महिला दिवस पर बधाई की शुरुआत से पहले बात उनके मूल अधिकारों की होनी चाहिए। सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका की लीडर थेरेसा सर्बर मलकाइल ने जब 28 फरवरी 1909 को महिला कर्मचारियों को बराबर वेतन देने के मोर्चे को व्यापक रूप दिया तो दुनिया भर के बुद्धिजीवि समाज के लोंगो ने उन्हें समर्थन दिया। पर उनकी जीत से ही क्या विश्व में स्री विमर्श की सार्थक बहस ख़त्म हो जाती है ? नहीं आज भी लगता है कि बहस तो अभी जैसे शुरू ही नहीं हुई। बराबरी की बात अभी भी कोसों दूर नजर आती है। नोबल पुरुस्कार विजेता को उसकी उपलब्धि के लिए प्रशंसा देने के बजाय हमारा समाज आज भी उन्हें उनके कपड़ों के लिए ट्रोल कर रहे है। हमें आकलन करना होगा कि आज भी महिलाओं को बराबर का दर्जा देने के लिए तैयार है भी या नहीं ?
आज दुनिया भर में महिला अधिकारों के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से अंतररष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। इस बीच पाकिस्तान की नोबेल पुरस्कार विजेता और महिला अधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई का महिला अधिकारों पर लिखी एक पोस्ट चर्चा में है। मलाला ने अपने पोस्ट में लिखा है कि ‘एक महिला बिकिनी पहनना चाहती है या बुर्का, ये पूर्ण रूप से उसका फैसला होना चाहिए।’
मलाला यूसुफजई ने अपने लंबे लेख को इंस्टाग्राम पर शेयर किया है जिसमें वो लिखती हैं कि उनके रिश्तेदार टीवी पर उन्हें देखकर कहते थे कि इसे घर में होना चाहिए, ये बिना चेहरा ढके इंटरव्यू क्यों दे रही है?मलाला यूसुफजई आपने पोस्ट में बताती हैं कि ‘जब मैं 12 वर्ष की थी तब एक रिश्तेदार ने मेरे पिता से शिकायत की कि ये संचार पत्रों के चैनलों पर इंटरव्यू क्यों देती है। मलाला को घर में रहना चाहिए न कि संचार पत्रों के कैमरों के सामने और अगर ये जा ही रही है तो कम से कम अपना चेहरा तो ढक कर रखे। लोग न तो लड़कियों का खुला चेहरा देखना चाहते हैं और न ही उनकी आवाज को सुनना चाहते हैं।’

मलाला, तालिबान का जिक्र करते हुए इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखती हैं कि ‘पाकिस्तान के स्वात घाटी में तालिबान के आने से पहले महिलाएं लंबी मोटी कढ़ाई वाली शॉल पहनती थी। उनकी मां भी ऐसे ही अपने चेहरे को ढकती थीं लेकिन तालिबान के आने के बाद महिलाओं के लिए एक खास ड्रेस कोड बनाया गया जिससे उनके शरीर का कोई हिस्सा कोई व्यक्ति न देख सके। तालिबान ने इस ड्रेस कोड को अनिवार्य कर दिया कि सभी महिलाओं को एक काला अबाया और सिर से पैर तक ढका हुआ बुर्का पहनना होगा। अगर कोई तालिबान के ड्रेस कोड को नहीं मानता है। तो उसे बुरी तरह पीटा जाता था। मैं भी जब 10 या 11 वर्ष की थी तब मैंने कुछ समय के लिए बुर्का पहना था।’
अपने पोस्ट में आगे लिखती है कि,’आज भी लड़कियों को उनके पहनावे को लेकर दबाया जा रहा है’। जैसे ही पाकिस्तान की कोई लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती है, उसका परिवार, पड़ोसी और यहां तक कि अजनबी लोग भी उसे आपत्तिजनक तरीके से देखते हैं। यहाँ एक लड़की का पहनावा ये निर्धारित करता है कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं और उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे। यदि आप एक स्थापित ड्रेस कोड का पालन नहीं करते हैं तो आपको संस्कृति और धर्म के लिए खतरा समझा जाता है और आपको एक बाहरी के तौर पर देखा जाता है।’ मलाला आपने पोस्ट में अपने लिए लिखती है कि ‘उनका चेहरा उनकी पहचान है और इसलिए उन्होंने अपना चेहरा ढकने से इनकार कर दिया था’।
