इजराइल में कई महीनों से जारी धरना-प्रदर्शनों के बावजूद देश के उच्चतम न्यायालय से जुड़ा विवादास्पद बिल का अहम हिस्सा पास हो गया है। नए कानूनी बदलाव के तहत अब इजराइल में सुप्रीम कोर्ट सरकार के किसी भी फैसले को गलत बताकर खारिज नहीं कर सकेगा। ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है कि इजराइल तानाशाही की ओर बढ़ने लगा है
इजराइल में पिछले सात महीनों से जारी धरना-प्रदर्शनों के बावजूद देश के उच्चतम न्यायालय से जुड़ा विवादास्पद बिल का अहम हिस्सा पास हो गया है। नए कानूनी बदलाव के तहत अब इजराइल में सुप्रीम कोर्ट सरकार के किसी भी फैसले को गलत बताकर खारिज नहीं कर सकेगा। इस विधेयक के पक्ष में जहां 64 वोट पड़े वहीं विपक्ष ने वोटिंग का बहिष्कार किया। इस वजह से विधेयक के विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। यह सरकार का न्यायिक सुधार में पारित होने वाला पहला और प्रमुख विधेयक है। बिल पर वोटिंग के दौरान हजारों इजराइली सड़कों पर प्रदर्शन करते रहे। उनका कहना है कि बेंजामिन नेतन्याहू अब रूसी राष्ट्रपति पुतिन की तरह हो गए हैं। वो देश को तानाशाही की ओर धकेल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस विधेयक को राजनीतिक शक्ति पर न्यायिक अंकुश को रोकने के मकसद से बनाया गया है। ‘ज्यूडीशियल ओवरहॉल बिल’ के खिलाफ देशभर में अभी भी प्रदर्शन जारी हैं।
बिल के विरोध में बीते 25 जुलाई को इजराइल के डॉक्टर्स की मेडिकल एसोसिएशन ने 24 घंटे की हड़ताल का एलान किया था। ‘यरूशलम पोस्ट’ के मुताबिक उनकी हड़ताल पर लेबर कोर्ट ने रोक लगा दी, जिसके बाद डॉक्टर काम पर लौट गए लेकिन प्रदर्शनकारियों को नेतन्याहू के राजनीतिक विरोधियों के साथ ही इजराइली सेना, खुफिया एजेंसियों और सिक्योरिटी सर्विसेज के पूर्व शीर्ष अधिकारियों, पूर्व प्रधान न्यायाधीशों और नामी-गिरामी कानून विदों का समर्थन मिल रहा है। इजराइली सरकार के इस कदम ने कई पक्षों में गहरी चिंता पैदा कर दी है। ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है कि इजराइल तानाशाही की ओर बढ़ने लगा है। आलम यह है कि इजराइल की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण वायु सेना के पायलटों सहित युद्ध के लिए तैयार रखे जाने वाले सैकड़ों सैनिकों ने काम पर आने से मना कर दिया है, जिसके बाद ये खतरा पैदा हो गया है कि इससे देश की सुरक्षा संकट में पड़ सकती है।

आलोचकों का कहना है कि ये सुधार नेतन्याहू को बचाने के लिए किए जा रहे हैं, जिन पर कथित भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकदमा चल रहा है। हालांकि, नेतन्याहू इन आरोपों को खारिज करते हैं। आलोचकों का ये भी दावा है कि न्यायिक व्यवस्था में सुधार लाने वाले कानून से सरकार को कोई भी विधेयक बेरोकटोक पास कराने में मदद होगी। वहीं, सरकार का तर्क है कि न्यायपालिका का विधायिका के काम मे हद से अधिक हस्तक्षेप है। सरकार ये भी कहती है कि उदारवादी मुद्दों पर न्यायपालिका पक्षपाती रवैया अपनाती है और जिस तरह से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है, वह प्रक्रिया अलोकतांत्रिक है। उधर प्रदर्शनों के बीच क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘मॉर्गन स्टेनली’ ने इजराइल की क्रेडिट रेटिंग घटा दी है। वहीं यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन ने कहा है कि इजरायल में न्यायपालिका की आजादी को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। अमेरिका ने कहा है कि लोकतंत्र में बड़े बदलावों के लिए व्यापक सहमति होनी जरूरी है।
विपक्ष ने किया बिल का बहिष्कार
बिल पर मतदान के दौरान विपक्ष के सभी 56 सदस्यों ने इसका बहिष्कार किया। इसके बाद बिल 64-0 मतों से पास हो गया। विपक्ष ने नेतन्याहू को देश की एकता में पड़ी दरार, सेना और अर्थव्यवस्था चौपट होने का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि ऐसे नेता से बात करने का कोई मतलब नहीं है जिसने खुद को रूस के राष्ट्रपति पुतिन जैसा बना लिया हो और देश को तानाशाही की तरफ धकेलने का फैसला ले लिया हो। हम नेतन्याहू से आखिर तक लड़ेंगे ताकि इजराइल एक उदार लोकतंत्र बना रहे।
देश के इतिहास का सबसे दुखद दिन : विपक्ष
संसद में विपक्ष के नेता येर लैपिड ने कहा कि इजराइल के संसदीय इतिहास में 24 जुलाई 2023 एक दुखद दिन के तौर पर याद किया जाएगा। सरकार ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया। हम इस बिल को बहुत जल्द हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। सरकार और उनके सहयोगी ये तो तय कर सकते हैं कि देश को किस रास्ते पर ले जाना है, लेकिन उनको यह तय करने का हक नहीं है कि देश का भविष्य क्या और कैसा होगा। इंसाफ के मामलों से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
