पूरी दुनिया लगभग तीन सालों से कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है। इस महामारी से अब तक करोड़ों लोगों की जान ले ली है। ऐसे में पिछले चार महीनों से जारी रूस -यूक्रेन के युद्ध का एक ऐसा प्रतिकूल असर भी हुआ है जिस ओर अभी तक बहुत कम ध्यान गया है। यह असर बहुत दूर स्थित अफ्रीका महाद्वीप के देशों में बहुत चिंता का कारण बन रहा है। इन देशों का खाद्य संकट पहले से और विकट हो रहा है। अफ्रीका के कई देशों में काफी समय से चल रहे सूखे, आंतरिक हिंसा और अन्य कारणों से पहले से खाद्य संकट मौजूद था। लेकिन इनमें से कई देश यूक्रेन और रूस पर कुछ मुख्य खाद्यों जैसे गेंहू, मक्का, खाद्य तेल आदि के लिए काफी हद तक निर्भर थे। इसके अलावा इन देशों से उन्हें रासायनिक खाद भी अधिक मात्रा में मिलते थे जिस पर उनकी अपनी खाद्य उत्पादन क्षमता आश्रित है। ऐसी स्थिति में अफ्रीकी देश सोमालिया सहित कई देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।
दरअसल,दक्षिण अफ्रीकी देशों की हालत यह है कि इन देशों के लोग सूखे और खाद्य संकट के चलते पालायन करने पर मज़बूर हो गए हैं। कई लोगों ने तो पलायान भी कर लिया है। इनमें से सोमालिया की एक है हिर्सियो मोहम्मद जो पलयान कर चुकी हैं। उनके आठ बच्चे हैं, जिनमें से तीन बच्चों के पैरों में चप्पल नहीं है, लेकिन उन्हें कई दिनों के बाद नया ठिकाना मिलेगा, कहा नहीं जा सकता। हिर्सियो मोहम्मद कहती हैं कि उनका साढ़े तीन साल का बेटा भोजन और पानी के लिए रोए जा रहा है,लेकिन रास्ते में कोई ऐसा नहीं मिला, जो भीख में ही सही एक घूंट पानी दे, या बच्चे को थोड़ा खाना खिला दे। भूख प्यास के कारण उसकी मौत गई। इसके बाद हिर्सियो एक सहायता शिविर मेंपहुंची , लेकिन उनकी कुपोषित 8 साल की बेटी हबीबा को जल्द ही खांसी हो गई और वो भी मर गई। पिछले महीने अपने अस्थायी तंबू में बैठी हिर्सियो मोहम्मद अपनी ढाई साल की बेटी मरियम को गोद में लेकर बोलीं इस सूखे ने हमें खत्म कर दिया है।
गौरतलब है कि यूक्रेन युद्ध छिड़ने से खाद्य और खाद दोनों के आयात कम होने के कारण अफ्रीका महाद्वीप के कई देशों की खाद्य स्थिति पहले से और बिगड़ गई है। दूसरी ओर ध्यान देने की बात यह है कि यूक्रेन युद्ध के आरंभ होने से पहले ही यहां विश्व खाद्य कार्यक्रम और अन्य संस्थानों के अधिकारी चेतावनी दे रहे थे कि इस वर्ष खाद्य संकट पहले से अधिक बिगड़ सकता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम उन अंतरराष्ट्रीय स्थानों में प्रमुख है जो अफ्रीका के खाद्य संकट से त्रस्त क्षेत्रों में खाद्य उपलब्धि कार्यक्रम चलाते हैं। इसके लिए अनाज की खरीद इस कार्यक्रम द्वारा पहले यूक्रेन में की जाती थी।
पूर्वी अफ्रीका में हार्न आफ अफ्रीका क्षेत्र को अकाल की स्थिति से अधिक प्रभावित बनाया गया है। इसमें मुख्य रूप से सोमालिया, इथिओपिया जैसे बड़े देश हैं और केन्या का कुछ भाग भी है। यहां हाल के वर्षों में वर्षा बहुत कम हुई है। आंतरिक हिंसा से जुड़ी समस्याएं भी हैं। इसके मिले-जुले असर ने यहां खाद्य स्थिति बहुत बिगाड़ दी है।
