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Afghanistan की आखिरी उम्मीद अमरुल्ला सालेह…

Afganistan

देश पर कोई संकट आए और तब देश का नेतृत्व करने वाला राष्ट्रपति ही देश छोड़ दे तो वहां के नागरिकों का क्या होगा? ये हम अफगानिस्तान (Afghanistan ) के हालातों को देखकर अच्छे से समझ सकते हैं। विश्व के प्रमुख देशों का रवैया भी Afghanistan को लेकर बड़ा ही असमंजस पूर्ण रहा है। Afghanistan से अमेरिका की रूचि घटती गई तो अवसर मिलते ही तालिबान का कब्ज़ा हो गया। इस दौरान अपने देश के नागरिकों को छोड़कर खुद मुल्क से भाग जाने वाले राष्ट्रपति अशरफ गनी की लोग आलोचना कर रहे हैं तो वहीं अमरूल्ला सालेह की सलामती के लिए दुआएं मांगी जा रही हैं। फिलहाल अब तक अमरूल्ला सालेह अपने देश में अपने नागरिकों के साथ खड़े हैं।

गौरतलब है कि अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह खुद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर चुके हैं। उनका ये फैसला तब सामने आया जब राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके थे। सालेह ने कसम खाई है कि वह आखिरी दम तक तालिबान से लड़ेंगे और अपने मुल्क को कभी तालिबान के हवाले नहीं होने देंगे। भले ही अफगानिस्तान अब तालिबान के कब्जे में हो लेकिन अमरुल्लाह सालेह के रूप में अफगान नागरिकों को उम्मीद की एक नई किरण नजर आ रही है।

अफगानिस्तान पूरी तरह से तालिबान के हाथ में आ चुका है । लेकिन एक जगह ऐसी है जहां तालिबान कुछ नहीं कर पा रहा है? तालिबान इस जगह पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहा है। आखिरी उम्मीद के तौर पर एक प्रांत ऐसा है जो अंतिम सांस तक तालिबानियों को टक्कर देने के लिए तैयार है। ऐसे में सबके जेहन में सवाल है कि जब बड़े-बड़े वॉरलॉड, बलशाली अफगान लड़ाके और बड़े नेता तक अपना सब छोड़कर भागने को विवश हैं। देश के नागरिक तक देश छोड़ रहे हैं। तब ऐसे में एक नेता अमरुल्ला सालेह अगानिस्तान में एक ताकत बन उभरे हैं। उनको आखिर कौन इतनी हिम्मत दे रहा है ? वो कौन-सी ताकत है जिसके बलबूते उप राष्ट्रपति सालेह ऐसे खड़े है कि अब तक उनके कदम डगमगाने का नाम नहीं ले रहे हैं।

सालेह के पीछे की ताकत है पंजशीर। ये वहीं जगह है जहां का अफगान इतिहास कहता है कि गुलामी मंजूर नहीं। यहां के लोग मर जायेगें पर झुकेंगे नहीं। इसकी वजह कि ये प्रान्त है अहमद शाह मसूद का, जो कभी अफगान इतिहास के सबसे धाकड़ गुरिल्ला लड़ाके रहे। फिलहाल वह काबुल के नजदीक पंजशीर घाटी में रणनीति बना रहे हैं। जहां कहा जाता है कि कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसलिए पहले यह समझना भी जरुरी है कि क्यों खतरनाक है पंजशीर घाटी।

नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ मानी जाती है। पंजशीर देश के 34 प्रांतों में से उत्तर-पूर्वी इलाके का हिस्सा है। देश की राजधानी के पास स्थित इस घाटी को भौगौलिक दृष्टि से बेहद खतरनाक कहा जाता है। क्योंकि चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस इलाके में बीच में मैदानी भाग है। स्थानीय निवासी तो इसे भूल भुलैया भी बताते है और भूतिया जगह भी करार देते हैं। यह भी एक कारण है कि तालिबान अब भी इस पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहा है और 1980 से लेकर 2021 तक भी तालिबान का कब्ज़ा यहां नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि पूरे अगानिस्तान पर तालिबान ने कब्ज़ा कर लिया है लेकिन पंजशीर इलाके में वह अब भी असफल है।

सालेह अफगानिस्तान के सबसे बड़े हीरो

सालेह तालिबान के सबसे बड़े विरोधी कहे जाते हैं। कहा तो ये तक जाता है कि अगर तालिबान किसी से डर लगता है तो वह सालेह ही है। अमरुल्ला सालेह ने अपने ट्विटर पर लिखा, “मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं।” एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा कि मैं किसी भी कीमत पर तालिबान के आगे नहीं झुक सकता। इन ट्वीट्स से भी साफ़ जाहिर होता है कि पंजशीर पर तालिबान को कब्ज़ा करने के लिए काफी जद्दोजेहद करनी होगी।

पंजशीर की घाटी अहमद शाह मसूद का इलाका है। मसूद के इस इलाके में अब उनका भाई और बेटा साथ में रहते हैं। अब अहमद शाह मसूद के बेटे पंजशीर के नए नेता हैं जो हैं अहमद मसूद। तालिबान के सामने उन्होंने झुकने से इंकार कर दिया है। अब राष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह अहमद मसूद के साथ मिलकर तालिबान से मुकाबले की योजनाएं यही से बना रहे हैं।

सालेह ने अपने तेवर साफ दिखाते हुए ट्वीट किया- ‘कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। अटकलें लगाई जा रही है कि अब यही से तालिबान को देश से खत्म करने का आगाज़ किया जाएगा। ।

कौन थे अहमद शाह मसूद ?

