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श्रीलंका में बढ़ता आर्थिक संकट 

  • प्रियंका यादव

श्रीलंका अपनी आजादी के बाद से अब तक की सब से बड़ी आर्थिक समस्या की मार से जूझ रहा हैं। आर्थिकतंगी से जूझ रहे इस देश के सामने आये दिन मुश्किल आ रही हैं। वहां के लोगों की मुश्किलों की शृंखला में एक और मुश्किल आ खड़ी हुई  हैं। देश में आर्थिक तंगी की समस्या अब इतनी गंभीर हो गई हैं की उसका सीधा नुकसान बच्चों की शिक्षा को पहुँच रहा हैं। हालत यह है कि श्रीलंका मे सप्ताह भर  के लिए बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं।

वर्ष 1948 में आजाद हुआ श्रीलंका आजादी के बाद से अब तक की सब से बड़ी आर्थिक समस्या की मार से जूझ रहा हैं। आर्थिकतंगी से जूझ रहे इस देश के सामने आये दिन मुश्किल आ रही हैं। वहां के लोगों की मुश्किलों की शृंखला में एक और मुश्किल आ खड़ी हुई  हैं। देश में आर्थिक तंगी की समस्या अब इतनी गंभीर हो गई हैं की उसका सीधा नुकसान बच्चों की शिक्षा को पहुँच रहा हैं। हालत यह है कि श्रीलंका मे सप्ताह भर  के लिए बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय ने सभी स्कूलों से ऑनलाइन क्लासेज लेने का आग्रह किया है। ऑफलाइन क्लासेज दोबारा खोलने को लेकर उन्होंने यह स्पष्ट किया कि स्कूलों को कम संख्या में छात्रों के साथ कक्षाएं संचालित करने की अनुमति तभी दी जाएगी जब परिवहन सेवा की कठिनाइयों से छात्रों और स्कूल के कर्मचारियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

भारी कर्ज में डूबे श्रीलंका को कोई भी देश ईंधन निर्यात  नहीं कर रहा। वही देश में बचा हुवा ईंधन का स्टॉक खत्म होने की कगार पर हैं। अंदेशा लगाया जा रहा है की महज कुछ दिनों में ही बचे हुए ईंधन की खपत हो जाएगी । ऊर्जा और नगदी की तंगी से परेशान श्रीलंका ने ईंधन के अधिकतर खर्च को रोकने के लिए स्कूलों को बंद कर दिया हैं । दरअसल देश में बच्चों और शिक्षको को स्कूल पहुँचाने के लिए भी पर्याप्त ईंधन नहीं बचा। सरकार अब स्टॉक में बचे ईंधन को जरूरी सेवाओं जैसे स्वास्थ्य और सार्वजनिक परिवहन तथा भोजन वितरण कार्यक्रमों के लिए लगा रही हैं। ईंधन और विदेशी मुद्राओ की पूर्ती के लिए श्री लंका के ऊर्जा मंत्री कंचना ने विदेशों में रहने वाले अपने बीस लाख नागरिकों से अपील कर रहें है कि अनौपचारिक माध्यमों के  बजाय बैंकों के माध्यम से अपनी विदेशी मुद्रा में अर्जित आय को घर भेजें। जिससे  देश में विदेशी मुद्रा की कमी को दूर करने में मदद मिल सके। श्रीलंका में आर्थिकतंगी का एक मुख्य कारण विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो जाना है।  जिसकी पूर्ति के लिए ऊर्जा मंत्री अपने नागरिकों से ऐसे अपील कर रहें हैं। श्रीलंका सरकार का कहना है कि 40,000 मीट्रिक टन डीज़ल इस हफ्ते तक  देश में पहुंचने की उम्मीद है। वहीं 22 जुलाई को भी एक अन्य विमान द्वारा पेट्रोल लाया जाएगा। ईंधन की कई खेप आनी है, लेकिन आयात होने वाले ईंधन के भुगतान के लिए सरकार 58.7 करोड़ डॉलर की जरुरत है जिसे सरकार अनिवासी श्रीलन्काइयोकि मदद से जुटाने का प्रयास कर रही है।  गौरतलब है कि श्रीलंका पर सात ईंधन आपूर्तिकर्ताओं का लगभग 80 करोड़ डॉलर बकाया है। ईंधन आयात और मौजूदा संकट से निपटने के लिए  भारत ने इसी वर्ष अबतक  ३.५  अरब डॉलर की मदद दी हैं। 



