अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं जल्द से जल्द हटाना चाहता है हालांकि तालिबान के संग उसकी बातचीत अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है लेकिन इतना तय है अमेरिका के अगले वर्ष होने जा रहे चुनाव से पूर्व ट्रंप किसी भी सूरत में अफगानिस्तान में अमेरिका की सेनाओं के संख्या बल को कम करना चाहते हैं l इसके पीछे एक बड़ा कारण पिछले 18 वर्षों से अमेरिकी सेनाओं का लगातार अफगानिस्तान में बने रहने के चलते हो रहा भारी खर्चा तो है ही साथ ही अफगानिस्तान के लोग भी विदेशी सेना के अपनी धरती पर लगातार बने रहने से खुश नहीं हैं l दूसरी तरफ यदि अमेरिका अपनी सेनाएं हटाता है तो भी वहां तालिबान के चलते शांति स्थापित होने की उम्मीद बहुत कम है l माना जा रहा है कि अमेरिकी सेनाओं के हटते ही वहां की निर्वाचित सरकार का पतन हो जाएगा और तालिबान दोबारा से सत्ता में काबिज हो जाएगा यदि ऐसा होता है तो एक बार फिर से अफगानिस्तान में कट्टरपंथियों की बन आएगी l इन सब आशंकाओं के बीच गत 21 अगस्त को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में एक बयान जारी करके भारत का नाम उन देशों में शामिल किया जो आतंकवाद के खिलाफ उनकी समझ से कठोर कदम नहीं उठा रहे हैं l ट्रंप ने यह बयान इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन की बढ़ती गतिविधियों की बाबत दिया l उन्होंने कहा कि रूस ईरान इराक अफगानिस्तान और तुर्की अपने अपने ढंग से आतंकवाद से जूझ रहे हैं लेकिन वहां भारत भी है जो बहुत संघर्ष नहीं कर रहा है l पाकिस्तान बगल में है वह संघर्ष कर रहा है लेकिन बहुत कम l अमेरिका वहां से 7000 मील की दूरी पर होने के बावजूद इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है l गौरतलब है कि 17 अगस्त को काबुल में एक विवाह समारोह में 65 लोगों की मौत की जिम्मेदारी ली है l अफगानिस्तान की सबसे बड़ी त्रासदी पिछले 40 सालों से बाहर लगातार विदेशी सेनाओं का बने रहना है l 1979 में सबसे पहले सोवियत संघ अफगानिस्तान में दाखिल हुआ था और लंबे अरसे तक वहीं रहा l इसके बाद पाकिस्तान के समर्थन से मुजाहिद्दीन 1992 में अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज हुए लेकिन उनसे अपनी स्वार्थ सिद्ध ना होता देख पाकिस्तान ने कट्टरपंथी तालिबान को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया 1996 में काबुल समेत देश के कई हिस्सों पर इन कट्टरपंथियों का कब्जा हो गया l तालिबान की सरकार के बनते ही अफगानिस्तान को कट्टरपंथी मुस्लिम राष्ट्र बनाने की तैयारियां शुरू हो गई बड़े स्तर पर महिलाओं का लड़कियों का शोषण हुआ उन्हें घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई l 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के ट्विन टावर पर हुए हमलों के बाद स्थितियां बदल गई अमेरिका ने सीधे अफगानिस्तान में शरण पाए ओसामा बिन लादेन के खिलाफ कार्रवाई के चलते अफगानिस्तान में अपनी सेनाएं भेजी जो पिछले 18 वर्षों से लगातार वहां जमी हुई है इसके बावजूद शांति स्थापित कर पाने में सफलता बहुत कम मिल पाई और अब लगातार आतंकी गतिविधियां वहां बढ़ रही हैं l दरअसल अमेरिका समर्थित अफगान सरकार तालिबान के कंट्रोल से बहुत सारे हिस्सों को आजाद नहीं करा पाई है और अब पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से तालिबानी लड़ाके लगातार वहां आतंकी हमलों की गतिविधियों में शामिल हैं और उन्हें इस्लामिक स्टेट का पूरा समर्थन मिल रहा है l अमेरिका अपनी घरेलू राजनीति के चलते अफगानिस्तान से मुक्ति पाना चाहता है समस्या लेकिन यह है कि वह पूरी तरह अपनी सेना हटाने के बजाय कुछ महत्वपूर्ण सैनिक अपना कब्जा बनाए रखना चाहता है लेकिन तालिबान इसके लिए राजी नहीं है l हालांकि अमेरिका को मजबूर होकर तालिबान से शांति बैठक करनी पड़ रही है लेकिन इसमें वहां की सरकार के शामिल ना होने से यह आशंका बलवती हो गई है शायद ही यह शांति वार्ता कुछ अच्छा नतीजा लेकर सामने आए l इस बीच कई बार अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाया कि वह सेना शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भेजे लेकिन भारत ने सैन्य हस्तक्षेप से हमेशा परहेज किया l इसके बजाएं अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने और हजारों की संख्या में वहां की युवाओं को स्कॉलरशिप देखकर स्किल मैनेजमेंट की दिशा में आगे बढ़ाने का काम किया है l इतना ही नहीं भारत अफगानिस्तान की सेना को अत्याधुनिक बनाने की दिशा में भी लगातार काम कर रही है लेकिन सैनिक हस्तक्षेप को लेकर भारत ने हमेशा दूरी बनाए रखी l इसके पीछे बड़ा कारण पाकिस्तान के साथ इस मुद्दे पर तनाव बढ़ना और अफगानिस्तान की घरेलू राजनीति में भारत की स्थिति का कमजोर होना होता l बहराल इस सच से अमेरिका भी इनकार नहीं कर सकता कि भारत की गुडविल अफगानिस्तान में अमेरिका और रूस से कहीं ज़्यादा है l
अफगानिस्तान के मसले पर भारत से खफा है ट्रंप
