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सड़कों पर अमेरिकी महिलाएं

‘बच्चा आएगा तो सब ठीक हो जाएगा। अरे हमें भी घबराहट हुई थी, लेकिन अब देखो कितना प्यार करते हैं हमारे बच्चे हमसे। तुम बस बच्चा पैदा कर दो, हम उसका पालन-पोषण कर लेंगे, अब बच्चा कोख में आ गया है तो जीव हत्या थोड़ी करोगी . . .’
अक्सर इस तरह की बातें सुनने में आती रहती हैं। यह अपने आप में बड़ी विडंबना है कि जब एक महिला अपनी मर्जी से अबॉर्शन करना चाहती है तो उस पर बच्चा पैदा करने का प्रेशर बनाया जाता है। लेकिन अगर पता चल जाए कि पेट में लड़की है तो जीव हत्या, ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाओगी कहने वाले रिश्तेदार झट से गर्भपात की सलाह देने लग जाते हैं। यूएनएफपीए, United Nations Population Fund (UNFPA) की रिपोर्ट बताती है कि 2020 में भारत की करीब 4.6 करोड़ लड़कियां जन्म से पहले लिंग परीक्षण के कारण मीसिंग हैं।


ये तो विवाहित महिलाओं की बात थी, लेकिन जब बात अविवाहित लड़कियों की आती है तो उसे कई स्तरों पर नेगेटिव बातों से जूझना पड़ता है। चूंकि शादी के बिना बनाए गए शारीरिक संबंधों को भारतीय समाज स्वीकार नहीं करता है और स्टिग्मा की तरह देखता है। ऐसे में जब कोई लड़की गर्भपात कराने जाती है, तो डॉक्टर्स भी उससे शादीशुदा हो, बच्चे का बाप कौन है, मां-बाप को इस बारे में पता है, टाइप के गैरजरूरी सवाल पूछते हैं। कई डॉक्टर्स लड़कियों को डांटने भी लगते हैं कि घरवालों का भरोसा तोड़ दिया आदि-आदि। ऐसे वक्त में जब एक लड़की को सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वह लोगों के
जजमेंट झेल रही होती है।


गर्भपात तो दूर की बात है, आप किसी नॉर्मल सी प्रॉब्लम के लिए भी गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाओ तब भी वह दो-चार गैर जरूरी सवाल पूछेंगी। सही समय पर शादी और बच्चा पैदा करने जैसी बिन मांगी सलाह दे देंगी। पिछले कुछ दिनों से इस पर खूब चर्चा हो रही है। इस चर्चा के तार जुड़े हैं अमेरिका से। अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात से जुड़ा 50 साल पुराना फैसला-‘रो बनाम वेड’ को पलट दिया। अब वहां पर महिलाओं के पास गर्भपात का संवैधानिक अधिकार यानी Right to Abortion नहीं होगा। अब कुछ लोग अमेरिका की स्थिति की तुलना भारत से करते हुए कह रहे हैं कि हम इनसे दशकों आगे हैं। लेकिन इन सब के बीच एक सवाल सामने आता है कि क्या अबॉर्शन के मामले में भारत में महिलाओं की स्थिति अमेरिका से बेहतर है? भारत में गर्भपात से जुड़े क्या कानून हैं?


इंडिया में कब मिले अबॉर्शन राइट्स
बात है साल 1971 की। जब अमेरिका में रो जेन नाम की महिला ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वह तीसरी बार प्रेगनेंट हुईं थी, लेकिन बच्चा नहीं चाहती थी। लेकिन वहां पर अबॉर्शन की इजाजत केवल विशेष परिस्थितियों में ही थी। इसके लिए रो जेन ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसके बाद 1973 में अमेरिका की महिलाओं को अबॉर्शन का अधिकार मिला था। ये अधिकार अब एक बार फिर छीन लिया गया है।


जिस साल रो जेन कोर्ट पहुंचीं, उसी साल यानी 1971 में भारत में एमटीपी यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून आया था। समय-समय पर इस कानून में संशोधन हुए और 2021 में ही इसमें संशोधन आया है। यह कानून एक सीमा तक
महिलाओं को अबॉर्शन कराने की अनुमति देता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारत में महिलाओं को अबॉर्शन कराने की खुली छूट है। एमटीपी एक्ट में कई टर्म्स एंड कंडीशन्स दी गई हैं। अगर आपका कारण उस क्राइटेरिया को पूरा करता है, तब ही आप गर्भपात करा पाएंगी।