 श्रीलंका के आर्थिकतंगी के कारण 

श्रीलंका के आर्थिक तंगी का कोई एक कारण नहीं बल्कि कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह श्रीलंका चौपट अर्थव्यवस्था की मार को झेल रहा है। इन कारणों में प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है। सरकार ‌द्वारा रासायनिक उर्वरकों पर लगाये गये प्रतिबंध के कारण किसानों की फसले बर्बाद हो चुकी है।  ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में एशियाई देशों में सबसे ज्यादा महंगाई श्रीलंका में बढ़ी। फरवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई 15.1 फीसदी बढ़ गई है। चौपट अर्थव्यवस्था का कारण श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी है।श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के अनुसार 2018 में जहां श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 अरब डॉलर था, वो फरवरी 2022 में गिरकर 2.31 अरब डॉलर रह गया। श्रीलंका सरकार ने मार्च 2020 में विदेशी  आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था ताकि विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके। , लेकिन उसका कोई खास असर विदेशी मुद्रा पर नहीं  पड़ा। उल्टे विदेशी आयात पर बैन लगाने की वजह से देश में जरूरी वस्तुओं की कमी हो गई। विदेशी मुद्रा की कमी से कनाडा जैसे कई देशों श्रीलंका में निवेश करना बंद दिया है। इस देश‌ को‌ दूसरे देशों से समान लेने के लिए विदेशी मुद्रा खरीदनी पड‌ रही है जिसके वजह श्रीलंका के रुपयों में गिरावट आई। महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रीलंका अपनी खाद्य वस्तुओं चीनी, दाल,अनाज के लिए आयात पर काफी निर्भर है, जिस कारण वस मुद्रा में गिरावट होने के‌ कारण यहां रोजमर्रा की चीजें महंगी होने ‌लगी है। आर्थिक तंगी का एक कारण यह भी है कि श्रीलंका सरकार ने लोगों का खर्च बढ़ाने‌ के लिए टैक्स कम कर दिया। इससे सरकारी राजस्व को‌ काफी नुकसान उठाना पड़ा। 


कर्ज मे डूबा श्रीलंका

श्रीलंका  पर सात अरब डॉलर‌ का कर्ज बकाया ‌है। जिसमें से पांच अरब डॉलर का कर्ज केवल चीन का है। भारत और जापान का भी श्रीलंका पर कर्ज है। श्रीलंका जैसे जैसे आयात के लिए विदेशी मुद्रा जुटा  रहा है उसी गति ‌से वह कर्ज़ में डूबंता जा रहा है। गौरतलब है कि विश्व बैंक के मुताबिक 2019 में श्रीलंका का कर्ज बढ़कर सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का 69 फीसदी हो गया। इससे पहले 2010 में यह सिर्फ 39 फीसदी ही था। श्रीलंका के विपक्षी नेताओं के‌ हिसाब से 2022 खत्म होने तक भी देश का कर्ज उतर नहीं पायेगा। 


श्रीलंका में विपक्ष के प्रमुख नेता और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा ने संसद सत्र के समय कहा था कि वर्ष 2022 के फरवरी से लेकर अक्बटूर तक कितनी भी अदायगी कर दी जाए, मगर उसके बावजूद भी श्रीलंका पर चढ़ रहा विदेशी कर्ज उतर नहीं पायेगा। अक्टूबर तक श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा के रूप में सिर्फ 4.8 खरब अमेरिकी डॉलर बचेंगे। 


