गु्रप ऑफ सेवन यानी जी 7 दुनिया के सात सबसे अमीर मुल्कों का संगठन है। 13 से 15 जून तक इटली में आयोजित हुए इस संगठन के 50वें शिखर सम्मेलन में इन सभी देशों के नेताओं के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति चर्चाओं में रही। इस सम्मेलन में युक्रेन और गाजा की जंग और उससे पैदा हुए हालातों पर चिंता जाहिर की गई। साथ ही यूक्रेन को संवाद और सहयोग बनाए रखने का भी ऐलान किया गया
इटली के अपुलिया के फसानो शहर के बोगो एग्नाजिया में 13 से 15 जून तक गु्रप ऑफ सेवन यानी जी 7 50वें शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। जहां जलवायु युद्ध विराम समेत कई मुद्दों पर चर्चा की गई और सहमति बनी। इस बैठक का उद्देश्य यूक्रेन के लिए जी-7 का सैन्य, बजट, मानवीय और पुनर्निर्माण संबंधी समर्थन जारी रखना था, हालांकि उसके पास इस युद्ध को खत्म करने के बारे में कोई रचनात्मक योजना नहीं थी। गाजा युद्ध विराम की अपील को भी इस बैठक के दौरान इजरायल द्वारा मंजूर नहीं किया गया। भारत और कनाडा के चल रहे तनावपूर्ण संबंधों के बीच इसी सम्मेलन में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात भी हुई।
युद्ध विराम प्रयास के अलावा इस जी 7 शिखर सम्मेलन में इस बार हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और औद्योगिक लक्ष्यीकरण एवं अनुचित कार्यप्रणालियों पर जी-7 का ध्यान विशेष रूप से ज्यादा था। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर सहित लगभग आठ बुनियादी ढांचे की गलियारों की सिफारिश की गई है। विभिन्न परियोजनाओं को क्रियान्वित करने पर ध्यान केंद्रित करने की कमी को भी रेखांकित किया गया है। जी 7 संगठन का भारत सदस्य नहीं है इसके बावजूद भारत लगातार 11 बार इसमें शामिल हुआ। प्रधानमंत्री लगातार पांचवी बार इसमें शामिल हुए। इस सम्मलेन के लिए इटली के प्रधानमंत्री ने जॉर्जिया मेलोनी ने भारत को आमंत्रित किया था। इटली ने भारत के अलावा ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, अल्जीरिया, अर्जेंटीना, मिस्र, केन्या, मॉरिटानिया, ट्यूनीशिया और संयुक्त राष्ट्र को भी आमंत्रित किया था। यूरोपीय संघ जी-7 का सदस्य नहीं है, लेकिन वह वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेता है। इस सम्मेलन में सात सदस्य देशों के नेता और यूरोपीय काउंसिल के प्रेसिडेंट और यूरोपियन यूनियन का प्रतिनिधित्व करने वाले यूरोपीय कमीशन के अध्यक्ष एक साथ एक मंच पर इकट्ठा हुए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी इस सम्मेलन का हिस्सा बने थे।
गौरतलब है कि 1973 से शुरु हुए जी 7 संगठन की यह पचासवीं बैठक थी। इस शिखर सम्मेलन में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन और अमेरिका के बीच 10 साल के लिए द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे यूक्रेन ने ऐतिहासिक बताया है। इस समझौते में लंबे समय से रूस-यूक्रेन युद्ध से जूझ रहे यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य और प्रशिक्षण देने की बात कही गई। हालांकि इस समझौते में यह कहीं स्पष्ट नहीं किया गया कि अमेरिका यूक्रेन में युद्ध लड़ने के लिए अपनी सेना भेजेगा।
