजनीतिक दंगल
प्रधानमंत्री ओली के खिलाफ आने वाले समय में भारी विरोध-प्रदर्शन होने तय हैं। बहुत संभव है कि प्रचंड अपनी पार्टी का विलय खारिज कर वर्तमान कार्यवाहक सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दें। साथ ही विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के लिए भी अपना जनाधार मजबूत करने का समय आ गया है। हालांकि प्रधानमंत्री औली के संसद भंग किए जाने को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है, असल दंगल राजनीति में अखाड़े पर होना तय है।