गौरतलब है कि इस बिल ने इजराइल को काफी हद तक दो हिस्सों में बांट दिया है। इजराइली सेना की रीढ़ माने जाने वाले रिजर्वविस्ट (सेना को सेवा देने वाले आम नागरिकों) ने कहा है कि वे सेना को अपनी सेवा देने से इनकार कर सकते हैं। इस विधेयक को लेकर कानून विदों और इजराइल की जानकारी रखने वाले जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू सदन में तो जीत गए हैं। लेकिन यह एक ऐसी जीत है जो उन्हें सत्ता के नजदीक तो बनाए रखेगी मगर जनता, समर्थकों, साथियों से उन्हें दूर कर देगी। इजराइल में पिछले सात माह से अनिश्चितता का माहौल था। नेतन्याहू ने उम्मीद जगाई थी कि वे सबकी सहमति से संवैधानिक सुधार लाने का प्रयास करेंगे। लेकिन उम्मीदों पर पानी फिर गया। जनभावनाओं के लिए सम्मान पर सत्ता की भूख भारी पड़ी।
देश की स्थिरता को लेकर चिंता यह है कि इजरायली सेना के हजारों रिजर्व अधिकारियों ने घोषणा की है कि वे ऐच्छिक सेवा के लिए उपलब्ध नहीं रहेंगे। इसके अलावा सामाजिक उथल-पुथल भी हो रही है। डॉक्टर हड़ताल पर चले गए हैं। मजदूर नेताओं ने आम हड़ताल की धमकी दी है। मॉल और दुकानें चलाने वाले एकजुटता दिखाने के लिए अपने प्रतिष्ठानों पर ताला डाले हुए हैं। पहले से ही कई कारोबारी अपना व्यवसाय इजराइल के बाहर ले जा चुके हैं या उसे बंद कर चुके हैं। और जैसे-जैसे अराजकता के हालात गंभीर होते जाएंगे, उथल-पुथल बढ़ेगी और सड़कों पर असहमति दिखाते लोगों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ टकराव, गिरफ्तारियां, हिंसा, शोर-शराबा भी बढ़ेगा। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय संबंध भी बिगड़ेंगे।
इजराइल के सबसे नजदीकी सहयोगी अमेरिका ने संसद के निर्णय को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया है। इससे राष्ट्रपति बाइडन के नेतन्याहू को अमेरिका आने के निमंत्रण को लेकर आशंका उत्पन्न हो गई है। अमेरिका में यहूदी समूहों ने भी इस विधेयक को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए चेतावनी दी है कि इससे इजराइल और अमेरिकी यहूदियों के संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है। वहीं फिलिस्तीनी इस बात से चिंतित हैं कि वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों का इलाका आक्रामक ढंग से बढ़ाया जाएगा, जिसकी कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने खिलाफत की थी। इसके अलावा इजराइल में रह रहे अल्पसंख्यक अरबों में भी भय बढ़ रहा है।
कम हो रहा नेतन्याहू का प्रभाव इस बात में कोई संदेह नहीं कि नेतन्याहू ने देश के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इजराइल की बेहतरी और उसकी छवि सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वे स्वयं को हर
राजनीतिक घटनाक्रम के केंद्र में रखने में सफल रहे हैं, कई बार जिसका सन्देश यह था कि इजराइल और तबाही के बीच वे अकेले खड़े हैं। लेकिन इस घटनाक्रम से वे इजराइल को तबाही के कगार पर ले आए हैं। बिगड़ती सेहत से जूझ रहे 73 वर्षीय नेतन्याहू नेसेट (सदन) आने से पहले पेसमेकर लगवाने के लिए अस्पताल में थे। वे अपने गठबंधन सहयोगियों को मतदान टालने के लिए राजी नहीं कर सके। इससे यह संकेत मिलता है कि उनका प्रभाव कम हो चला है और वे अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता खो चुके हैं। कहना मुश्किल है कि वे गठबंधन के सबसे घोर राष्ट्रवादी और धार्मिक कट्टरपंथी दलों को न्यायिक सुधारों के जरिए और अन्य तरीकों से उनका राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने से रोक सकेंगे। क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले भी चल रहे हैं। दूसरी तरफ प्रदर्शकारी अपनी बात पर अड़े हुए हैं। नेतन्याहू के गठबंधन साथी भी दृढ़ हैं। ऐसे में दोनों के बीच जबरदस्त टकराव तय है जो इजराइल में गर्मी के मौसम को और ज्यादा गर्म और तूफानी बन जाएगा।
- क्या है प्रस्ताव
साल के शुरुआती महीने जनवरी में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को लेकर एक प्रस्ताव जारी किया था। अब इसके पास होने से
इजराइली संसद को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने का अधिकार मिल जाएगा। इसे ‘ओवरराइड’ बिल नाम दिया गया है।
इस बिल के पास होने से संसद में जिसके पास भी बहुमत होगा, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकेगा।
नए बिल से निवार्चित सरकारें जजों की नियुक्ति में दखल दे सकती हैं। इसके पास होने से न्यायपालिका की निष्पक्ष फैसले लेने की पावर कम हो जाएगी।
जजों की नियुक्ति वाली कमेटी में सरकारी प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाकर, सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य अदालतों में न्यायाधीशों को चुनने में सरकार का अहम भूमिका निभाना।
मंत्रियों के लिए अटार्नी जनरल के निर्देशों पर चलने वाले अपने कानूनी सलाहकारों के सुझावों को मानने की बाध्यता खत्म करना।
नेतन्याहू का नया बिल लागू होने से किसी कानून को रद्द करने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की ताकत सीमित हो जाएगी।