अक्टूबर 2023 में हमास हमलों के जवाब में शुरू हुई इजरायली कार्रवाई अब तक थमी नहीं है और इस लम्बे युद्ध ने फिलिस्तीनियों को अकाल, विस्थापन और मानवीय त्रासदी के गर्त में धकेल दिया है। अमेरिकी समर्थन से संचालित सहायता केंद्र पर मची अफरा-तफरी ने यह साफ कर दिया है कि यह सिर्फ युद्ध नहीं, बल्कि ‘रोटी पर भी राजनीतिक कब्जे’ की जंग है, जिसमें गोली भी चल रही है और ‘गाजा बचाने’ के नाम पर वैश्विक ताकतें अपनी-अपनी मोहरें चला रही हैं
गाजा में जारी संघर्ष चलते वहां मानवीय संकट चरम पर जा पहुंचा है। हालात इतने विकट हैं कि संयुक्त राष्ट्र ने गाजा को दुनिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्र घोषित कर दिया है जहां 100 प्रतिशत आबादी अकाल के खतरे का सामना कर रही है। इस बीच एक बार फिर से अमेरिका ने इजरायल और हमास के बीच 60 दिनों के युद्धविराम का प्रस्ताव रखा है, जिसमें बंधकों और कैदियों की अदला-बदली शामिल है। इजराइल ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, जबकि हमास ने इसे ‘हत्या और भूख की निरंतरता’ करार देते हुए अस्वीकार कर दिया है। इजरायली सेना ने गाजा के उत्तरी क्षेत्र के अंतिम सक्रिय अस्पताल, अल-अवदा, को बंद करने के लिए मजबूर किया है, जिससे क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से ध्वस्त हो गई हैं। हालिया इजरायली हवाई हमलों में कम से कम 27 लोगों की मौत हुई है, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। खान यूनिस में एक तम्बू पर हुए हमले में 13 लोगों की जान गई, जिनमें आठ बच्चे थे। अमेरिका और इजरायल द्वारा समर्थित गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (जीएचएफ) के माध्यम से सहायता वितरण के प्रयासों में अव्यवस्था देखी गई है। राफा में सहायता केंद्र पर भीड़ के कारण गोलीबारी हुई, जिससे कई लोग घायल हो गए।
‘हमें खाना चाहिए, गोली नहीं!’ – यह चिल्लाहट उस फिलिस्तीनी की थी जिसने अपने घायल बच्चे को गोद में उठाया और सहायता केंद्र की ओर भागा। 600 दिनों से जारी इजरायल-हमास युद्ध के बीच अब गाजा की सड़कों पर बारूद से ज्यादा भूख की चीखें गूंज रही हैं। 8 मई 2025 को राफा के तेल अल-सुल्तान क्षेत्र में स्थित एक अमेरिकी सहायता केंद्र पर उस समय अफरा-तफरी मच गई जब हजारों भूखे फिलिस्तीनियों ने भोजन की पेटियों के लिए धावा बोल दिया। गोली चली, धक्का-मुक्की हुई और मदद की उम्मीद में आए लोग जमीन पर लहूलुहान हो गए। ‘सीएनएन’ की रिपोर्ट के अनुसार, इस घटना में एक व्यक्ति की मौत हुई और 48 से अधिक लोग घायल हो गए। अमेरिकी-समर्थित संगठन ‘गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन’ (जीएचएफ) की निगरानी में चल रहे इस सहायता केंद्र पर इजरायली सेना ने हवा में गोलियां चलाईं और अमेरिकी ठेकेदारों ने पीछे हटकर सहायता वितरण को रोक दिया।
भूख की त्रासदी में बदहाल मानवता
गाजा में 11 सप्ताह से इजरायली नाकेबंदी चल रही है। 20 लाख से अधिक की आबादी वाले इस क्षेत्र में भोजन, पानी और दवाइयों की भारी किल्लत है। हालात इतने गम्भीर हैं कि संयुक्त राष्ट्र इसे ‘मानव निर्मित अकाल’ कह चुका है। जीएचएफ ने दावा किया है कि अब तक वह 8,000 खाद्य बॉक्स बांट चुका है, जो कि 4.62 लाख भोजन के बराबर है। लेकिन इन आंकड़ों की हकीकत मैदान में देखने को मिली, जहां सैकड़ों लोग कंटीले तारों को तोड़ते हुए सहायता केंद्र पर टूट पड़े।
रोटी के लिए जान की बाजी
घटनास्थल पर मौजूद वाफिक कदीह ने ‘सीएनएन’ से कहा, ‘ये भूखे लोग हैं, इन्हें अनुशासन नहीं चाहिए, इन्हें खाना चाहिए।’ एक अन्य व्यक्ति, अबू रामजी ने बताया कि वह तीन घंटे पैदल चलकर आए, पर अंत में उन्हें कुछ नहीं मिला, सिर्फ धक्का-मुक्की और धुएं के बादल। जीएचएफ के अनुसार, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने पीछे हटने का फैसला लिया ताकि कुछ लोगों को सुरक्षित भोजन मिल सके। लेकिन सुरक्षा और गरिमा के सारे दावे घटनास्थल पर नष्ट हो गए।
क्या यह मदद है या भूख की राजनीति?