आर्थिक तंगी का श्रीलंका पर‌ असर


श्रीलंका के सार्वजनिक उपयोगिता आयोग ( पब्लिक  यूटिलिटी  कमीशन ऑफ़ श्रीलंका ) ने ऑनलाइन टीचिंग की सुविधा के लिए वीकडेज के दिनों में सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच बिजली कटौती नहीं करने की बात कर रही  हैं। दरअसल ईंधन की समस्या ने श्रीलंका को अंधेरे में धकेल दिया है।  पिछले कई महीनो से बिजली उत्पादन सयंत्रों को सही मात्रा में ईंधन नहीं मिल पा रहा जिसके कारण बिजली की कटौती होती रही हैं। सरकार ने 4 जुलाई से देश भर में ३ घंटे बिजली कटौती का निर्णय लिया हैं । प्रिंटिंग पेपर की कमी होने की वजह से बीते मार्च महीने में छात्रों की परीक्षाएं रद्द कर दी गई थी। देश के पास प्रिंटिंग पेपर आयात करने के लिए भी पैसा नहीं था। श्रीलंका के शैक्षिक प्रकाशन विभाग के आयुक्त जनरल पी .एन . इलपेरुमा के‌ अनुसार मौजूदा इंधन संकट के कारण स्कूलों को छपी किताबों के वितरण में देरी हो रही थी। बिजली रुकावट में किताबों की छपाई पर भी एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। कोविड-19 के कारण राज्य में  मुद्रण निगम को बंद कर दिए गए थे।

श्रीलंका में बढ़ती मंहगाई ‌के‌ कारण वहां की जनता सरकार के  ‌प्रति अपना आक्रोश दिखा रही है। लोगों को काफी दिक्कतों‌ का सामना‌ करना पड़ रहा है। देश में खाद्य पदार्थों  के दाम दोगुने हो गए हैं। आम जनता को अपना घर चलाना मुश्किल पड रहा है। गैस के दामो मे भी बढोतरी कर दी गई है। राशन और गैस के लिए लोगों को काम छोड कर लाईंनो मे घंटो खडे रह कर‌ लंबे समय तक इंतजार करना पडता है। हालात ऐसे है कि सरकार लोगो‌ को संभालने के लिए गैस स्टेशनों पर सैनिकों को‌ तैनात कर चुकी है। रसोई गैस, दवा और खाद्य सामग्री समेत आवश्यक चीजों की भी भारी कमी की वजह से  इनकी कीमतें आसमान छू रही हैं। इस आर्थिक तंगी के कारण वहां के नागरिक देश छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। श्रीलंका से हाल ही मेें 113 श्रीलंकाई शरणार्थी  भारत पहुँचे है। उनमे से आठ  श्रीलंकाई नागरिक समुद्र मार्ग से 4 जुलाई को रामेश्वरम पहुचें। अधिकारियों के अनुसार अरिचलमुनाई में फंसे हुए उन  8 श्रीलंकाइयों को समुंद्री पुलिस ने बचाया। जांच के बाद उन शरणार्थियों को  मंडपम शरणार्थी शिविर में भेज दिया जायेगा। इससे पूर्व 5 जुलाई को भी १०५ श्रीलंकाई शरणार्थी समुंद्री मार्ग से भारत पहुँचे थे। शरणार्थी लवेंद्रन के मुताबिक उसका देश बेरोजगारी और आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों के साथ कई अन्य मुद्दों के चलते असहनीय दौर से गुजर रहा है, जिसके चलते वहां जीवन गुजारना लगातार कठिन होता जा रहा है।  बीते कुछ दिन पूर्व ही श्रीलंकाई नौ सेना ने 51 लोगों को हिरासत में लिया। ये लोग अवैध रूप से समुन्द्र के रस्ते देश छोड़ कर ऑस्ट्रेलिया जा रहें थे। नौसेना के मुताबिक यह चौथी घटना थी  जब अवैध रूप से देश छोड़कर जा रहे लोगों को नौसेना ने गिरफ्तार किया। यही नहीं बीते महीने एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की आर्थिक मुसीबत ने श्रीलंका की लड़कियों को वेश्यावृति करने पर मजबूर कर दिया हैं। 

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