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बैकफुट पर ट्रम्प

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अन्य मुल्कों पर लगातार लगाए जा रहे जैसे को तैसा रेसिप्रोकल टैरिफ के चलते अमेरिका समेत ग्लोबल मार्केट में दस लाख करोड़ डाॅलर की गिरावट आई थी। ट्रम्प के कई करीबी सलाहकारों और खुद एलन मस्क भी टैरिफ वाॅर रोकने की सलाह दे चुके थे। ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता भी टैरिफ के खिलाफ थे। यहां तक कि अमेरिका में ट्रम्प के खिलाफ धरना -प्रदर्शन और रैलियां निकाली गई। चैतरफा आलोचना के बाद अब उन्हें बैकफुट पर आना पड़ा है

 

पिछले एक हफ्ते से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दुनिया के अन्य मुल्कों पर लगातार लगाए जा रहे ‘जैसे को तैसा रेसिप्रोकल टैरिफ’ के चलते अमेरिका समेत ग्लोबल मार्केट में 10 लाख करोड़ डाॅलर की गिरावट आई थी। ट्रम्प के कई करीबी सलाहकारों और खुद एलन मस्क भी टैरिफ वाॅर रोकने की सलाह दे चुके थे। ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता भी टैरिफ के खिलाफ थे। टैरिफ के कारण अप्रत्याशित तौर पर अमेरिकी बाॅन्ड्स की बिकवाली शुरू हो गई थी। क्रूड की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। कोरोना काल जैसी स्थिति बन रही थी। वाॅल स्ट्रीट के बैंकों ने टैरिफ के चलते अमेरिका में महंगाई, बेरोजगारी बढ़ने और मंदी आने की चेतावनी दी थी। यहां तक कि अमेरिका के 50 राज्यों में ट्रम्प के खिलाफ प्रदर्शन हुए। लोग ट्रम्प की टैरिफ नीति का विरोध करते हुए ‘ट्रम्प-मस्क गो बैक’ के नारे लगाते दिखे। ट्रम्प के इस फैसले की चैतरफा आलोचना के बाद उन्हें बैकफुट पर आना पड़ा है। ट्रम्प ने चीन को छोड़कर बाकी देशों को टैरिफ में छूट देने की घोषणा की है।

डोनाल्ड ट्रम्प ने क्या कहा?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 9 अप्रैल को ऐलान किया कि उन्होंने 75 से ज्यादा देशों पर लगे टैरिफ को 90 दिनों के लिए रोक दिया है। हालांकि चीन को इस छूट में शामिल नहीं किया गया है। चीन पर लगने वाला टैरिफ 104 से बढ़ाकर 125 फीसदी कर दिया है। ट्रम्प ने ये कदम चीन की तरफ से अमेरिका पर लगाए गए 84 प्रतिशत जवाबी टैरिफ के बाद उठाया गया है।

जो देश डील करेंगे, उनके लिए टैरिफ 10 फीसदी रहेगा

ट्रम्प ने कहा कि 75 से ज्यादा देशों ने अमेरिका के प्रतिनिधियों को बुलाया है और इन देशों ने मेरे मजबूत सुझाव पर अमेरिका के खिलाफ किसी भी तरह से जवाबी कार्रवाई नहीं की है। इसलिए मैंने 90 दिन के विराम को स्वीकार किया है। टैरिफ पर इस रोक से नए व्यापार समझौतों पर बातचीत करने का समय मिलेगा। वहीं वित्त मंत्री स्काॅट बेसेन्ट ने कहा कि अमेरिका के साथ बातचीत करने के इच्छुक देशों के लिए यह दर घटकर 10 फीसदी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि कनाडा और मेक्सिको के कुछ सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ लगता था। अब उन्हें भी बेसलाइन टैरिफ में शामिल कर लिया गया है। हालांकि उन्होंने यह साफ नहीं किया कि यूरोपीय यूनियन इस बेसलाइन टैरिफ में शामिल है या नहीं।