भारत में अबॉर्शन से जुड़ी समस्याएं
भारत उन कुछ चुनिंदा देशों में से एक है जहां महिलाओं को कानूनी तौर पर गर्भपात का हक है, लेकिन यहां समस्याएं अलग तरह की हैं। 2015 में लैंसेट की एक स्टडी आई थी। उसके मुताबिक, देश में 1.56 करोड़ गर्भपात हुए थे जिनमें से केवल 34 लाख मामले यानी 22 फीसदी से कम मामले सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचे थे। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया में ज्वाइंट डायरेक्टर आलोक वाजपेयी कहते हैं, ‘हमारे पास कानून है, लेकिन उसको लागू करने में खामियां है। यहां उचित सुविधाओं की कमी है जिन तक महिलाओं की पहुंच हो, इस कारण महिलाएं इस कानून का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं।’


भारत में आमतौर पर प्रेगनेंसी का फैसला सिर्फ महिलाओं का नहीं होता। शादीशुदा घरों में यहां बहुत कुछ पति और परिवार पर निर्भर करता है। यही बात अबॉर्शन केसेस पर भी लागू होती है। जैसे कानून तो कहता है कि अगर प्रेग्नेंसी की वजह से किसी महिला को मानसिक आघात पहुंचता है तो वह गर्भपात करवा सकती है। लेकिन भारत में जिस तरह का सोशल स्ट्रक्चर है उसमें परिवार और समाज का दबाव इतना हावी होता है कि महिला पर बच्चा पैदा करने का भारी दबाव होता है। ऐसे में अगर वह मानसिक रूप से तैयार नहीं होने की बात कहकर अबॉर्शन करवाना चाहे भी तो परिवार वाले उसे ऐसा करने नहीं देते।
स्टेटमेंट महिला अधिकार कार्यकर्ता अबॉर्शन के अधिकारों के मामले में इंडिया अमेरिका से आगे है? जवाब होगा हां, यहां का कानून महिलाओं को यह फैसला लेने का हक देता है कि बच्चा रखना चाहती है या नहीं। लेकिन वजह फैमिली प्लानिंग वाली है। एक औरत का उसके शरीर पर अधिकार वाली नहीं। कानून तो हमारा दुरुस्त है लेकिन दिक्कत सोशल स्ट्रक्चर की है जहां पति और ससुराल वाले एक लड़की, उसके शरीर और उसके पूरे अस्तित्व पर अपना हक समझते हैं। इस वजह से कई महिलाएं अपने शरीर से जुड़े फैसले खुद नहीं ले पातीं, उसके लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाती हैं।


कानूनी हक के बावजूद सुविधाओं की कमी और सामजिक दिक्कतों के कारण वह पूरी तरह अपने हक का इस्तेमाल नहीं कर पातीं। हमें जरूरत है सुविधाओं को महिलाओं तक पहुंचाने और सामाजिक रूप से कुरीतिओं को खत्म करने की ताकि महिलाएं अपने हक का इस्तेमाल कर सकें।

अमेरिका जैसे विकसित देश की अदालत द्वारा ऐसा फैसला लेना हास्यास्पद लगता है। विकास का अर्थ सिर्फ उगाही, अमीरी, पार्टी पब से नहीं होता है मानसिकता से होता है। उनके कानून धर्म पर फैसले लेते हैं। यही तो विडंबना है कि हम भारत जैसे देश जिसे लोग बड़ा पिछड़ा हुआ मानते हैं। लेकिन यहां का कानून बहुत बढ़िया है। बहुत प्रोग्रेसिव है। यहां इतने अधिकार स्त्रियों को मिले हैं जो बड़े-बड़े विकसित देशों की महिलाओं को नहीं मिले हैं। कई कानून हैं जो धार्मिक होते हैं। यह बहुत अजीब है कि इतने उन्नत देश में चर्च के प्रीस्ट पादरी की बातों पर चलते हैं। हर बात को जो धर्म के लोग बोलते हैं उस पर निर्णय लिया जाता है। लेकिन भारत जैसे देश में जो सेक्युलर है डेमोक्रेटिक सही अर्थों में हमारे देश में ऐसी बात नहीं है तो यह बहुत विडंबनापूर्ण स्थिति है कि जो 

