यूरोपीय देशों में इन दिनों सत्ता परिवर्तन का दौर चल रहा है। गत् माह यूरोपीय संघ के चुनाव में भी इसका असर दिखा था और दक्षिणपंथी ताकतें मजबूत हो उभरी थीं। अब फ्रांस में वामपंथी दलों ने हालिया सम्पन्न चुनाव में बढ़त बनाते हुए सरकार गठन की कवायद तेज कर दी है तो दूसरी तरफ ब्रिटेन में भी सत्ता परिवर्तन हो गया है। यहां लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर ने प्रधानमंत्री का पद भी सम्भाल लिया है
हालिया सम्पन्न ब्रिटेन और फ्रांस के चुनावों में एक ओर जहां फ्रांस में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला, वहीं ब्रिटेन में सरकार ही बदल गई है। यूरोपीय राष्ट्र फ्रांस की बात करें तो कोई भी दल 577 सदस्यीय नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए जरूरी 289 सीटों का जादुई आंकड़ा नहीं हासिल कर सका। लेकिन वामपंथी गठबंधन ने धुर-दक्षिणपंथी दलों को शिकस्त देते हुए सबसे ज्यादा सीटें हासिल कर गठबंधन सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी है। वामपंथी धड़े न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) के सदस्य चुनाव में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करने के बाद संसद के प्रथम सत्र से पहले ही अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। हालांकि ग्रीन, सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट और कठोर वामपंथी दल का यह गठबंधन अपने प्रधानमंत्री का नाम तय नहीं कर पाया है। वे यह भी तय नहीं कर पाए हैं कि क्या किसी दल के साथ मोटे तौर पर एक व्यापक सहमति के साथ काम करेंगे।
इससे पहले ब्रिटेन में भी चुनाव हुए। जिसमें भारतीय मूल के ऋषि सुनक को लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर से करारी शिकस्त मिली। लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर ने बतौर प्रधानमंत्री के रूप में 5 जुलाई से अपना कार्यभार संभाल भी लिया है। उन्होंने अपनी पार्टी से रेचल रीव्स को ब्रिटेन की पहली महिला वित्त मंत्री के तौर पर नियुक्त किया और डेविड लैमी को विदेश सचिव नियुक्त किया है। उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड के विगन संसदीय क्षेत्र से भारी अंतर के साथ फिर से जीत हासिल करने वाली भारतीय मूल की लीसा नंदी को प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने संस्कृति, मीडिया और खेल मंत्री नियुक्त किया है।
सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किए जाने के दौरान स्टार्मर ने ब्रिटेन के ‘पुनर्निर्माण’ की प्रतिज्ञा की। ब्रिटेन आम चुनाव में लेबर पार्टी की प्रचंड जीत के बीच कीर स्टार्मर ने अपना पहला भाषण देते हुए कहा था कि ‘हमारे देश ने बदलाव के लिए, राष्ट्र के नवीनीकरण और सार्वजनिक सेवा में राजनीति की वापसी के लिए निर्णायक रूप से मतदान किया है, इस तरह का जनादेश एक बड़ी जिम्मेदारी का भी अहसास दिलाता है, हम ब्रिटेन का पुनर्निर्माण के लिए काम करेंगे।’
गौरतलब है कि ब्रिटेन में 650 सीटों के लिए हुए चुनाव में बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 326 सीटों का है और लेबर पार्टी ने इससे कई अधिक सीटें प्राप्त की हैं। इसलिए यह कहना गलत न होगा कि कीर स्टार्मर ने आम चुनाव में भारी जीत हासिल कर लेबर पार्टी का वनवास खत्म किया है। दरअसल, लेबर पार्टी ने 14 साल बाद सत्ता में वापसी की है। किर स्टार्मर की अगुवाई में चुनाव मैदान में उतरी मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी को 641 में से 410 सीटों पर जीत मिली। यह जीत जो टोनी ब्लेयर की 1997 की भारी जीत के बाद सबसे बड़ी है। इसके विपरीत ऋषि सुनक की अगुवाई में चुनाव लड़ी कन्जर्वेटिव पार्टी 119 सीटें ही जीत सकी। भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने हार स्वीकार करते हुए आम चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी ली है। सुनक की पार्टी भले ही इस चुनाव में बुरी तरह से हार गई लेकिन वह खुद उत्तरी इंग्लैंड में अपनी रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट बचाने में कामयाब रहे। उन्होंने रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर से दोबारा जीत हासिल की। ऋषि सुनक की हार की एक वजह दक्षिणपंथी लोक-लुभावन राजनीतिक पार्टी रिफॉर्म यूके यूनाइटेड किंगडम भी रही हैं। रिफॉर्म यूके भले ही चार सीटों पर सिमट गई हो लेकिन कंजर्वेटिव की बड़ी हार और लेबर पार्टी की प्रचंड जीत में उसका अहम रोल माना जा रहा है। ब्रिटिश चुनाव नतीजों के अनुसार जिन सीटों पर लेबर पार्टी के उम्मीदवार आराम से जीतने में सफल रहे, उन सीटों पर रिफॉर्म यूके का प्रदर्शन का बेहतर रहा है। ऐसी कई सीटों पर निगेल फराज की पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। रिफॉर्म यूके के उम्मीदवारों ने ऋषि सुनक के पार्टी के उम्मीदवारों को तीसरे स्थान पर ढकेल कर कंजर्वेटिव पार्टी की एक बड़ी हार लिख दी। निगेल फराज हाउस ऑफ कॉमन्स पहुंचने के लिए सात बार चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन हर बार उनको हार का सामना करना पड़ा। 