नया साल 2021 आने को है और 2020 जाने को। अगर हम इस साल की घटनाओं को एक बार पलट कर देखें तो हमें कोरोना महामारी में हुई मौतें और कोरोना के कहर के अलावा ज्यादा कुछ नहीं दिखेगा। कोरोना वैक्सीन से उम्मीद लगाई जा रही हैं कि सब ठीक हो जाए। 2020 दुनिया के सभी देशों को हमने कोरोना से जंग करते देखा। लोगों को अपनों से दूर होते देखा । हर तरफ बस कोरोना ही कोरोना।
वहीं कोरोना संकट के बीच कुछ देशों की ऐसी घटनाएं भी चर्चा का विषय रही। जिसमें कहीं सत्ता बदल गई तो कहीं धर्म के नाम पर नस्लीय हिंसा भड़क उठी। हम आपको साल 2020 में दुनिया के कैलेंडर पर दर्ज की हुई सभी घटनाओं से तो अवगत नहीं करा सकते, लेकिन इस पोस्ट में हम उल्लेख करेंगे उनका जो घटनाएं चर्चा में रही और कई दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में बनी रही।
चीन से कोरोना वायरस का प्रसार
दुनिया के सामने साल 2020 की शुरुआत होते ही चीन के वुहान शहर से फैला एक वायरस चुनौती के रूप में खड़ा मिला। चीन के वुहान से पूरी दुनिया में कहर मचाने वाले इस वायरस ने धीरे- धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ऐसे ले लिया कि आने वाले साल में भी यह वायरस आपकी जान ले सकता है। नवंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में इसका पहला मामला सामने आया था जिसके बाद दिसंबर महीने तक इसने पूरे वुहान समेत चीन के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया। 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को लेकर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की।
भारत में इस संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह नवंबर 2019 से शुरू हुआ था। लेकिन इससे पहले देश में बड़े पैमाने पर परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण इसका पता नहीं लगाया जा सका था। 30 जनवरी को भारत में इस संक्रमण की पुष्टि केवल चीन से आने वाले एक यात्री ने की थी। 25 मार्च से भारत में तालाबंदी लागू की गई थी, जिसे 21 दिन, फिर 19 दिन और फिर 14-14 दिन के लिए बढ़ा दिया गया था। यह प्रक्रिया 31 मई 2020 तक जारी रही। हालांकि, इसके बाद, सरकार ने प्रतिबंधों के साथ लॉकडाउन हटा लिया। भारत में अब तक कोरोना वायरस के 98 लाख 84 हजार 716 मामले सामने आए हैं और अब तक संक्रमण के कारण 1 लाख 43 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
बगदाद में ईरानी सेनाध्यक्ष कासिम सुलेमानी की हत्या
3 जनवरी, 2020 को इराक के बगदाद हवाई अड्डे पर अमेरिकी हवाई हमले में कासिम सोलेमानी को मार दिया गया था। कासिम सुलेमानी ईरान का सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख मेजर जनरल था। जनरल सुलेमानी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर या इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की भी अध्यक्षता कर रहे थे, जो ईरान की सशस्त्र सेनाओं की शाखा थी। यह बल सीधे देश (ईरान) के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को रिपोर्ट करता है। इस हत्या के बाद अमेरिका ने अपने फैसले को सही ठहराया और कहा कि “वह अमेरिकी प्रतिष्ठानों और राजनयिकों पर हमले की साजिश रच रहा था”। साथ ही यह अमेरिकी सैन्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक निर्णायक रक्षात्मक कार्रवाई है।
सुलेमानी ने 1980 के ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत में अपना सैन्य कैरियर शुरू किया और 1998 से Quds Force का नेतृत्व करना शुरू किया। इसे ईरान की सबसे शक्तिशाली सेना के रूप में जाना जाता है। कासिम सुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए मुख्य रणनीतिकार माना जाता था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2007 से Quds Force को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया और इस संगठन के साथ किसी भी अमेरिकी लेनदेन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिका सुलेमानी को अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक मानता था। सुलेमानी को अन्य देशों के साथ ईरान के संबंधों को मजबूत करने के लिए जाना जाता था, सुलेमानी ने यमन से सीरिया और इराक से अन्य देशों के संबंधों का एक मजबूत नेटवर्क बनाया। ट्रम्प सरकार समय-समय पर ईरान पर प्रतिबंध लगाती रही।
यूएई-इजरायल जैसे कई देशों का रवैया भी ईरान के लिए रहा सख्त
वहीं, अमेरिका के दबाव में यूएई और इजरायल जैसे कई देशों का रवैया भी ईरान के लिए अच्छा नहीं रहा है। लेकिन इन सभी परिस्थितियों के बावजूद, कासिम सुलेमानी ने इसे ईरान के कवच के रूप में संरक्षित किया। Quds Force ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी इकाई का हिस्सा है। इसे ईरान की सबसे शक्तिशाली और समृद्ध सेना माना जाता है। Quds Force का कार्य विदेशों में ईरान समर्थक सशस्त्र समूहों को हथियार और प्रशिक्षण प्रदान करना है। इस क़ुद्स बल के प्रमुख कासिम सुलेमानी थे। लेकिन अमेरिका ने उन्हें और उनके Quds Force को सैकड़ों अमेरिकी नागरिकों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया था और उन्हें ‘आतंकवादी’ घोषित किया था। वर्ष 2018 में, सऊदी अरब और बहरीन ने ईरान के Quds Force को आतंकवादी और इसके प्रमुख कासिम सुलेमानी को आतंकवादी घोषित किया।