दरअसल जलवायु बदलाव के दौर में प्रतिकूल मौसम की संभावना वैसे ही बढ़ गई है। इस स्थिति में अमन-शांति बनाए रखना बहुत जरूरी है। लेकिन बड़ी त्रासदी यह है कि इस संवेदनशील और नाजुक दौर में ही अफ्रीका के अनेक देशों में आंतरिक हिंसा बहुत हुई है और हो रही है। इथिओपिया, नाईजीरिया, सूडान और नाईजीरिया जैसे बड़े देश हिंसा से बहुत प्रभावित हुए हैं । गृह युद्ध के बाद सूडान दो देशों में बंट चुका है।
बढ़ती भूख की समस्या वर्ष 1971-2011 के 40 वर्षों के बीच सेहल क्षेत्र, हार्न आफ अफ्रीका क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में लाखों लोग भुखमरी और अकाल से मारे गए हैं। विकास और पर्यावरण पर विश्व आयोग ने वर्ष 1987 में बताया था कि पिछले लगभग तीन वर्षों में अफ्रीका में अकाल और भुखमरी से लगभग दस लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। 1970 से 2022 के बाद के 52 वर्षों में किसी अन्य क्षेत्र में भूख से इतनी अधिक मौतों का कोई अन्य उदाहरण नहीं है। इससे पहले 1959-60 के आसपास चीन में ‘बड़ी छलांग’ के दौर में इससे भी अधिक मौतें अकाल और भुखमरी में हुई थीं।
विश्व खाद्य संगठन और विश्व खाद्य कार्यक्रम ने वर्ष 2021 के आरंभ में रिपोर्ट तैयार की थी ‘हंगर हॉटसपाट’ जिसमें विश्व में उन 20 देशों की पहचान की गई थी जहां भूख की समस्या सबसे कम है और भविष्य में और उग्र हो सकती है। इन 20 देशों में से 12 देश अफ्रीका महाद्वीप के थे।
इसके बाद के वर्ष को देखें तो तबसे लेकर अब तक अत्यधिक भूख से प्रभावित अफ्रीकी देशों और क्षेत्रों की संख्या और बढ़ गई है। नाईजीरिया और केन्या की गिनती अपेक्षाकृत ठीकठाक आर्थिक स्थिति के देशों में होती है पर यहां के कुछ बड़े क्षेत्रों में भी विकट भूख की समस्या है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के अनुसार 2010-2012 के दौरान केवल एक देश सोमालिया में भुखमरी और अकाल से 2 लाख 60 हजार मौतें हुई थीं। 21वीं शताब्दी में किसी एक देश में इतने कम समय में भूख से इतनी मौतें होने का कोई भी रिकॉर्ड नहीं है। ऐसी खतरनाक संभावनाओं को देखते हुए अफ्रीका में भुख्मरी और अकाल से राहत के लिए प्रयासों को तेजी से बढ़ाने की जरूरत है। इसके साथ ही अफ्रीका में कृषि, पशुपालन और जलवायु बदलाव अनुकूलन नीतियों को बेहतर करने की बहुत जरूरत है।
भूख से कांप रहा,अफ्रीका
अफ्रीका में भूख का खतरा इतना विकट है कि पिछले हफ्ते अफ्रीकी संघ के प्रमुख सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन के अनाज और उर्वरक के निर्यात पर नाकाबंदी हटाने की अपील की थी लेकिन गेहूं की आपूर्ति शुरू नहीं हुई । सबसे विनाशकारी संकट सोमालिया में सामने आ रहा है, जहां देश के अनुमानित एक करोड़ 60 लाख लोगों में से लगभग 70 लाख लोगों को भोजन की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यूनिसेफ द्वारा प्रबंधित एक डेटाबेस के अनुसार, जनवरी से अब तक सोमालिया में कम से कम 448 बच्चे कुपोषण से मर चुके हैं।
मुश्किल से मिल रही आर्थिक मदद