60 साल के निगेल फराज अपनी आठवीं कोशिश में जीत हासिल कर हाउस ऑफ कॉमंस पहुंचे हैं।
ऋषि सुनक के हार के कारण
करारी शिकस्त का सामना कर चुके ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए मतदाताओं से माफी मांगी। उनका मानना है कि इस हार में सीखने और विचार करने के लिए बहुत कुछ है। ऋषि सुनक ने आम चुनाव में अपनी हार स्वीकार करते हुए लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को जीत के लिए बधाई दी। 25 अक्टूबर, 2022 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने वाले 44 वर्षीय भारतवंशी ऋषि सुनक ने जनता को सम्बोधित करते हुए कहा ‘मैंने आपकी नाराजगी सुन ली है। ब्रिटिश लोगों ने एक गंभीर फैसला सुनाया है। सीखने और प्रतिबिंबित करने के लिए बहुत कुछ है। मैं नुकसान की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं।’ ब्रिटेन में करीब 14 लाख भारतीय रहते हैं। भारतीय होना ऋषि सुनक के लिए प्लस पॉइंट साबित हो सकता था। इस बार चुनावों में 30 भारतीय मूल के लोगों को कंजर्वेटिव पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था, वहीं लेबर पार्टी ने 33 भारतीय-ब्रिटिश को उम्मीदवार बनाया था। लिबरल डेमेक्रेट्स ने 11, ग्रीन पार्टी ने 13, रिफॉर्म यूके ने 13 और अन्य 7 भारतीय मूल के उम्मीदवार इस बार चुनावी मैदान में थे। लेकिन बावजूद उसके ऋषि सुनक को करारी हार झेलनी पड़ी। माना जा रहा है कि ये हार उनकी उन पांच प्रस्तावों के कारण हुई जो वो पूरे नहीं कर पाए। ये प्रस्ताव उन्होंने पिछले साल 2023 के जनवरी महीने में ब्रिटेन की जनता के सामने रखे थे।
ऋषि सुनक अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान मुद्रस्फीति को कम नहीं कर पाए और ना ही अर्थव्यवस्था को रफ्तार ही दे सके। जुलाई में आम चुनाव कराने के उनके फैसले से ठीक पहले यूके में तीन सालों में मंहगाई अपने निचले स्तर 2.3 प्रतिशत पर आ गई थी। सुनक ने कहा था कि ये इस बात का संकेत हैं कि उनका अर्थव्यवस्था के लिए जो योजना है, वो काम कर रहा है और देश मंदी से बाहर निकल रहा है। हालांकि उनके उस बयान की आलोचना की गई क्योकि कर्ज कम होने की बजाय लगातार बढ़ रहा था। इसी साल जून महीने में जारी किये गए आधिकारिक आकड़ों के मुताबिक ब्रिटिश सार्वजनिक ऋण मई से ही साल 1961 के बाद से अर्थव्यवस्था के हिस्से के रूप में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया जिससे 4 जुलाई को चुनाव के बाद देश की अगली सरकार के समक्ष वित्तीय दबाव बढ़ गया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने कहा कि राज्य नियंत्रित बैंकों को छोड़कर सार्वजनिक क्षेत्र का शुद्ध ऋण मई में बढ़कर 2.742 ट्रिलियन पाउंड (3.47 ट्रिलियन डॉलर) या सकल घरेलू उत्पाद का 99.8 प्रतिशत हो गया, जो एक साल पहले 96.1 प्रतिशत था।
ऋषि सुनक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मुद्दे को भी हल न कर पाए। ब्रिटेन में लंबे समय से लोग सिक लीव पर रहते हैं। जिसके कारण काम प्रभावित हो रहा है। लंबी अवधि की बीमारी में वृद्धि और छात्रों की अधिक संख्या के कारण श्रम शक्ति में भागीदारी 2015 के बाद से सबसे कम है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 16 से 64 वर्ष की आयु के लगभग 9.4 मिलियन लोग यानी 22 फीसदी न तो काम कर रहे हैं और न ही बेरोजगार हैं, जो महामारी से ठीक पहले 8.55 मिलियन थे। उनमें से, 2.8 मिलियन लम्बे समय से बीमार हैं और 206,000 अस्थायी रूप से बीमार हैं। पिछले साल ब्रिटेन के बजट प्रहरी द्वारा कहा गया था कि लम्बे समय तक बीमारी के कारण काम से दूर रहने वाले एक चौथाई लोग चिकित्सा उपचार की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसी बीच पिछले साल ब्रिटेन में सरकारी स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के कर्मचारियों ने वेतन बढ़ाने की मांग और भेदभाव को खत्म करने के लिए हड़ताल की थी जो करीब डेढ़ महीने तक चली। एनएचएस में 1.15 लाख भारतीय डॉक्टर हैं,इससे काम का बोझ इन्हीं डॉक्टरों और नर्सों पर पड़ रहा है। कई भारतीय डॉक्टरों का कहना है कि काम के दबाव से उनकी मानसिक और भावनात्मक सेहत पर बुरा असर पड़ा है। बर्न आउट के कारण डॉक्टर, नर्स सहित अन्य लोग एनएचएस छोड़ रहे हैं। सात साल में एनएचएस छोड़ने वाले लोगों की