विकसित देश हैं वहां ऐसे-ऐसे कानून हैं जिनमें बहुत पिछड़ापन, अंधविश्वास है। अमेरिका विकसित है ऊंची इमारतें हैं इससे मानसिकता तय नहीं होती है। ऐसे फैसलों से पता चलता है देश क्या सोचता है? भारत में बढ़िया है क्योंकि यहां डॉक्टर यह देखते हैं कि बस औरत की जान को खतरा न हो। यहां पर अबॉर्शन पर कोई हस्तक्षेप नहीं है। यहां औरत के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है। नैतिकता का प्रश्न आता है धार्मिक प्रश्न आता है। वह बातें अलग लेकिन वस्तुतः यह स्त्री का व्यक्तिगत मामला है। जब तक बच्चा जन्म नहीं लेता है। चाहे जीवन कभी भी शुरू हो लेकिन उस जीवन का कोई अर्थ नहीं धड़कन आती है लेकिन उसका कोई अस्तित्व नहीं होता है न वह सोच सकता है न समझ सकता है वह मां का हिस्सा होता है शरीर का हिस्सा होता है जब तक जन्म नहीं लेता है यह पूरी तरह से एक स्त्री पर आता है। स्त्रियां कभी भी अपनी मर्जी से अबॉर्शन नहीं करवाना चाहती हैं वह विवशता में ही करती हैं। सबसे पहले तो यह होता है कि कुछ बिन ब्याही मां होती हैं, कुछ बलात्कार की शिकार होती हैं, कुछ चाइल्ड एब्यूज के चलते 10 साल की बच्ची तक प्रेग्नेंट हो जाती हैं। मैंने एक घटना पढ़ी थी कि एक लड़की को उसके सौतले पिता ने रेप किया और वह लड़की प्रेग्नेंट हो गई। तो सोचिए उस बच्चे को कैरी करना उसकी मानसिक स्थिति की आप कल्पना कीजिए। उस लड़की की उस बच्ची की एक तो उसपर टॉर्चर ऊपर से वह शारीरिक तौर पर तैयार नहीं है। वह बलात्कार की शिकार है वह भी अपने किसी रिश्तेदार के द्वारा। तो लोग यह नहीं सोचते कि जो ऑलरेडी है समाज में जो व्यक्तित्व है जो फील है जो सोच सकती है, समझ सकती है उसकी एक इमोशनल दुनिया है। उसकी स्थिति क्या है उसका इस पर क्या असर होगा है। जो अभी तक आया नहीं जो समझ नहीं सकता है। उसके लिए कानून और नैतिकता के नाम पर हम एक जीते-जागते इंसान की बलि चढ़ा देते हैं।
जयश्री रॉय, साहित्यकार

मैं स्त्री तो बाद में हूं। लेकिन एक ह्यूमन बीइंग होने के नाते भी यह बहुत गलत है। यह बहुत ही सेंसिटिव इश्यू है। यह बिल पास किया है तो यह अगेंस्ट ह्युमिनिटी है, अगेंस्ट वीमेन है और जिस भी गवर्नमेंट ने ये बिल पास किया है वह महिलाओं के मुद्दे पर न तो सेंसिटिव है और न ही महिलाओं से उनका कोई सरोकार दिखता है। हालांकि वह 

गवर्नमेंट है तो कुछ भी कर सकती है। लेकिन यह महिलाओं की स्थिति और उनकी अस्मिता को और भी गटर में ले जाने का एक और तरीका दिया है। ऐसा नहीं है कि इससे महिलाओं पर एट्रोसिटी कम हो जाएगी, बल्कि और बढ़ जाएगी। प्रोब्लम्स बढ़ जाएगी, क्योंकि प्रेगनेंसी और कन्सीव करना केवल एक कंज्युमेशन का रिजल्ट नहीं है। आप देखिए। पूरे संसार में हर जगह रेप हो रहा है। फोर्स्ड कंज्युमेशन हो रहे हैं। जहां महिलाएं नहीं चाहती हैं, वहां भी उनके साथ जबरदस्ती की जाती है। छोटी बच्चियों के साथ रेप किया जाता है। इन रेप्स और बलात्कार या जबरन किए जाने वाले सेक्सुअल एक्ट हैं, उनसे जो प्रेगनेंसी होगी, वह अनवांटेड चाइल्ड, अनवांटेड सिचुएशन यह अनएक्सपेक्टेड सिचुएशन में जो कन्सीव होगा, उसका रिस्पॉन्सिबल कौन होगा? उसकी रिस्पॉन्सिबिलिटी कौन लेगा? एक तो महिलाएं ये सब झेलती हैं, अब उसे भी झेलेंगीं। सेक्स वर्कर्स और अन्य माध्यमों से देह व्यापार में उतारी गई बच्चियों, लड़कियों, स्त्रियों की सोचिए। उन्हें कौन सहारा देगा। उनका जीवन-यापन कैसे होगा? पहले उनके पास एक विकल्प था अनचाहे गर्भ से छूटकारा पाने का। आपको स्थिति सुधारनी है तो यह कानून बनाए कि जबरन बलात्कार या सेक्स संबंध बनाने वाले को सजा हो। तब ऐसी स्थिति में कमी आएगी। अगर एक हस्बैंड वाइफ या दो पार्टनर के अच्छे रिलेशन हैं तो बच्चे होने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर वे किसी भी कारण से बच्चा नहीं चाहते हैं तो वे भी
अबॉर्शन नहीं करवा पाएंगे। अगर कानून बनाना है तो अगेंस्ट रेप बनाएं। मैरिटल रेप पर कानून बनाए। फीमेल ओरिएंटेड राइट्स पर आप कुछ सकारात्मक बनाएं। महिलाओं को गर्भ धारण करने या गर्भ गिराने के अधिकार दें।
विभा रानी, लेखिका एवं रंगकर्मी

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