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श्रीलंका को अपने पाले में रखने के लिए सक्रिय भारत और चीन 

देश और दुनिया के लिए इस समय सबसे बड़ी मुसीबत कोरोना वायरस बना हुआ है। भारत के लिए कोरोना वायरस के साथ -साथ पड़ोसी देश चीन ,नेपाल और पाकिस्तान से सीमा विवाद को लेकर तनावपूर्ण  माहौल के बीच  अब श्रीलंका से मजबूत संबंधों को  बरकरार रहने की उम्मीद है।

हाल ही में इस कोरोना काल के बीच श्रीलंका  में आम चुनाव संपन्न हुए हैं। इन चुनावों ने  जनता ने  फिर से महिंदा राजपक्षे की  श्रीलंका  पीपुल्स पार्टी को बड़ी जीत दिलाई। उनकी इस जीत को लेकर कहा जा रहा था कि श्रीलंका में एक बार फिर चीन के प्रति झुकाव रखने वाली सरकार की वापसी हुई है। अब श्रीलंका में राजपक्षे बंधुओं के सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने के साथ ही दोबारा चीनी प्रभुत्व का दौर शुरू होने से आशंकित भारत ने इसका तोड़ तलाशना शुरू  कर दिया है। इसी का नतीजा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह दिन के अंदर दूसरी बार श्रीलंका में प्रधानमंत्री पद पर वापस लौटे महिंदा राजपक्षे और उनके छोटे भाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को चुनावी जीत के लिए बधाई दी है। बधाई देने के साथ ही पीएम मोदी ने दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों को  बरकरार रहने की उम्मीद भी जताई।

श्रीलंका में पिछले सप्ताह एसएलपीपी को चुनावों में मिले भारी बहुमत के बाद कल 12 अगस्त  को शक्तिशाली राजपक्षे परिवार के चार सदस्यों की मौजूदगी वाली 28 सदस्यीय नई कैबिनेट ने शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति गोटबाया ने  रक्षा मंत्रालय जैसे अहम विभाग को अपने पास बरकरार रखा, जबकि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाली है।

इस दौरान पीएम मोदी ने दोनों राजपक्षे बंधुओं को संबोधित पत्र में बधाई देते हुए कहा कि वे कोरोना महामारी के चलते प्रभावित हुई द्विपक्षीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित  करने के साथ ही तमाम क्षेत्रों में उनके साथ काम करने को तत्पर हैं।

पीएम मोदी का यह संदेश पिछले सप्ताह श्रीलंका में चीनी राजदूत हु वेई के उस बयान को देखते हुए अहम है, जिसमें वेई ने महिंदा राजपक्षे को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना का बधाई संदेश देते हुए उन्हें अपने राष्ट्रपति शी जिनपिंग का पुराना दोस्त बताया था। लेकिन भारत को उम्मीद है कि 2015 में राजपक्षे के सत्ता से हटकर विपक्ष में जाने के बाद भी उनके साथ रखे गए नजदीकी संबंधों के बरकरार रहने की उम्मीद है।

चीन के साथ लगातार जारी तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारत को पड़ोसी मुल्क श्रीलंका के साथ आने वाले दिनों में अच्छे तालमेल की उम्मीद है। यही नहीं भारत को ये भी लग रहा कि श्रीलंका में नई सरकार आने के बाद चीन वापसी की तैयारी करेगा। हालांकि, राजपक्षे के विपक्ष रहने के दौरान जिस तरह के तेवर देखने को मिले थे उससे बीजिंग के यहां वापसी की संभावना कम नजर आ रही है।

भारत और श्रीलंका के बीच संबंध पहले से काफी मजबूत हैं, यही वजह है कि भारत ने पड़ोसी देश के साथ कनेक्टिविटी और आवास पर ध्यान देने के साथ ही वहां के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, 65 अनुदान सहायता परियोजनाओं को पूरा करने के बाद, भारत मौजूदा दौर में 20 और ‘जन-केंद्रित’ परियोजनाओं को लागू करने पर काम कर रहा है।

दूसरी ओर श्रीलंका के साथ संबंधों के लिए चीन की ओर से भी कवायद की जा रही है। महिंदा राजपक्षे को चीन के करीब भी बताया जाता है, उनके भाई गोताबाया राजपक्षे के भी चीन के प्रति झुकाव होने की बात कही जाती रही है। हालांकि, पिछले कुछ समय से हालात बदले नजर आ रहे हैं। जिस तरह से भारत ने श्रीलंका के साथ कई अहम प्रोजेक्ट पर काम किया इससे चीन की श्रीलंका में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की संभावना कम ही नजर आ रही है।

वर्ष 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे महिंदा राजपक्षे को देश में तीन दशकों से जारी गृहयुद्ध को खत्म करने का श्रेय तो दिया ही जाता है, लेकिन श्रीलंका जिस तरह से कर्ज के बोझ तले दबा है, उसके लिए भी राजपक्षे को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था 88 अरब डॉलर की है तथा उस पर 55 अरब डॉलर का कर्ज है। श्रीलंकाई केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर इंद्रजीत कुमारस्वामी के अनुसार श्रीलंका पर कर्ज उसकी जीडीपी का 77 फीसद है। श्रीलंका का यह कर्ज अनुपात पड़ोसी देश भारत, पाकिस्तान, मलेशिया और थाईलैंड से भी ज्यादा है। इस कर्ज में चीन का हिस्सा 10 प्रतिशत तथा एशियन डेवलपमेंट बैंक का हिस्सा 14 प्रतिशत है। लेकिन हाल ही में श्रीलंका ने कोरोना महामारी से निपटने के लिए चीन से 50 करोड़ डॉलर का तात्कालिक लोन लिया तथा सड़क परियोजना के लिए चाइना डेवलपमेंट बैंक से आठ करोड़ डॉलर का एक अन्य कर्ज लिया।

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