संख्या तीन गुना बढ़ गई हैं। भारतीय मूल के डॉक्टरों को ही दूर-दराज के कस्बों गांवों में इलाज के लिए भेज कर उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री बनते वक्त अवैध प्रवासियों को रोकने का दावा किया था, इसमें भी वो सफल नहीं हुए। लेकिन इसी संदर्भ में बनाए गए सुनक सरकार की एक योजना विवादों में रही। उन्होंने छोटी नावों में सवार होकर आने वाले प्रवासियों को रवांडा भेजने की योजना शुरू की। लेकिन विरोधियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ये काफी महंगा साबित होगा। आलोचनाओं से घिरने के बाद उन्होंने तय किया कि चुनाव से पहले किसी प्रवासी को रवांडा नहीं भेजा जाएगा ब्रिटेन के गृह मंत्रालय द्वारा आंकड़े जारी करते हुए बताया गया कि इस साल के पहले पांच महीनों में छोटी नावों से देश में दाखिल होने वालों की संख्या उच्च स्तर पर पहुंच गई है, दस हजार ऐसे प्रवासी ब्रिटेन में दाखिल हुए थे।
इसी वर्ष समुद्र के रास्ते आने की कोशिश करती एक सात साल की बच्ची सहित पांच लोगों की मौत हो गई थी। इस अभियान में कंजर्वेटिव पार्टी ने सभी 18 साल के युवाओं के लिए अनिवार्य नेशनल सर्विस शुरू करने की बात कही थी। इन कारणों के अलावा लग्जरी लाइफ स्टाइल के चलते भी ऋषि सुनक का काफी विरोध किया गया था। भारतीय मूल के ब्रिटिश अर्थशास्त्री और लेबर पार्टी के पूर्व सदस्य लॉर्ड मेघनाद देसाई के कहने अनुसार ऋषि सुनक नेता नहीं हैं, बल्कि तकनीकी व्यक्ति हैं एक बैंकर हैं। लोगों के साथ उनका कनेक्ट आसानी से नहीं होता था। एक तरफ ये देखिए कि इन्होंने काम तो किया, लेकिन वादे पूरे नहीं कर पाए, इन्हें काम करने का पांच साल का मौका भी नहीं मिला।
विदेशों से कैसे रहेंगे संबंध
पांच जुलाई से ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाल रहे कीर स्टार्मर के सामने विदेशों से संबंध बनाए रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, साइबर हमलों को लेकर इसी साल ब्रिटेन की सरकार ने सख्ती दिखाते हुए चीन के राजदूत को तलब कर कहा था कि साइबर हमले और जासूसी लिंक की रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं है। वहीं मौजूदा समय के सत्ताधारी लेबर पार्टी का कहना है कि वह चीन के साथ मैनेजमेंट के लिए लॉन्गटर्म रणनीतिक नजरिया अपनाएगी। स्टार्मर के प्रधानमंत्री बनने पर चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, ‘एक स्थिर और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय सम्बंध दोनों देशों के लोगों के मौलिक हितों को पूरा करता है। साथ ही वैश्विक शांति, चुनौतियों और विकास के लिए साथ जवाब देने की जरूरत है। हम उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटेन के साथ आपसी सम्मान और सहयोग के आधार पर काम करेंगे तथा द्विपक्षीय संबंधों को सही रास्ते पर ले जाएंगे।
भारत-ब्रिटेन सम्बंधों पर क्या पड़ेगा असर?
ब्रिटेन की भारत के साथ संबंधों की बात करें तो लेबर पार्टी के वीरेंद्र शर्मा का मानना है कि भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच रिश्ते प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के नेतृत्व में और मजबूत होंगे। वीरेंद्र शर्मा ब्रिटेन में सबसे लंबे समय तक सेवाएं देने वाले भारतीय मूल के सांसदों में से एक हैं। स्टार्मर की जीत पर बधाई देते हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा है कि वो भारत और ब्रिटेन के बीच रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए सहयोग की आशा करते हैं। साथ ही उन्होंने ऋषि सुनक के नेतृत्व की तारीफ करते हुए उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्टार्मर ने 6 जुलाई को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और दोनों ने मौका मिलने पर जल्द से जल्द मुलाकात करने की उम्मीद जताई। मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एक ऐसा सौदा करने के लिए तैयार हैं जो दोनों पक्षों के लिए काम करेगा।