अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता आने के बाद से ही महिलाओं के खिलाफ कई तरह के फरमान जारी किए गए। जिन्होंने महिलाओं का जीना दूश्वार बनाया हुआ है। महिलाओं के सपने कुचले जा रहे हैं। रोजगार से लेकर शिक्षा तक के अधिकार तालिबान ने महिलाओं से छीन लिए हैं।
अफगानिस्तान में 11 दिसंबर को आखिरी बार स्कूल गई छात्राएं अब दोबारा स्कूल नहीं जा पाएंगी। आम तौर पर छात्र/छात्राओं को पास होने की खुसी होती है कि वो अब अगली कक्षा में जाएंगे और धीरे धीरे अपने सपनों की ओर बढ़ेंगे। लेकिन अफगानी छात्रों का छठी कक्षा पास करना खुशी की वजह नहीं बल्कि व दुःख का कारण बन गया। तालिबान शासन में छठी कक्षा के बाद छात्राएं दोबारा स्कूल में नहीं पढ़ पाएंगी।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भी अफगानी लड़कियों की एक पीढ़ी हर रोज पिछड़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत रोजा ओटुनबायेवा ने पिछले हफ्ते ही इसे लेकर चिंता व्यक्त की थी। पिछले सप्ताह अफ़ग़ान शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी द्वारा कहा गया था कि सभी उम्र की अफगान लड़कियों को मदरसे में पढ़ने की इजाजत होगी। इन मदरसों में परंपरागत से लड़के ही पढ़ते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इन मदरसों में सभी उम्र की लड़कियां पढ़ सकेंगी। तालिबान द्वारा इसकी इजाजत तो देदी गई लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि क्या इन मदरसों में आधुनिक विषयों को पढ़ाया जाएगा !
काबुल में रहने वाली कई छात्राएं अपने भविष्य को लेकर परेशान है। बहारा नामक छात्रा का कहना है कि छठी कक्षा पास कर लेने का अर्थ होता है कि सातवीं कक्षा में पढ़ेंगे लेकिन हम सभी सहपाठी रोइ और हम निराश थे। काबुल में रहने वाली 13 वर्षीय एक अन्य छात्रा सेतायेश साहिबजाद अपने भविष्य को लेकर चिंतित है और अपने सपनो को साकार करने के लिए स्कूल नहीं जा पाने के कारण उदास है। इस छात्रा का कहना है कि वो अब अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो सकती। वो अध्यापिका बनना चाहती थी लेकिन अब वो अपनी पढाई आगे पूरी नहीं कर सकती ,सातवीं कक्षा में पढ़ाई करने के लिए स्कूल नहीं जा सकती। गौरतलब है कि तालिबान द्वारा महिलाओं पर लगाए गए उन तमाम प्रतिबंधों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी आलोचना हुई है। ये प्रतिबंध भी एक वजह बने रहे कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान को अफगानिस्तान के वैध शासक के रुप में मान्यता नहीं दी गई।