दुनिया के देशों में लड़कियों के पहनावे पर समय-समय पर उठते विवाद को लेकर मलाला ने कहा है कि ‘दुनिया भर में लड़कियां जो पहनती हैं। उसके लिए उन पर हमले हो रहे हैं। पिछले महीने भारत के कर्नाटक में स्कूल और कॉलेजों में लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे उन्हें अपनी शिक्षा और हिजाब में से किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उन्हें सिर ढकने को लेकर अपमान सहना पड़ा था। फ्रांस में सांसदों ने जनवरी 2022 में खेल प्रतियोगिताओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए मतदान किया जिसमे 160 में से 143 सांसदों ने हिजाब पर बैन के लिए मतदान किया था। वही अफगानिस्तान में तालिबान के अधिकारी महिलाओं को काम करने के लिए काला अबाया पहनने की सलाह दे रहे हैं।
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विश्व के हर कोने में महिलाएं और लड़कियां यह समझती हैं कि अगर उन्हें सड़क पर परेशान किया जाता है या उन पर हमला किया जाता है, तो उनके हमलावरों से अधिक मुकदमा उनके कपड़ों पर होने की संभावना रहती है। उन्होंने लिखा, ‘महिलाओं से लगातार कहा जा रहा है कि वे किसी खास तरह के कपड़े पहनें या फिर ये कि वो उन कपड़ों को पहनना बंद कर दें। दुनिया भर में लगातार महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा है। हमें घर पर पीटा जाता है, स्कूल में दंड दिया जाता है और जो हम पहनते हैं, उसके लिए सार्वजनिक रूप से परेशान किया जाता है। वर्षों पहले जब तालिबान ने मेरे समुदाय की महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया था, तब मैंने तालिबान के विरोध में आवाज उठाई थी और पिछले महीने मैंने भारत की लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ विरोध किया ये विरोधाभास नहीं है। दोनों ही मामलों में महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखा जा रहा है। अगर कोई मुझे सिर ढकने के लिए मजबूर करता है तो मैं विरोध करूंगी। अगर कोई मुझे अपना दुपट्टा हटाने के लिए मजबूर करता है, तो भी मैं विरोध करूंगी। बिकिनी या बुर्का- फैसला महिला का होना चाहिए मलाला का कहना है कि एक महिला क्या पहनती है, ये पूर्ण रूप से उसका फैसला है। उन्होंने कहा, ‘चाहे एक महिला बुर्का पहने या बिकिनी- उसे अपने लिए निर्णय लेने का अधिकार है।

गौरतलब है कि कुछ अर्सा पहले मलाला की एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हुई थी जिसमें उन्होंने जींस और जैकेट पहना था। जींस पहनने को लेकर कई लोगों ने मलाला की आलोचना की थी कि ‘वो ऑक्सफोर्ड जाकर इस्लाम की शिक्षा को भूल गई हैं।’ मलाला ने इसे लेकर लिखा, ‘कुछ लोग मुझे पारम्परिक सलवार कमीज से बाहर देखकर चौंक गए थे। उन्होंने मेरी आलोचना की कि मैं पश्चिमी देशों के पहनावे की तरफ मुड़ गई हूं। लोगों ने दावा किया कि मैंने पाकिस्तान और इस्लाम को छोड़ दिया है।’ वही कई लोगों ने कहा कि जींस के साथ मेरा दुपट्टा उत्पीड़न का प्रतीक है और मुझे इसे हटा देना चाहिए।’ मैंने कुछ नहीं कहा, ‘मुझे लगा कि मैं सभी की अपेक्षाओं पर तो खरी नहीं उतर सकती हूँ।’ सच्चाई यह है कि, ‘मुझे अपने स्कार्फ बहुत पसंद हैं। जब मैं उन्हें पहनती हूं तो मैं अपनी संस्कृति के करीब महसूस करती हूं। मुझे अपने फूलों की पैटर्न वाले सलवार- कमीज पसंद हैं। मुझे अपनी जींस भी बहुत पसंद हैऔर मुझे अपने स्कार्फ पर गर्व है।’