पंजशीर घाटी के सबसे बड़े कमांडर अहमद शाह मसूद थे। अफगानिस्तान में उन्हें देश का शेर-ए-पंजशीर कहा जाता था। बलशाली होने के साथ-साथ युद्ध में भी उन्हें महारत हासिल थी। उन्हें अमरूल्ला सालेह के खास और करीब लोगों में गिना जाता रहा है। इसलिए सालेह तालिबान के बड़े विरोधियों में से एक हैं। 1990 के दशक में अहमद शाह मसूद और उनके सहयोगियों ने 1990 के दशक में साथ मिलकर तालिबान के राज को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। तालिबान के साथ उनके संघर्ष को अब तक लोग याद करते है इसलिए अफगान नागरिकों की नजर में वह अब भी हीरो है।

1997 में उत्तर अफगानिस्तान को तालिबान ने कब्ज़ा लिया और मज़ारेशरीफ़ को अपने कब्ज़े में ले लिया था। जिसके बाद मसूद के साथियों में ये डर था कि अब शायद पंजशीर को ज्यादा दिन तक वह नहीं बचा पाएंगे। उन्होंने इलाका छोड़ने की बात कही, लेकिन मसूद ने झुकने के बजाए लड़ने का सुझाव दिया। मसूद ने कहा था अगर मेरे साथ दो योद्धा भी बचेंगे तब भी मैं अपनी जमींन को छोडूंगा नहीं। 80 के दशक में अहमद शाह मसूद द्वारा सोवियत रूस की सेना से भी दो दो हाथ किए गए। तालिबान के कट्टर दुश्मनों में एक थे मसूद। जिसके चलते तालिबान और अलकायदा ने 9/11 के हमले से दो दिन पहले उनको फिदायीन हमले मार गिराया। अब उनका बेटा अहमद मसूद भी अपने पिता की तरह तालिबान से मुकाबले को तैयार खड़ा है।

इस बीच ये भी चर्चा है कि नॉर्दन अलायंस एक बार फिर से सक्रिय हो सकता है। जिसके कमांडर अमरुल्लाह सालेह बन सकते हैं। क्योंकि वह अफगानिस्तान में जनाधार वाले नेता माने जाते हैं और तालिबान के विरोधी भी हैं। उनका जन्म पंजशीर में ही हुआ है। अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में बने नॉर्दन अलायंस के वो सदस्य रहे चुके हैं। उन्होंने भी तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। अफगानिस्तान की सेना के साथ वहां की इंटेलिजेंस के मुखिया रह चुके हैं। वे इस पद पर छह साल तक रहते हुए तालिबानियों से लगातार लड़ते रहे। फिलहाल वह अब इस पद पर नहीं हैं लेकिन उनके तेवर तालिबान के लिए अब भी आक्रामक हैं।

नार्दन अलायंस क्या है ?

नॉर्दर्न एलायंस एक ऐसा संगठन है जो अपनी स्थापना के बाद से तालिबान का विरोध करता रहा है। उत्तरी गठबंधन का गठन 1996 में एक सैन्य मोर्चे के रूप में किया गया था। उत्तरी गठबंधन ने अफगानिस्तान को तालिबान के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए एक निर्णायक लड़ाई लड़ी। इस गठबंधन को ईरान, रूस, तुर्की, भारत और ताजिकिस्तान का समर्थन प्राप्त था। बाद में जब अमेरिकी सेना ने तालिबान पर हमला किया, तो उसे उत्तरी गठबंधन का समर्थन मिला। 2001 में तालिबान को हराने के बाद उत्तरी गठबंधन भंग हो गया और इसके सदस्य बाद में अफगान सरकार का हिस्सा बन गए।

भारत से भी था मसूद का संबंध

भारत ने अफगानिस्तान में अपना पहला विदेशी सैन्य बेस नार्दन अलायंस के सहयोग से ही बनाया था। बताया जाता है कि मसूद के साथ भारत के संबंध अच्छे थे। एक किस्से का उल्लेख अक्सर किया जाता है कि एक बार जब वह तालिबान के हमले में बुरी तरह घायल हो चुके थे, तो भारत ने उन्हें एयरलिफ्ट किया और ताजिकिस्तान के फारखोर एयरबेस में उसका इलाज किया गया था।

अफगानिस्तान में अभी भी एक लौ बाकी है जो देश में लोकतंत्र कायम करने का इरादा रखती है। पंजशीर घाटी तालिबान से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। चारों तरफ से हिंदुकुश के पहाड़ों से घिरी हुई पंजशीर की घाटी आबादी में करीब एक लाख ही है। लेकिन अफगान योद्धा अहमद शाह मसूद की यादें वहां चप्पे चप्पे पर मौजूद है।

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