दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया इन दिनों बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। तेजी से अलोकप्रिय हो रहे राष्ट्रपति यून सुक-योल ने गत पखवाड़े देश में मार्शल लॉ लगाने का असफल प्रयास किया जिस चलते अब खुद उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल की लोकप्रियता तेजी घटती जा रही है। गत पखवाड़े उनके द्वारा उठाए गए एक गलत फैसले चलते देश में अराजकता का माहौल बना हुआ है। उन्होंने यकायक ही देश में मार्शल लॉ लगा दिया था। इस चलते दक्षिण कोरिया की राजनीति में उथल पुथल मच गई है। राष्ट्रपति यून सुक-योल के मार्शल लॉ’ लगाये जाने बाद राजधानी सियोल की सड़कों पर सशस्त्र विशेष बलों की टुकड़ियां उतर आईं। 6 घंटे के लिए लागू किए गए मार्शल लॉ ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंताएं उतपन्न कर दीं थीं, लोग सड़कों पर उतर आए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। हालांकि यून ने बाद में मार्शल लॉ लगाने के लिए माफी भी मांगी थी। इसके बावजूद 9 दिसंबर को राष्ट्रपति यून के खिलाफ विद्रोह के आरोपों की जांच हेतु उनके विदेशी यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया। राष्ट्रपति यून और पूर्व रक्षा मंत्री सहित नौ लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई गई है।
मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने यून के मार्शल लॉ लागू करने को असंवैधानिक, अवैध विद्रोह करार दिया है। अब राष्ट्रपति यून सुक-योल के सत्ता कब्जाने से जुड़ी परिस्थितियों की जांच की जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नेशनल पुलिस एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि हिरासत की शर्तें पूरी होती हैं तो पुलिस यून को हिरासत में भी ले सकती है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए किसी भी कानूनी कार्रवाई के खिलाफ छूट होती है लेकिन यह छूट विद्रोह या देशद्रोह के आरोपों में नहीं मिलती। इसलिए पुलिस राष्ट्रपति यून से पूछताछ कर सकती है और उन्हें ‘मार्शल लॉ’ के आदेश के लिए हिरासत में ले सकती है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों राष्ट्रपति यून को इस तरह के कदम उठाने पड़े। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता से वंचित कर दिए जाने के भय से मार्शल लॉ जैसे कदम उठाने पड़े।
साल 2022 में मामूली अंतर से पांच साल के लिए राष्ट्रपति नियुक्त होने के बाद से ही उनकी लोकप्रियता घटती जा रही है। इसी साल संसद के लिए हुए चुनाव में विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया को भारी जनादेश मिला। डीपीके को 170 सीटें मिलीं वहीं सत्ताधारी पीपल पावर 108 सीटों में सिमट कर रह गई। बहुमत में होने की वजह से विपक्षी दल राष्ट्रपति सरकार के कामकाज में दखल देने लगा। वे अपने एजेंडे के मुताबिक काम नहीं कर पा रहे हैं ।
राष्ट्रपति यून सुक-योल द्वारा तीन दिसंबर को विपक्षी पार्टी पर नॉर्थ कोरिया से सांठगांठ करने और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था। हालांकि इसके 6 घंटे बाद ही राष्ट्रपति द्वारा इस फैसले को वापस ले लिया गया। 8 दिसंबर को महभियोग प्रस्ताव से पहले लाइव टीवी पर सर झुकाते हुए राष्ट्रपति यून सुक-योल ने नागरिकों से माफी मांगी। उन्होंने स्वीकार किया कि मार्शल लॉ लगाने का उनका फैसला गलत था। उन्होंने कहा कि मैं मार्शल लॉ की इस घोषणा के लिए अपनी कानूनी और राजनीतिक जिम्मेदारी से नहीं बचूंगा। उन्होंने कहा कि दूसरा मार्शल लॉ कभी लागू नहीं होगा। उन्होंने नागरिकों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं अपने कार्यकाल सहित देश को स्थिर करने का काम अपनी पार्टी को सौंपूंगा। भविष्य में देश के मामलों के प्रबंधन के लिए मेरी पार्टी और सरकार पूरी तरह जिम्मेदार होगी ।
मार्शल लॉ की घटना के बाद विपक्षी दलों द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग चलाने का फैसला लिया गया। हालांकि संसद में यह पास न हो सका। दरअसल सत्तारूढ़ दल के ज्यादातर सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर वोटिंग का बायकॉट कर दिया था। वोटिंग के दौरान वो सदन से बाहर चले गए। यही वजह रही कि विपक्ष इसे पास करने के लिए जरूरी 200 वोट नहीं जुटा पाया। नेशनल असेंबली के स्पीकर वू वोन-शिक ने इस प्रस्ताव को ख़ारिज करते हुए तर्क दिया कि महाभियोग के लिए मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या आवश्यक दो-तिहाई बहुमत तक नहीं पहुंची। इसके परिणामस्वरूप महाभियोग वोट ‘वैध नहीं’ था। इसके आलावा उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि इतने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे पर भी वोट नहीं हो सका जो कि सत्तारूढ़ दल की ओर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने में विफलता को दर्शाता है। वहीं इस महाभियोग को लेकर सत्ताधारी दल पीपीपी ने मतदान के बाद दावा किया कि उसने गंभीर विभाजन और अराजकता से बचने के लिए महाभियोग को रोक दिया और कहा कि वह इस संकट को अधिक व्यवस्थित और जिम्मेदार तरीके से हल करेगी।
महाभियोग पर रोक लगने से संसद के बाहर खड़े लाखों प्रदर्शकारियों को निराशा का सामना करना पड़ा। पुलिस के अनुसार प्रदर्शनकारियों की संख्या करीब डेढ़ लाख थी, जबकि आयोजकों का दावा है कि यून को हटाने के लिए संसद के बाहर 10 लाख लोग प्रदर्शन कर रहे थे। हालांकि एक बार फिर नए सत्र की शुरुआत में महाभियोग लाने का विचार किया जा रहा है। ऐसे में यदि महाभियोग लागू होता है तो मई 2027 में पांच साल का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही राष्ट्रपति यून पद छोड़ सकते हैं। जिसके बाद दक्षिण कोरियाई संविधान के मुताबिक 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति चुनाव कराना जरूरी होगा।