यहां यह भी बताना जरूरी जी 7 के देशों ने रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा रखें हैं। बैठक के दौरान यह भी फैसला ले लिया कि वो रूस की जब्त संपत्ति की कमाई यूक्रेन को मदद की तौर पर देंगे। ऐसे में कहा जा रहा है कि यूरोप में एक नया युद्ध शुरू हो सकता है जिसमें रूस और जी-7 आमने-सामने होंगे। इससे अंदेशा लगाया जा रहा है कि यूक्रेन-रूस के बारूदी युद्ध के बाद अब आर्थिक युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। इटली में रूस के खिलाफ अमेरिका ने बड़ा ऐलान किया और स्विट्जरलैंड में यूक्रेन की मदद की घोषणा से पूरे यूरोप में हाहाकार मच गया है। इटली में ऐलान किया गया कि जी-7 देश रूस की 4177 अरब रुपए की सीज संपत्ति से होने वाली कमाई यूक्रेन को देंगे। इसके अलावा अमेरिका अपनी अलग भूमिका निभाते हुए यूक्रेन के एनर्जी सेक्टर को ठीक करने के लिए 125 अरब रुपए की मदद करेगा।
अमेरिका द्वारा यूक्रेन को हथियार सप्लाई किये जाने से रूस पहले ही नाराज चल रहा है। ऐसे में जी 7 देशों द्वारा सीज संपत्ति की कमाई यूक्रेन को देने से रूसी राष्ट्रपति पुतिन का पारा बढ़ा सकता है। हालांकि यूक्रेन का जोश में अब पहले से ज्यादा इजाफा हो गया है। इस दौरान वोलोडिमिर जेलेंस्की ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनकी पूरी टीम को आभार प्रकट किया और कहा कि हमने इटली में एक अहम समझौता किया और अब ये समझौता अमेरिका की वजह से थोड़ा और आगे बढ़ा है। ये एक ऐतिहासिक कदम है। जिससे यूक्रेन की सुरक्षा को मजबूती मिलेगी, जिसका असर पूरे यूरोप में होगा। 2022 से चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध को एक तरफ नाटो देश हथियार दे रहे हैं दूसरी और अमेरिका लगातार फंड दे रहा है और अब यूक्रेन को रूस की सीज संपत्ति की कमाई का पैसा भी मिलने जा रहा है। इस पर अमेरिका का साफ कहना है कि इस तरह की मदद लगातार होती रहेगी। अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा कि प्रेसिडेंट बाइडेन और मेरा समर्थन हमेशा यूक्रेन और वहां के लोगों के साथ है, जिसमें कोई शर्त नहीं है। हमारी मदद यूक्रेन के लिए चैरिटी नहीं है बल्कि हमारी रणनीतिक हित वहां के लोगों के भविष्य के लिए है।
कहा जा रहा है कि जी 7 देशों द्वारा यूक्रेन की मदद के लिए 4177 अरब रुपए की सीज संपत्ति की कमाई जो देने का ऐलान किया गया है उसका जवाब रूस दे सकता है। रूस जी-7 देशों की संपत्ति सीज कर सकता है। जिसकी कीमत करीब 6934 अरब रुपए है, जो यूक्रेन को मिल रही मदद से 2757 अरब रुपए ज्यादा है। अगर रूस ने ऐसा कर दिया तो ये जी-7 को रूस का करारा जवाब होगा। ऐसे में हो सकता है कि जी-7 के साथ अमेरिका भी बैकफुट पर आ जाए और यूक्रेन अकेला पड़ जाए।
इजरायल गजा युद्ध पर नहीं लगा पाया विराम
रूस यूक्रेन युद्ध के अलावा गाजा इजरायल युद्ध पर भी जी 7 विराम नहीं लगा सका। गाजा युद्धविराम की अपील को इजराइल ने मंजूर नहीं किया। जी 7 शिखर सम्मेलन के पहले दिन इजरायल -हमास युद्ध का मुद्दा छाया रहा। वैश्विक नेताओं ने फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास से पिछले महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा लाए गए बंधक-युद्ध विराम प्रस्ताव को स्वीकार करने का आह्वान किया। हालांकि इस मामले में हमास का कहना है कि किसी भी युद्ध विराम समझौते को युद्ध के स्थायी अंत की गारंटी देनी चाहिए। इस पर इजरायल ने हमास की मांगों और प्रतिक्रिया को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि हमास का यह बयान प्रस्ताव को खारिज करने के बराबर है। इस बीच शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहे इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने कहा कि उन्होंने गाजा में तत्काल युद्ध विराम के लिए अमेरिकी मध्यस्थता प्रस्ताव के लिए सर्वसम्मति से समर्थन की पुष्टि की है।