पहले कोविड संकट और फिर रूस -यूक्रेन युद्ध, यूनाइटेड नेशंस की वित्तीय ट्रैकिंग सेवा के मुताबिक, केंद्रित सहायता दाताओं ने सोमालिया के लिए आवश्यक 1.46 अरब डॉलर में से केवल 18 प्रतिशत ही दिया है । संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के विश्व खाद्य कार्यक्रम के सोमालिया के निदेशक एल-खिदिर दलौम ने कहा कि, ‘यह दुनिया को एक मोरल और इथिकल दुविधा में डाल देगा’। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में अब्दी लतीफ दाहिर ने अपने लेख में लिखा है, कि सोमालिया में भीषण अकाल की वजह से नदियां पूरी तरह से सूख चुकी हैं, कुओं में पानी नहीं है, लिहाजा पालतू जानवरों का सफाया हो रहा है। सैकड़ों हजारों की तादाद में परिवार देश के अलग अलग हिस्सों से पलायन कर रहे हैं। सोमालिया में सैकड़ों मील तक गधों या बसों के सहारे अपने अपने क्षेत्र को छोड़ते लोग काफी आसानी से दिख जाएंगे, जिन्हें आपातकाली स्तर पर पानी और भोजन और दवा चाहिए।
अस्पतालों की स्थिति भी खराब
सोमालिया का एकमात्र बच्चों का ठीक-ठाक अस्पताल है। बच्चों के शरीर का मांस सूख चुका है और हड्डियों को आंखों से ही गिना जा सकता है। शरीर अपने प्राकृतिक रंगों को खो चुका है। अस्पताल में कई और बच्चे दिखते हैं, जो खसरे जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं, जिन्हें नाक की नलियों के जरिए खिलाया जा रहा है। बच्चों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत है। बच्चों की माएं अस्पताल की गलियारों में बैठी रहती हैं, जो खुद स्थिति से लड़ते लड़ते हड्डी हो चुकी हैं, फिर भी बच्चे कपोषण से सही हो जाएं, इसलिए उनके लिए मुंगफली का पेस्ट बना रही हैं। यूनिसेफ के अनुसार, यूक्रेन में युद्ध और महामारी, जिसने सामग्री, पैकेजिंग और आपूर्ति श्रृंखला को और अधिक महंगा बना दिया है, उसके कारण इस जीवन रक्षक उत्पाद की कीमत में 16 प्रतिशत तक की वृद्धि का अनुमान है।
सोमालिया का संघर्ष
सोमालिया को अपना पेट भरने के लिए अपनी जरूरत का आधे से ज्यादा खाना खरीदना पड़ता है। सोमालिया में गरीब पहले से ही अपनी आय का 60 से 80 प्रतिशत भोजन पर खर्च करते हैं। यूक्रेन से गेहूं की हानि, आपूर्ति-श्रृंखला में देरी और बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण खाना पकाने के तेल और चावल और ज्वार जैसे स्टेपल की कीमतों में तेज वृद्धि हुई है। सीमावर्ती शहर डूलो के एक बाजार में, दो दर्जन से अधिक टेबलों को छोड़ दिया गया क्योंकि विक्रेता अब स्थानीय खेतों से भी उपज का स्टॉक नहीं कर सकते थे। शेष खुदरा विक्रेताओं ने कुछ ग्राहकों को चेरी टमाटर, सूखे नींबू और कच्चे केले की मामूली आपूर्ति बेच दी।
मारे जा चुके हैं 30 लाख से ज्यादा मवेशी
जूस और स्नैक्स की दुकान चलाने वाले अदन मोहम्मद जैसे व्यापारियों का कहना है कि चीनी, आटा और फलों की कीमतें बढ़ने के बाद उन्हें अपनी कीमतें बढ़ानी पड़ी हैं । उन्होंने कहा कि, यहां “सब कुछ महंगा है। कई सोमालियों ने कहा कि उन्होंने मांस और ऊंट के दूध में कटौती की है। निगरानी एजेंसियों के अनुसार, 2021 के मध्य से अब तक 30 लाख से अधिक झुंड के जानवर मारे गए हैं। सूखा उन सामाजिक समर्थन प्रणालियों को भी प्रभावित कर रहा है जिन पर सोमालियाई संकट के दौरान निर्भर करते हैं। लेकिन, अब हजारों भूखे और बेघर लोगों ने राजधानी में बाढ़ ला दी है, लेकिन राजधानी के पास उन्हें खिलाने या जिंदा रखने के लिए कुछ नहीं है।