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संकट में नेबरहुड फर्स्ट नीति

यूपीए शासनकाल के दौरान बनी नेबरहुड फर्स्ट  नीति को 2014 में प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की प्राथमिकता में शामिल तो जरूर किया लेकिन वे इसे अमलीजामा पहनाने में खास सफल नहीं रहे हैं। बीते दस वर्षों के दौरान भारत के अपने पड़ोसी देशों संग संबंध प्रगाढ़ होने के बजाय दरके ज्यादा हैं। नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका के बाद अब मालदीव भी भारत के बजाय चीन को तवज्जो देता स्पष्ट नजर आने लगा है

गत् वर्ष मालदीव में पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) के अध्यक्ष मोहम्मद मुइज्जू द्वारा राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से ही भारत और मालदीव के संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं। इस बीच 21 अप्रैल को मालदीव में हुए संसदीय चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी ने प्रचंड जीत दर्ज की है। यह जीत मालदीव राष्ट्रपति मुइज्जू के लिए जहां अहम मानी जा रही है, वहीं भारत के लिए यह मुश्किलों का इजाफा है। संसदीय चुनाव में मुइज्जू की जीत ने भारत के लिए परेशानियों का और चीन के लिए हिंद महासागर पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने के द्वार खोल दिए हैं। राष्ट्रपति की पार्टी को संसदीय चुनाव में मिली जीत पर चीन ने खुशी जाहिर करते हुए बधाई दी है। चीन ने दोनों देशों के बीच ‘व्यापक सामरिक सहयोग साझेदारी’ को और मजबूत बनाने की इच्छा जताई है।

उल्लेखनीय है कि संसदीय चुनाव में मुइज्जू के नेतृत्व वाली पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को 93 में से 68 सीटों पर जीत मिली, वहीं पीएनसी की गठबंधन सहयोगी मालदीव नेशनल पार्टी एमएनपी) ने एक सीट पर और मालदीव डेवलपमेंट अलायंस (एमडीए) ने दो सीटों पर जीत दर्ज की है। इस तरह पीएनसी और उसके सहयोगी दलों को संसद में दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल हुआ है जिससे उनके द्वारा संविधान में संशोधन करने की राह आसान हो चली है। पीएनसी के लिए यह जीत और भी प्रगाढ़ तब हो गई जब संसदीय चुनाव में जीत हासिल करने वाले 6 निर्दलीय सदस्यों ने पीपुल्स नेशनल कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। इन निर्दलीय सदस्यों के जुड़ने से पीएनसी के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास अब संसद में 78 सीट हो गई हैं, जो कि पीपुल्स मजलिस में दो तिहाई से कहीं अधिक है। भारत विरोधी माने जाने वाले राष्ट्रपति मुइज्जू के लिए मजलिस में प्रचंड जीत काफी मायने रखती है, क्योंकि अब उनकी सरकार को संसद में कोई भी कानून पास करने में परेशानी नहीं आएगी। दरअसल, इस चुनाव से पहले मजलिस में प्रमुख विपक्षी दल मालदिवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) का बहुमत था जिससे मुइज्जू भारत विरोधी नीतियों को पारित करने में असमर्थ रहते थे। इससे पहले उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के पास सिर्फ आठ सीटें थीं। इस वजह से किसी भी बिल को पारित करने में उन्हें मुश्किलें आ रही थी। संसद में पूर्व राष्ट्रपति और भारत समर्थक मोहम्मद सोलिह की पार्टी मालदिवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीएपी) का बहुमत होने की वजह से पिछले दिनों मुइज्जू सरकार के तीन मंत्रियों की नियुक्ति रूकवा दी गई थी और कुछ खर्चों को मंजूर करने से भी इनकार कर दिया गया था। अब बहुमत से ज्यादा सीटें मिलने पर मुइज्जू देश में चीन के निवेश से जुड़े फैसलों को लागू कर सकते हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि मालदीव के इस चुनावी परिणाम में पीएनसी की जीत की घोषणा भारत को मालदीव से दूर और चीन को उसके करीब ले आएगी। यही वजह है कि पीएनसी की जीत और एमडीपी की हार भारत के लिए चिंता का विषय बन गई है। भारत समर्थक नेता के तौर पर देखे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की पार्टी एमडीपी को संसदीय चुनाव में केवल 15 सीटों पर जीत मिली है।

भारत विरोधी हैं मुइज्जू

 

चीन भक्त राष्ट्रपति मुइजू की जीत से अंदेशा लगाया जा रहा है कि भारत और मालदीव के रिश्ते में दरार और भी गहरा सकती है। मुइज्जू ने यह चुनाव भारत विरोधी एजेंडे पर ही लड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था कि उनकी जीत इस बात पर मोहर लगा देगी की भारत के खिलाफ लिए गए उनके फैसले सही हैं। जब से मुइज्जू ने पद संभाला है, अपनी नीतियों में चीन समर्थक रुख अपनाता रहा है।

मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और मालदीव के रिश्ते काफी खराब हुए हैं। भारत-मालदीव रिश्तों में पड़ती दरार में चीन अपने लिए संभावनाएं तलाश रहा है जिससे वो इस क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत कर पाए। मुइज्जू ने कहा था कि उनके सत्ता में आते ही मालदीव में मौजूद भारतीय सेना के टेक्निकल स्टाफ को वापस भेज दिया जाएगा। 10 मई के बाद देश में कोई भी भारतीय सैनिक नहीं होगा, न तो वर्दी में और न ही सादे कपड़ों में। उस दौरान उन्होंने कहा था कि मैं यह बात विश्वास के साथ कहता हंू कि भारतीय सेना इस देश में किसी भी तरह से नहीं होगी।

गौरतलब है कि मालदीव का झुकाव चीन की तरफ इसलिए भी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में चीन ने मालदीव को कई हजार डाॅलरों का कर्ज दिया है। इनमें से ज्यादातर कर्ज आर्थिक विकास और निर्माण क्षेत्र के लिए दिया गया है। चुनाव अभियान के बीच पिछले दिनों मालदीव ने चीन को कई हाई प्रोफाइल इन्फ्रास्ट्रक्चर काॅन्ट्रैक्ट दिए थे। परंपररा अनुसार मालदीव के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत के दौरे पर आते रहे हैं। लेकिन मोहम्मद मुइज्जू के मामले में ऐसा नहीं हुआ। मुइज्जू राष्ट्रपति बनने के बाद शी जिनपिंग के बुलावे पर चीन गए। इसके अलावा वे तुर्की, यूएई, चीन के दौरे पर भी जा चुके हैं, मगर वो अब तक भारत नहीं आए हैं। चीन के प्रति झुकाव और भारत के खिलाफ नीतियां बनाने के अलावा मुइज्जू के लिए यह चुनाव इसलिए भी जरूरी था क्योंकि चुनाव से कुछ दिन पहले ही, विपक्षी दलों द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ भ्रष्टाचार के जांच और महाभियोग चलाए जाने की मांग की गई थी।

रक्षा सौदों में भी चीन को प्राथमिकता

चीनी समर्थक राष्ट्रपति मुइज्जू ने कहा था कि चीन मालदीव को नाॅन लीथल हथियार फ्री में उपलब्ध करवाएगा। इसके अलावा वो मालदीव के सुरक्षाबलों को ट्रेनिंग भी देगा। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मालदीव के लिए यह पहली बार है जब उसने चीन के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि सैन्य सहयोग मुहैया करवाया जा सके। साल की शुरुआत में मालदीव सरकार और चीन के बीच सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। इस समझौते ने भी भारत की चिंताएं बढ़ाई हैं। मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि ये समझौते बिना किसी भुगतान के हुए हैं। हिन्द महासागर पर पकड़ मजबूत करने के लिए चीन मालदीव को एक बेहतर विकल्प के तौर पर समझता है। मालदीव में ‘एमडीपी’ दल के नेतृत्व वाली पिछली सरकार भले ही भारत को अपने फस्र्ट नीति में शामिल करती रही हो लेकिन मुइज्जू के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से ही वो चीन फर्स्ट नीति पर कायम रहे हैं। यही वजह है कि अपने चुनाव अभियान में मुइज्जू, तत्कालीन मोहम्मद सोलिह की सरकार को भारत के मुद्दे पर घेर रहे थे।

मित्र रहे हैं भारत-मालदीव

भारत मालदीव की हमेशा मदद करता आया है। मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन की अहम हिस्सेदारी रहती है। मालदीव जाने वालों में भारतीयों की तादाद सबसे ज्यादा रहती है। यह देश भारत पर दवाइयों, खाने की सामग्री और निर्माण से जुड़ी चीजों के लिए निर्भर रहता है। कोरोना के बाद यहां वैक्सीन सबसे ज्यादा भारत की ओर से भेजी गई थीं। इसी साल के शुरुआत में मुइज्जू के मंत्रियों ने जब भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप की तस्वीरों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, तब भारत में इस पर काफी आक्रामक रवैया देखने को मिला था।

बीबीसी की एक रिपोर्ट अनुसार कुछ टूरिज्म कंपनियों द्वारा मालदीव का बायकाॅट किए जाने की बात कही गई थी। इस विवाद के बाद दो महीनों में मालदीव जाने वालों की संख्या करीब चार लाख रही थी। इन पर्यटकों में 13 फीसदी चीन से रहे। भारत विवाद से पहले नंबर एक पर था, मगर अब वो पांचवें नंबर पर आ गया है। उस दौरान मोहम्मद मुइज्जू के इस रुख के कारण उन्हें देश में भी आलोचना का सामना करना पड़ा था। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी, 2023 में मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या 17,029 थी, जो जनवरी 2024 में घटकर 12,792 रह गई। इन सबके बावजूद भारत ने अपनी ओर से पहल करते हुए मालदीव को सौहार्द पूर्ण पत्र भेजा था। पीएम मोदी ने 10 अप्रैल को मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को खास संदेश भेजते हुए कहा था- ‘हम पारंपरिक उत्साह के साथ ईद-उल-फितर मना रहे हैं, ऐसे में दुनिया भर के लोग करुणा, भाईचारे और एकजुटता के उन मूल्यों को याद कर रहे हैं, जो एक शांतिपूर्ण और समावेशी दुनिया के निर्माण के लिए जरूरी हैं और इसकी हम इच्छा रखते हैं।

लक्षद्वीप दौरे के दौरान पीएम मोदी

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