जीएचएफ को अमेरिका का समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसकी भूमिका पर कई सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में इसके प्रमुख ने निष्पक्षता और स्वतंत्रता की कमी का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। सहायता वितरण के बॉक्सों पर ‘रहमा वर्ल्डवाइड’ नामक मिशिगन आधारित संस्था का नाम देखा गया है, जिससे सहायता को लेकर एक नया विवाद पैदा हो गया है। विवाद सिर्फ इतना नहीं है कि सहायता केंद्रों पर अव्यवस्था है, बल्कि यह भी कि ये केंद्र केवल दक्षिणी और मध्य गाजा में खोले गए हैं। उत्तर गाजा, जहां हालात सबसे विकट हैं, वहां कोई केंद्र नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने इसे इजरायली रणनीति का हिस्सा बताया है, जिसके तहत वे पूरी गाजा आबादी को दक्षिण की ओर खदेड़ना चाहते हैं।
युद्ध के 600 दिन : समाधान दूर, विनाश करीब
7 अक्टूबर 2023 को हुए हमास के हमले के बाद शुरू हुई इजरायली कार्रवाई अब दो साल के करीब पहुंच चुकी है। इस समय इजरायल गाजा के 75 प्रतिशत क्षेत्र पर कब्जा करने की योजना बना रहा है। अगर ऐसा होता है तो दो मिलियन से ज्यादा लोग केवल 25 प्रतिशत क्षेत्र में समा जाएंगे, वह भी तब जब यह इलाका पहले ही तबाह हो चुका है।
इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू पहले ही कह चुके हैं कि पूरी गाजा आबादी को दक्षिण में भेजा जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह न सिर्फ मानवाधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह युद्ध के बाद गाजा की सामाजिक और भौगोलिक संरचना को बदलने का प्रयास भी है।
संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी और बेबसी
यूएनआरडब्ल्यूए के प्रमुख फिलिप लाजारिनी ने इस घटनाक्रम को ‘अशोभनीय और असुरक्षित’ बताया। उन्होंने कहा, ‘हमें भूखे लोगों को लोहे की जाली पकड़ते और रोते हुए नहीं देखना चाहिए। यह व्यवस्था की विफलता है।’
यूएनओसीएचए ने भी चेताया कि जीएचएफ का मॉडल ‘गम्भीर असुरक्षा पैदा करेगा और मानवीय सिद्धांतों के प्रतिकूल है।’ उनका सुझाव है कि इजरायली क्रॉसिंग्स को खोला जाए और सहायता की पारदर्शी, निष्पक्ष और तेज वितरण सुनिश्चित हो, यून के नेतृत्व में।
दहशत में जी रहे लोग पलायन को मजबूर
अमेरिकी भूमिका और अंतरराष्ट्रीय चुप्पी
अमेरिका, जो इस सहायता वितरण का समर्थन कर रहा है, आलोचनाओं के घेरे में है। क्या यह सहायता है या गाजा में नई भू-राजनीतिक रणनीति? यह सवाल अब ज्यादा मुखर हो चुका है। इजराइल के पुराने सहयोगी भी अब दबाव बना रहे हैं कि युद्ध रोका जाए और मानवीय सहायता की व्यवस्था सुधारी जाए। लेकिन जमीनी हालात बता रहे हैं कि नीति और वास्तविकता में एक लम्बी खाई है।
निष्कर्ष : युद्ध जब रोटी पर भी कब्जा करे
गाजा में इस समय हर सांस के साथ मौत का डर है। एक ओर भूख है, दूसरी तरफ बारूद। और इन दोनों के बीच फंसे हैं वे मासूम लोग, जिनके पास न देश है, न दिशा। यह सिर्फ युद्ध नहीं, यह वह भयावह स्थिति है जब सहायता खुद एक हथियार बन जाती है और इंसानियत सिर्फ रिपोर्टों की भाषा बनकर रह जाती है। अब जरूरत है – तुरंत, निष्पक्ष और सुरक्षित मानवीय सहायता की। ताकि यह कहा जा सके कि हमने रोटी को राजनीति से बचा लिया।