ट्रम्प के करीबी भी थे टैरिफ के खिलाफ

ट्रम्प टैरिफ के चलते अमेरिका समेत ग्लोबल मार्केट में 10 लाख करोड़ डाॅलर की गिरावट आई थी। हालांकि टैरिफ रोकने के फैसले के कुछ घंटों के अंदर ही अमेरिकी शेयर बाजार की वैल्यू 3.1 लाख करोड़ डाॅलर बढ़ गई।
ट्रम्प के कई करीबी सलाहकारों और खुद एलन मस्क भी टैरिफ वाॅर रोकने की सलाह दे चुके थे। ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता भी टैरिफ के खिलाफ थे। मिच मैककोनल, रैंड पाॅल, सुसन कोलिन्स व लिसा मुर्कोव्स्की ने टैरिफ को ‘असंवैधानिक, अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक और कूटनीतिक रूप से खतरनाक’ बताया था। टैरिफ के चलते अप्रत्याशित तौर पर अमेरिकी बाॅन्ड्स की बिकवाली शुरू हो गई थी। क्रूड की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई, यह कोरोना काल जैसी स्थिति बन रही थी। वाॅल स्ट्रीट के बैंकों ने टैरिफ के चलते अमेरिका में महंगाई, बेरोजगारी बढ़ने और मंदी आने की चेतावनी दी थी। अमेरिका चीन से 440 अरब डाॅलर का आयात करता है। इस पर उसने 124 फीसदी टैरिफ लगाया है। चीन से प्रोडक्ट्स मंगवाने वाली अमेरिकी कम्पनियों के लिए अब इसका विकल्प खोजना बड़ी चुनौती बन रहा था। ऐसे में बाकी देशों पर टैरिफ रोकना इन कम्पनियों की सप्लाई चेन के लिए जरूरी था।

ऐलान होते ही शेयर बाजार में आया उछाल

ट्रम्प की टैरिफ छूट वाली घोषणा से सबसे ज्यादा फायदा एलन मस्क की कम्पनी टेस्ला को हुआ। टेस्ला के शेयरों में 23 फीसदी की जोरदार बढ़त आई जिससे एलन मस्क की सम्पत्ति में 36 अरब डाॅलर का इजाफा हुआ। मार्क जुकरबर्ग को भी बड़ा फायदा हुआ और उनकी सम्पत्ति में करीब 26 अरब डाॅलर की बढ़ोतरी हुई। इसके बाद नम्बर आता है एनवीडिया कम्पनी के जेन्सन हुआंग का जिनकी सम्पत्ति में 15.5 अरब डाॅलर की बढ़ोतरी हुई है। एनवीडिया के शेयरों में 19 प्रतिशत की तेजी देखी गई। अगर प्रतिशत के हिसाब से देखें तो सबसे ज्यादा फायदा कारवाना कम्पनी के सीईओ अर्नेस्ट गार्सिया तृतीय को हुआ, जिनकी सम्पत्ति में 25 फीसदी की बढ़त हुई। इसके अलावा एप्पल के शेयरों में 15 प्रतिशत से ज्यादा और वाॅलमार्ट के शेयरों में 9.6 की बढ़त देखने को मिली।

अभी भी चिंतित हैं निवेशक

ट्रम्प ने चीन से आयात पर शुल्क बढ़ाने के साथ ही कई देशों पर लगने वाले टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया। इससे बाजारों को जरूर राहत मिली है। लेकिन निवेशक अभी भी 90 दिन बाद की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। डाॅयचे बैंक के विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि ट्रम्प के टैरिफ पाॅलिसी को लेकर बाजार का भरोसा डगमगा गया है जिससे ग्लोबल इकाॅनमी में अनिश्चितता बढ़ सकती है।

बाॅस्टन की वेल्थ मैनेजमेंट एक्सपर्ट गीना बोल्विन ने एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा, ‘यही वो अहम पल है जिसका हमें इंतजार था। कम्पनियों के नतीजे आने वाले हैं, जिससे बाजार को सपोर्ट मिलेगा। मगर 90 दिन बाद क्या होगा, यह सवाल अभी बना हुआ है।’ कुछ ही दिनों में जेपी माॅर्गन जैसे बड़े बैंकों के नतीजे आने वाले हैं, जिससे काॅर्पोरेट अमेरिका की सेहत का पता चलेगा।

चीन पर टैरिफ क्यों बढ़ाया?

अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्काॅट बेसेंट ने कहा कि ट्रम्प ने उन देशों को टैरिफ वापस लेकर प्रोत्साहित किया है, जिन्होंने बढ़ते ट्रेड वाॅर के बीच अमेरिका के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला। चूंकि चीन ने अमेरिका पर टैरिफ 34 से बढ़ाकर 84 फीसदी करने की घोषणा की थी। इसलिए ट्रम्प ने चीन पर टैरिफ 104 से 125 फीसदी कर दिया।

