- प्रियंका यादव, प्रशिक्षु
अफगानिस्तान इस समय गंभीर आर्थिक और मानवीय संकट का सामना कर रहा है। अमेरिका द्वारा गत् वर्ष ‘नाटो’ देशों की सेना की वापसी का फैसला अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी का कारण बना। अब बाइडन प्रशासन ने अमेरिकी बैंकों में अफगानिस्तान के जमा सात अरब डालर की रकम वापसी पर रोक लगा डाली है। अमेरिका का तर्क है कि वह इस रकम को तालिबान के हाथों नहीं पड़ने देना चाहता तो आम अफगानी इसे अपने उपर अत्याचार करार दे रहा है
अफगानिस्तान की विदेशों में 9 अरब डॉलर से अधिक धनराशि जमा है। इसमें से 7 अरब डॉलर अमेरिका के पास है और बाकी रकम जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात और स्विट्जरलैंड में है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान इस रकम की वापसी के लिए अपील कर रहा है ताकि अफगान पर मंडरा रहे मानवीय संकट को रोका जा सके। अमेरिका ने लेकिन अफगानिस्तान की इस धनराशि को फ्रीज कर दिया है ताकि ये तालिबानियों के हाथ न लगे। गौरतलब है कि अफगानी सरकार का लगभग 80 प्रतिशत बजट अंतरराष्ट्रीय स्तर से बतौर मदद धनराशि पर निर्भर रहता आया है। अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जे होने के बाद विदेशों में अफगान फंड की रकम अमेरिका और दूसरे देशों ने जब्त करने का फैसला किया था। अफगानिस्तान के नाम पर विदेशों में कुल 9 अरब डॉलर की रकम मौजूद हैं। जिसमें से सात अरब अमेरिका में और बाकी रकम का ज्यादातर हिस्सा जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात और स्विट्जरलैंड में है। तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार 97 फीसदी आबादी के गरीबी रेखा से नीचे डूबने के जोखिम के साथ तेजी से बिगड़ते मानवीय संकट की चपेट में है। ऐसे में अमेरिका द्वारा अफगान फंड को जब्त करने से हालात और बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया है।
पहले से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद न मिलने के कारण वहां गरीबी बढ़ गई है, शिक्षकों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक को उनका वेतन नहीं मिल पा रहा है। बैंक खाते से रकम निकालने की सीमा को भी निश्चित कर दिया गया है। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से डगमगा गई है। हालात इतने खराब हो चले हैं कि 95 प्रतिशत लोगों के पास भरपेट खाना नहीं है। भुखमरी की वजह से करीब ढ़ाई करोड़ लोगों की हालत बेहद खराब होने की बात मानवाधिकार संगठन उठाने लगे हैं। जनवरी 2022 में तालिबान ने सरकारी नौकरी करने वालों को वेतन जारी तो किया लेकिन अब उसका खजाना खाली हो चला है जिससे वेतन मिलने की संभावना लगभग समाप्त हो चली है। जनआक्रोश को थामने की नीयत से तालिबान ने देश में मार्च आखिर तक स्कूलों को दोबारा खोले जाने का एलान कर दिया है लेकिन शिक्षकों को वेतन नहीं मिलने के चलते ऐसा होता संभव नहीं नजर आ रहा है। कई राज्यों में महिलाओं के विश्वविद्यालय फिर से खोल दिए गए हैं। तालिबानियों का कहना है कि फरवरी अंत तक महिलाओं और पुरुषों के विश्वविद्यालय पूरी तरह खोल दिए जाएगे। माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय मदद लेने के लिए तालिबान लड़कियों के स्कूल और विश्वविद्यालय को वापस खोल रहा है।
अफगान फंड को क्यों किया गया फ्रीज?
