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किडनी बेचने को मजबूर अफगानी

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद यहां के हालत बद-से-बदतर होते जा रहे हैं। वहां फैली बेरोजगारी, भुखमरी, संसाधनों का अभाव के साथ नागरिक अलग-अलग बीमारियों से जूझ रहे हैं। गत् वर्ष 20 साल बाद फिर से तालिबान का कब्जा होने से अफगानिस्तान की हालत वैसी ही हो गयी है जैसी 20 साल पहले थी। अफगानिस्तान में रह रहे नागरिकों का जीवन बेहद मुश्किल हो चला रहा है। पैसे की किल्लत उन्हें अपने शरीर को बेचने पर मजबूर कर रही है। शरीर को बेचकर शरीर की ही जरूरतों को पूरा करना अफगानियों की चरम् बदहाली को सामने लाता है। दरअसल, तालिबान को अफगानिस्तान में कब्जा किये हुए 6 महीने गुजर चुके हैं। पिछले छह महीने से ही अफगान के 95 प्रतिशत नागरिक बेरोजगार और खाने जैसी किल्लतों से जूझ रहे हैं। तालिबान के आने के बाद इसी डर से लाखों अफगानियों ने अपना देश छोड़ कर दूसरे देश चले गए और जो तालिबान के द्वारा किये गए वायदों को मान कर यही रह गए उनकी हालत जाने वालों से भी बुरी हो चुकी है।

अफगान के एक नागरिक नूरुद्दीन बताते हैं कि ‘मैंने अपनी किडनी बेच दी क्योंकि मुझे मेरे बच्चो का पेट भरना था जो कई दिनों से भूक से तड़प रहे थे। मेरे पास इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं था। एक किडनी के बदले मुझे 15 हजार रूपये मिले जिससे मेरे घर में कुछ दिन तक खाना आ पाया। वह पैसे कुछ दिन ही चले। मेरे पास कोई दूसरा तरीका नहीं बचा था इसलिए मैंने अपनी किडनी बेची और अब मैं बहुत पछताता हूं। मेरा परिवार फिर से भुखमरी की हालत में आ गया हैं। मैंने अपनी किडनी तो बेच दी लेकिन अब में काम नहीं कर सकता और भारी वजन भी नहीं उठा सकता। मैं और मेरा परिवार अब मेरे 12 साल के बेटे के ऊपर बोझ बन चुके हैं जो पूरा दिन जूते पोलिश करके 50 रुपए दिनभर में कमाता है। जिससे हम खाना भी भर पेट नहीं खा पाते हैं।’

दूसरी पीड़िता अजीता ने भी अपनी आप बीती बयान की कि, उसने एक दलाल से मिलकर अपनी किडनी 2 लाख 50 हजार में बेच दी। उसके तीन बच्चों में से 2 बच्चों का कुपोषण का इलाज चल रहा था उसके पास इलाज के पैसे नहीं थे। उसके पास सिर्फ अपना शरीर ही बाकी था जिसे उन्होंने बेच कर अपने परिवार का कर्ज उतारा और अपने बच्चों का इलाज भी कराया। तालिबानी कब्जे के बाद से उनके शोहर का काम बंद हो गया जिससे उनके इतने बुरे दिन आ गए हैं कि उन्हें शरीर के अंग बेचने पड़ रहे हैं। ये दो उदाहरण केवल बानगी भर हैं। असल में लाखों अफगानी ऐसे ही हालात से जूझ रहे हैं। अफगानिस्तान में पिछले 6 महीनों के दौरान इतनी ज्यादा किडनी बेची गई हैं कि वहा के एक जिले का नाम ‘एक गुदा जिला’ रख दिया गया है। अफगानिस्तान की इस हालत का जिम्मेदार तालिबान तो है ही लेकिन इसके साथ-साथ अमेरिका के पास रखी विदेशी मुद्रा कोष को फ्रीज करना भी है।

अमेरिका ने किया विदेशी मुद्रा कोष फ्रीज
अफगानिस्तान की विदेशों में लगभग 9 अरब डॉलर से अधिक धनराशि जमा है। इसमें से 7 अरब डॉलर अमेरिका के पास है और बाकी रकम जर्मनी, यूएई (संयुक्त अरब अमीरात) और स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा हैं। तालिबान के द्वारा फंड जारी करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार अपील की जा रही है। परंतु अमेरिका ने अफगानिस्तान को देने वाली राशि को फ्रीज कर दिया है। जिससे अफगानियों की समस्या बढ़ती जा रही है।
अमेरिका ने ये राशि फ्रीज करते हुए तर्क दिया है कि विदेशों में जमा राशि तालिबान की नहीं अफगानियों की है। जिसपर सिर्फ अफगान के नागरिकों का अधिकार है वह किसी भी कीमत पर यह राशि तालिबान के हाथ नहीं लगने देगा। अमेरिका के इस बयान से नागरिकों तक पैसा तो नहीं पंहुचा लेकिन उनकी आर्थिक हालत जरूर खराब हो गयी है। अफगानी सरकार का लगभग 80 प्रतिशत बजट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आने वाली धनराशि पर निर्भर है। इसका प्रयोग अस्पतालों को चलाने व स्कूल को फंड देने और सरकारी कर्मचारी इसी से अपना वेतन पाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद न मिलने के कारण वहां गरीबी बढ़ गई है, शिक्षकों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक को उनका वेतन नहीं मिल पा रहा है। बैंक खाते से रकम निकालने की सीमा को भी निश्चित कर दिया गया। जिसके बाद से ही
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से डगमगा गई है।

क्या मुद्दा है
9/11 हमले के बाद अमेरिकी प्रशासन ने तालिबान से ‘ओसामा बिन लादेन’ अमेरिका को सौंपने के लिए कहा था। तालिबान के मुखिया मुल्ला मोहम्मद उमर ने ओसामा को अमेरिका के हवाले करने से इनकार कर दिया था। इसी के चलते अमेरिका ने 2001 में अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। इस युद्ध के बाद अमेरिकी सेना 20 साल तक अफगानिस्तान में रही जो, पिछले साल ही वापस चली गई। जिसका फायदा उठाते हुए तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। तालिबानी कब्जे के चलते अमेरिका ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहायता पर रोक लगा दी और विदेशी मुद्रा कोष को भी फ्रीज कर दिया।

अफगान फंड
बाइडन प्रशासन ने 2021 से अफगान के 7 अरब डॉलर को जो ‘न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व’ में हैं उसे दो हिस्सों में बांटने का फैसला किया है। फंड का आधा हिस्सा अफगानिस्तान में सरकार को नहीं, बल्कि मानवीय सहायता के लिए नागरिकों तक पहुंचाया जाएगा, बाकी बचे हिस्से को 9/11 हमले के पीड़ितों को मुआवजे देने के लिए किया जायेगा। यह बयान व्हाइट हाउस की ओर से जारी किया गया है, यह फैसला अफगानिस्तान की जनता तक फंड पहुंचाने को देखते हुए लिया गया है। प्रशासन का कहना है कि अफगान लोगों तक मदद पहुंचाने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगे कि यह फंड तालिबान के हाथ ना लगे। इसी संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने 11 फरवरी 2022 को एक कार्यकारी आदेश पर दस्तखत भी किये हैं। अफगान मीडिया ने खबर दी है कि सैकड़ों लोगों ने काबुल में प्रदर्शन किया और बाइडेन के फैसले पर विरोध जताया। यहां के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने इसे अफगान ‘नागरिकों पर अत्याचार’ बताया है।

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