नई इंडस्ट्री बढ़ाने पर जोर दे रहा चीन

चीन के पास अमेरिका के करीब 600 अरब पाउंड (करीब 760 अरब डाॅलर) के सरकारी बाॅन्ड हैं। मतलब ये कि चीन के पास अमेरिकी इकोनाॅमी को प्रभावित करने की बड़ी ताकत है। वहीं चीन ने अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है।
चीन ने 1.9 लाख करोड़ डाॅलर का अतिरिक्त लोन इंडस्ट्रियल सेक्टर को दिया है। इससे यहां फैक्ट्रियों का निर्माण और अपग्रेडेशन तेज हुआ। शंघाई में 35,000 इंजीनियरों के लिए एक रिसर्च सेंटर खोला है, जो गूगल के कैलिफोर्निया हेडक्वार्टर से 10 गुना बड़ा है। इससे टेक्नोलाॅजी और इनोवेशन कैपेसिटी तेज होगी।

यूरोपीय संघ को लेकर स्पष्टता नहीं?

यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों ने भी 23 अरब डाॅलर (1.8 लाख करोड़) के अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यूरोपीय यूनियन के 26 देशों ने 9 अप्रैल को अमेरिका के सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। यह टैरिफ 15 अप्रैल से लागू हो जाएगा। यूरोपीय यूनियन के एकमात्र देश हंगरी ने अमेरिका पर टैरिफ लगाने के फैसले का विरोध किया था। ऐसे में अब यूरोपीय संघ पर टैरिफ की दर कितनी रहेगी, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।

गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ में बढ़ोतरी करने के बाद से ही पूरी दुनिया में हड़कंप मचा। न सिर्फ दूसरे देश के लोग, बल्कि अमेरिका के नागरिक और नेता भी ट्रम्प के खिलाफ होते दिखे। अमेरिका के 50 राज्यों में ट्रम्प के खिलाफ प्रदर्शन हुए और लोग ट्रम्प की टैरिफ नीति का विरोध करते हुए ‘ट्रम्प-मस्क गो बैक’ के नारे लगाते दिखे। ट्रम्प का विरोध टैरिफ की वजह से हो रही छटनी, अर्थव्यवस्था और मानवाधिकार के मुद्दे पर हो रहा है।

ट्रम्प के खिलाफ सैकड़ों जगहों पर हुआ प्रदर्शन

ट्रम्प के खिलाफ 1200 से अधिक जगहों पर प्रदर्शन हुए। इस दौरान हजारों की संख्या में लोगों को सड़कों पर देखा गया। बीते पांच अप्रैल को ‘हैंड्स आॅफ’ प्रोटेस्ट प्रदर्शन शुरू हुआ था। यह विरोध प्रदर्शन ट्रम्प प्रशासन की नीतियों के खिलाफ था। प्रदर्शन खासकर ट्रम्प के छंटनी और सामूहिक डिपोर्टेशन की नीति के खिलाफ किया गया था। इस दौरान 1400 से अधिक रैलियां प्रदर्शनकारियों ने निकाली। इस प्रोटेस्ट को हैंड्स-आॅन नाम दिया गया था। इस रैली में शामिल होने के लिए 6 लाख लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था। हैंड्स-आॅन का मतलब है- हमारे अधिकारों से दूर रहो। लोगों ने अपने मुंह पर सांकेतिक पट्टी बांध रखी थी। वो सभी न्यूयाॅर्क में स्टैच्यू आॅफ लिबर्टी के अवतार में दिखे। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ट्रम्प का शासन देश को एक खतरनाक दिशा में ले जा रहा है। कई विश्लेषक कह रहे हैं कि यह प्रदर्शन 2020 के ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के बाद ट्रम्प के खिलाफ सबसे बड़ा प्रदर्शन है।

टैरिफ से अमेरिका को क्या नुकसान?

नाराज अमेरिकी और जानकार मानते हैं कि ट्रम्प जो भी कर रहे हैं उसमें अमेरिका का फायदा कम, बल्कि रूस का फायदा ज्यादा है। उनका कहना है कि हमारे राष्ट्रपति दूसरे लोगों के हितों के लिए काम कर रहे हैं। यह टैरिफ हमारे देश को नष्ट करने का एक औजार है। टैरिफ की गणित की बात करें तो अमेरिका ने दूसरे देशों पर टैरिफ लगाया है इसका मतलब उन देशों को अमेरिका में सामान बेचने के लिए सरकार को टैक्स देना होगा। इसकी भरपाई के लिए अमेरिका में विदेशी कंपनियों के सामान महंगे हो जाएंगे। इसका सीधा असर अमेरिकी मिडिल क्लास पर पड़ेगा। अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा सामान आयात करता है। यानी वो काफी हद तक अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है।

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