9/11 हमले के बाद अमेरीकी प्रशासन ने तालिबान से ‘ओसामा बिन लादेन अमेरिका को सौंपने कहा था। लादेन सूडान से निकलने के बाद अफगान में रह रहा था। तब तालिबान के मुखिया मुल्ला मुहम्मद उमर ने ओसामा को अमेरिका के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसी चलते अमेरिका ने 2001 में नाटो देशों की सैन्य मदद लेकर अफगानिस्तान पर हमला कर दिया था। इस युद्ध के बाद अमेरिकी फौज 20 साल तक अफगानिस्तान में रही। गत् वर्ष इस सेना की अमेरिका वापसी बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी समर्थन से चल रही सरकार गिर गई और तालिबान ने देश पर कब्जा कर डाला। अगस्त 2021 में तालिबान सत्ता में आया। इसके विरोध में अफगानिस्तान को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहायता रोक दी गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान सरकार को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है। मानवाधिकारों के भारी उल्लंघन के चलते अमेरिकी पहल पर अफगानिस्तान को मिलने वाली इस आर्थिक मदद को रोका गया है। साथ ही अब विदेशी बैंकों में जमा अफगानी धन भी फ्रीज कर दिया गया है।
अफगान फंड के दो हिस्से
बाइडन प्रशासन ने 2021 से अफगान की रकम 7 अरब डॉलर जो ‘न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व’ में जब्त रखी है। उसे दो हिस्सों में बांटने का फैसला किया है। फंड का आधा हिस्सा अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के लिए दिया जाएगा, बाकी बचा हिस्सा 9/11 हमले के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए इस्तेमाल होगा। व्हाइट हाउस से जारी एक बयान अनुसार इस आदेश के जरिए 3 .5 अरब डॉलर का फंड अफगानिस्तान को उपलब्ध कराया जाएगा, बाकी के साढ़े तीन अरब डॉलर अमेरिका में ही रहेंगे और इसे 9/11 पीड़ितों को मुआवजा देने में खर्च किया जाएगा। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि अफगान लोगों तक मदद पहुंचाने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगे कि यह फंड तालिबान के हाथ ना लगे। अमेरिका के इस फैसले की अफगानिस्तान में कड़ी आलोचना होने लगी है। यहां तक की अमेरिका परस्त पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई तक ने इसका भारी विरोध करते हुए इसे ‘अफगान नागरिकों पर अत्याचार’ कह डाला है। अफगान पर अब तालिबान का कब्जा है पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है। अमेरिका के अफगान फंड के दो हिस्से को लेकर तालिबान अमेरिका का विरोध कर रहा है। अमेरिका का कहना है 11 सितंबर (9/11) के हमले के लिए विमानों को हाइजैक करने वालों में कोई भी अफगानी नहीं था लेकिन हमले की साजिश रचने वाले अल कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को तालिबान की सरकार ने शरण दी थी। इसी के चलते वह अफगान फंड का एक हिस्सा मुआवजे के लिए रख रहा है। तालिबान ने अपने बयान में कहा कि इस कदम के लिए अमेरिका को ‘अंतरराष्ट्रीय आरोप’ झेलने होंगे और अगर फैसला नहीं बदला गया तो अफगान के साथ उसके संबंध खराब होंगे। अफगान की सरकारी मीडिया ‘आरटीए’ को दिए इंटरव्यू में अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री और तालिबान संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे ‘मुल्ला याकूब’ ने भी इस फैसले को ‘क्रूर’ बताया है। इनके पिता मुल्ला उमर ने ही ओसामा बिन लादेन को अमेरिका के हिरासत मे देने से इंकार कर दिया था जिसके बाद अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान पर धावा बोल दिया था।
बीच मझधार में छोड़ गया अमेरिका
दरअसल, अफगानिस्तान की आम जनता जितना तालिबान से नाराज है उससे कहीं अधिक अमेरिका से उसकी नाराजगी है। आम अफगानी का मानना है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान को जानबूझकर तालिबान के हाथों खत्म होने के लिए छोड़ दिया है। गौरतलब है कि 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने नाटो देशों के संग मिलकर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का एलान कर अफगानिस्तान में नब्बे देशों की सेना तैनात कर डाली थी।
बीस बरस तक अफगानिस्तान में रही इस सेना को यकायक ही वापस बुलाने का अमेरिकी फैसला तालिबान की सत्ता में वापसी का कारण बन गया। बीस वर्ष युद्ध के पश्चात अफगान को अमेरिका बीच मझधार में 30 अगस्त 2021 को छोड़ कर चल दिया। इस दिन अमेरिका के अंतिम सैनिक विमान ने काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी। विदेशी सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान ने तेजी से अफगान पर कब्जा कर लिया। हालात ऐसे उत्पन्न हुए कि अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी को देश छोड़ के जाना पड़ा। अपनी ऐसी स्थिति के लिए अफगान अमेरिका को दोषी मानता है। अमेरिका ने अपनी सेना बुलाने के पीछे बेतुका तर्क दिया था कि ‘जब अफगानी सैनिक इस जंग को नहीं लड़ना चाहते ,ऐसे में अमेरीकी सेना अपनी जान क्यों दे।’ आज अफगान के हाल बदहाल है। लोग अपना देश तक छोड़ना चाहते हैं लेकिन उसमें कामयाब कुछ लोग ही हुए हैं। सबसे ज्यादा संकट महिलाओं और बच्चों के लिए बना हुआ है। महिलाओं पर तालिबान के अत्याचार की कोई सीमा नहीं है। उनके सामने कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। ऐसे में अमेरिका ने केवल अपने ही नागरिकों को वहां से बाहर निकाला जिसके लिए अमेरिका पर सवाल उठ रहे हैं।