गौरतलब है कि इजरायल हमास के बीच चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए पिछले महीने अमेरिका एक प्रस्ताव लेकर आया था। जिसकी शुरुआत छह सप्ताह के पहले चरण के संघर्ष विराम से होगी, जिसके दौरान हमास महिला, बुजुर्ग और बीमार बंधकों को रिहा करेगा। इसके बदले में इजरायल उसकी जेलों में फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करता, गाजा से अपनी सेना को वापस बुलाता। गाजा पट्टी के सभी क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों को वापसी की इजाजत और प्रतिदिन 600 ट्रक मानवीय सहायता के आने की स्वीकृति देता। लेकिन हमास के रवैये से इजरायल ने अपना रुख और कड़ा कर लिया है।
जी 7 में कनाडा और भारत
कनाडा और भारत के रिश्ते मौजूदा समय में ठीक नहीं चल रहे हैं। बीते साल ट्रूडो ने कनाडाई संसद में भारत पर खालिस्तानी समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाया गया था। हालांकि भारत इन आरोपों को खारिज करता रहा है, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। संभावना जताई जा रही है कि अगले साल इस सम्मेलन की अध्यक्षता कनाडा कर सकता है। ऐसे में अंदेशा लगाया जा रहा है कि क्या भारत अगले साल इस सम्मेलन में शामिल होगा। इटली में पीएम मोदी से मुलाकात के एक दिन बाद ट्रूडो ने अपना बयान देते हुए कहा था कि ‘कनाडा अगले साल जी-7 के आयोजन को लेकर उत्साहित है, लेकिन अभी जी-7 की अट्टयक्षता इटली के पास है, इस साल के बाकी बचे हुए समय में मैं इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री मेलोनी और बाकी सहयोगियों के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि बाकी मुद्दों के बारे में भी हम बात करेंगे और बहुत कुछ तब तय होगा जब अगले साल हमारे पास जी-7 की अध्यक्षता होगी। नरेंद्र मोदी के तीसरे बार प्रधानमंत्री बनने पर ट्रूडो ने बधाई देते हुए कहा था कि वो भारत के साथ मिलकर काम करने की दिशा में देख रहे हैं।
क्या है जी- 7
जी-7 प्रमुख औद्योगिक देशों का एक समूह है। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, जापान, इटली और जर्मनी शामिल हैं। जी-7 कभी जी-6 तो कभी जी-8 भी हुआ करता था। शुरुआत में रूस भी इस संगठन का हिस्सा था लेकिन बाद में कुछ मतभेदों के बाद रूस को इस समूह से निकाल दिया गया। रूस के साथ रहने पर इस समूह में 8 सदस्य देश थे और इसे जी-8 कहा जाता था। यह संगठन मानवीय मूल्यों की रक्षा, लोकतंत्र की रक्षा, मानवाधिकारों की रक्षा, अंतरराष्ट्रीय शांति का समर्थक, समृद्धि और सतत विकास के सिद्धांत पर चलता है। इसके साथ ही यह समूह खुद को कम्यूनिटी ऑफ वैल्यूज का आदर करने वाला समूह मानता है। जी-7 का किसी भी देश में मुख्यालय नहीं है। इस समूह में शामिल देश बारी-बारी से शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते हैं। जिस देश के पास इसकी मेजबानी होती है, उसे ही इस ग्रुप का अध्यक्ष स्वीकार किया जाता है। इस ग्रुप की स्थापना तेल संकट से उबरने के लिए की गई थी। जी-7 सदस्य देश वर्तमान में ग्लोबल जीडीपी का लगभग 45ः और दुनिया की 10ः से अट्टिाक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।