ट्रंप की गई सत्ता, बाइडेन को मिली अमेरिकी की कमान
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन ने अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रम्प को 7 नवंबर को कड़ी टक्कर दी। सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 77 वर्षीय पूर्व उपराष्ट्रपति बिडेन ने अमेरिका के पेन्सिलवेनिया राज्य में जीत के बाद 46 वें राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ कर दिया। इस राज्य में जीत के बाद, बिडेन को 270 से अधिक ‘इलेक्टोरल कॉलेज वोट’ मिले, जो जीत के लिए आवश्यक थे।
पेंसिल्वेनिया से 20 चुनावी वोटों के साथ, बिडेन के पास अब कुल 273 चुनावी वोट हैं। बिडेन डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने से पहले पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य कर चुके हैं। वह डेलावेयर के सबसे लंबे समय तक सेनेटर रहे हैं। भारतीय सीनेटर कमला हैरिस अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला हैं। 56 वर्षीय हैरिस देश के पहले भारतीय, अश्वेत और अफ्रीकी अमेरिकी उपराष्ट्रपति होंगे। बिडेन और हैरिस अगले साल 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।
किम जोंग उन की मौत की अफवाह
किम अपने दादा एवं उत्तर कोरिया के संस्थापक की 15 अप्रैल को 108 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे और इसके बाद से ही उनकी तबीयत खराब होने की अफवाहें फैल गईं थीं। जिसके बाद यह भी कहा गया कि उनकी मौत हो गई है। दरअसल, किम अपनी बिगड़ती तबीयत के बाद से मीडिया में दिखना बंद हो गए थे जिसके कारण यह अफवाह फैलने लगी की उनकी मौत हो गई है। लेकिन 20 दिन बाद एक रिबन काटने वाले समारोह में राज्य मीडिया द्वारा जारी की गई तस्वीरों में किम के नजर आने के बाद दक्षिण कोरिया के एक अधिकारी ने दावा किया कि किम ने यह सब एक नाटक किया था।
कैलिफ़ोर्निया जंगल की आग
दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया के जंगल में लगी आग ने भीषण रूप लिया जिसकी वजह से करीब 1,00,000 लोगों को वहां से निकलना पड़ा। आग में दर्जनों घर नष्ट हो गये। बता दें कि इस आग को बुझाने में कई दिन लगे। बता दें कि यह आग इतनी भयावह थी की इससे आसमान का रंग तक बदल गया था। इसकी तस्वीर खुद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सोशल मीडिया में शेयर की। ऐसी स्थिति में कैलिफ़ोर्निया को देखने के बाद लोग इसे दुनिया का अंत तक मानने लगे थे।
अमेरिका में रंगभेद को लेकर ‘ब्लैक लाइव मैटर’
अमेरिका में रंगभेद को लेकर ‘ब्लैक लाइव मैटर’ का आन्दोलन पूरे पश्चिमी जगत में छा गया । लेकिन अमेरिकी चुनाव के साथ खत्म हो गया।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया। मंत्रिमंडल के प्रमुख सचिव योशिहिदे सुगा को जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया।
फ्रांस ‘शार्ली हेब्दो’ पत्रिका ने फिर छापा कार्टून, फिर हुई हिंसा
फ्रांस को इस्लामी कट्टरपंथ से जूझना पड़ा। एक सितंबर को फ्रेंच साप्ताहिक मैगजीन ‘शार्ली हेब्दो’ ने ऐलान किया कि वो पैगंबर मोहम्मद के बेहद विवादास्पद कार्टून को फिर से प्रकाशित कर रहा है ताकि हमले के कथित अपराधियों के मुकदमे की शुरुआत हो सके। इसी पत्रिका में 2015 में हुए आतंकी हमले में 12 लोग मारे गए थे। उस कार्टून के फिर से प्रकाशित किए जाने के बाद फ्रांस में कई जगहों पर कट्टरपंथियों ने हिंसा फैलाई। एक टीचर का सर कलम कर दिया गया, तीन और लोगों की ह्त्या कर दी गयी। इसके बाद फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने इस्लामी आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ अभियान छेड़ दिया, जो जारी है।
अमेरिका और तालिबान के बीच ऐतिहासिक समझौता
डोनाल्ड ट्रम्प ने 2016 के चुनाव में वादा किया था कि वह अफगानिस्तान से सैनिकों को हटा लेंगे। उस पृष्ठभूमि के खिलाफ, अमेरिका ने तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। एक सैन्य वापसी सहित समझौते पर तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत होगी। भारत भी इस चर्चा पर ध्यान दे रहा है।
आर्मेनिया-अजरबैजान में युद्ध
लगभग दो दशक बाद, आर्मेनिया-अजरबैजान में युद्ध छिड़ गया। नागोर्नो-करबाख क्षेत्र पर कब्जे को लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध के प्रभावों को आम नागरिकों ने भी महसूस किया। सवाल यह था कि क्या यह युद्ध दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जाएगा। इस युद्ध में ड्रोन का भी इस्तेमाल किया गया था। युद्ध में पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था। क्षेत्र 1994 के युद्ध के दौरान आर्मेनिया द्वारा कब्जा कर लिया गया था। इसलिए, अजरबैजान इस हिस्से पर दावा कर रहा है।
बेरुत के बंदरगाह में सबसे बड़ा विस्फोट
इस साल 4 अगस्त को लेबनान की राजधानी बेरूत में बड़े पैमाने पर विस्फोट हुआ था। इमारतों को ढहा दिया गया। 200 से अधिक लोग मारे गए थे। बेरुत के बंदरगाह में अमोनियम नाइट्रेट के विस्फोट ने बंदरगाह और शहर को ही नष्ट कर दिया। सरकार और प्रशासन की लापरवाही के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए। परिणामस्वरूप, पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ा।