नेपाल ने भारत की तरफ से कैलाश मानसरोवर के लिए एक लिंक रोड के उद्घाटन पर आपत्ति जताई है। नेपाल ने कहा है कि यह कदम दोनों देशों के मध्य सममति के एकदम विरुद्ध है। शनिवार को नेपाल द्वारा लिपूलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक नजरिए से आवश्यक सर्कुलर लिंक रोड का भारत द्वारा उद्घाटन किए जाने पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।
उसके द्वारा कहा गया कि ‘एकतरफा कदम’ दोनों देशों के मध्य सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए बनी सहमति के विरुद्ध है। गौरतलब है कि रणनीतिक और सामरिक नजरिए से आवश्यक व चीन की सीमा से सटे 17,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रेअब इस सड़क के माध्यम से उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा।
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि सरकार को बहुत खेद के साथ सूचना मिली कि लिपूलेख दर्रे को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया है। इसी दर्रे को नेपाल अपनी सीमा का हिस्सा मानता है। शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 80 किलोमीटर लंबी इस नई सड़क का उद्घाटन किया था। उन्होंने कहा था कि यह आशा है कि इस सड़क के चलने से तिब्बत में कैलाश-मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों को सुविधा प्राप्त होगी। लिपूलेख दर्रे से यह तीर्थ करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर है।
भारत ने दिया जवाब
राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंस की मदद से पिथौरागढ़ से वाहनों के पहले काफिले को रवाना किया था। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कैलाश-मानसरोवर जाने वाले अब सभी यात्री तीन सप्ताह की जगह एक सप्ताह मे ही अपनी यात्रा को पूरा कर सकेंगे। शुक्रवार को परियोजना ‘हीरक’ के मुख्य अभियंता विमल गोस्वामी ने बताया था कि सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस मार्ग के पूरी तरह बन जाने से तवाघाट के निकट मांगती शिविर से प्रारंभ होकर व्यास घाटी में गुंजी और सीमा पर भारतीय भूभाग में स्थित भारतीय सुरक्षा चौकियों तक 80 किलोमीटर से ज्यादा दुर्गम हिमालयी क्षेत्र तक पहुंचना अब सुलभ हो गया है।
Raksha Mantri Shri @rajnathsingh today inaugurated the Link Road from Dharchula to Lipulekh (China Border) famously known as Kailash-Mansarovar Yatra Route. RM congratulated BRO for achieving the connectivity. 1/4 pic.twitter.com/cIHw6UHkKE
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) May 8, 2020
इस संपर्क मार्ग के उद्घाटन पर आपत्ति व्यक्त करते हुए नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह एकतरफा कदम दोनों देशों के मध्य प्रधानमंत्रियों के स्तर पर सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए बनी सहमति के विरुद्ध है। यह सहमति बनी थी कि सीमा का मुद्दा बातचीत के जरिए ही सुलझाया जाएगा। हालांकि, इस पर भारत की ओर से भी जवाब दिया गया और कहा गया कि यह इलाका भारतीय सीमा के भीतर आता है।
क्या है लिपुलेख दर्रा?
लिपूलेख दर्रे में नेपाल-भारत के मध्य कालापानी के निकट एक पश्चिमी बिंदु है। भारत और नेपाल दोनों ही ये दावा करते हैं कि कालापानी उनके देश का एक अभिन्न हिस्सा है। भारत का ये कहना है कि वह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का एक हिस्सा है हालाँकि नेपाल उसे धारचूला जिले का हिस्सा बताता है।
मंत्रालय का कहना है, “नेपाल सरकार हमेशा कहती रही है कि 1816 की सुगौली की संधि के मुताबिक काली (महाकाली) नदी के पूर्व में स्थित सारी जमीन, लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपूलेख नेपाल के हिस्से में जाएंगे।” उसने यह भी कहा कि नेपाल सरकार ने इसे अपने अतीत में भी बहुत बार दोहराया है और हाल ही में 20 नवंबर 2019 को भारत सरकार की ओर से जारी नए राजनीतिक नक्शे के जवाब में उसे लिखे कूटनीतिक नोट के जरिए भी कहा था।