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ट्रम्प का ‘बिग, ब्यूटीफुल बिल’ : अमेरिकी सपना या लोकतंत्र पर हमला?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ‘बिग, ब्यूटीफुल बिल’ को लेकर अमेरिका की राजनीति में जबरदस्त खींचतान मची हुई है। बिल में कर कटौती, सीमा सुरक्षा, और मेडिकेड में भारी कटौती जैसे प्रावधान हैं, जिन्हें ट्रम्प अपने MAGA (Make America Great Again) एजेंडा की वैधानिक मुहर मानते हैं। लेकिन ये प्रावधान न केवल रिपब्लिकन पार्टी में मतभेदों को उजागर कर रहे हैं, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था पर भी गम्भीर सवाल उठा रहे हैं। इसके बावजूद व्हाइट हाउस को भरोसा है कि ट्रम्प इस विधेयक को ‘इतिहास का सबसे महान कानून’ घोषित कर पास करा लेंगे

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ‘बिग, ब्यूटीफुल बिल’ ने अमेरिकी संसद और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इसे ट्रम्प प्रशासन द्वारा ‘अमेरिकन ड्रीम को वापस लाने वाला विधेयक’ करार दिया गया है, लेकिन आलोचकों की नजर में यह कानून नहीं, बल्कि एक राजनीतिक स्टंट है जो असमानता, सामाजिक कटौती और अमीरों को फायदा पहुंचाने के इरादे से लाया गया है। इस बिल को ट्रम्प ने MAGA (Make America Great Again) मूवमेंट की ‘‘अंतिम वैधानिक अभिव्यक्ति’’ कहा है। इसमें प्रमुख रूप से करों में कटौती, सीमा सुरक्षा के लिए अतिरिक्त फंडिंग, मेडिकेड और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं में कटौती, प्रवासी लाभों को समाप्त करना और नवजातों के लिए ‘ट्रम्प सेविंग अकाउंट्स’ जैसे प्रावधान शामिल हैं।

व्हाइट हाउस दावा करता है कि इस विधेयक से दो बच्चों वाले एक औसत अमेरिकी परिवार को सालाना 7,600 से 10,900 डाॅलर तक का अतिरिक्त टेक-होम पे मिलेगा, और लगभग 70 लाख नौकरियां उत्पन्न होंगी। ट्रम्प इसे अमेरिका के इतिहास का ‘‘सबसे महत्वपूर्ण कानून’’ घोषित कर चुके हैं, और उनकी योजना इसे अमेरिका के 249वें स्वतंत्रता दिवस से पहले पास कराने की है। लेकिन सीनेट और हाउस दोनों में इस बिल को लेकर भारी मतभेद हैं।

सीनेट में बिल लगातार संशोधित होता जा रहा है ताकि वह बजटीय नियमों के तहत समायोजित हो सके। इसमें कई बड़े प्रावधान जैसे राज्य सरकारों द्वारा मेडिकेड के लिए टैक्स लगाने के अधिकार और सीनेट के पार्लियामेंटेरियन द्वारा खारिज कर दिए गए हैं।

यहां तक कि खुद रिपब्लिकन पार्टी के भीतर कई सांसद इस बिल को लेकर खफा हैं। मिसौरी के सांसद जाॅश हाॅली और मेन की सुसान काॅलिंस जैसे सीनेटरों ने चेतावनी दी है कि अगर यह बिल ग्रामीण अस्पतालों पर असर डालता है या मेडिकेड पर चोट करता है तो वे इसका समर्थन नहीं करेंगे। हाउस स्पीकर माइक जाॅनसन के पास समय बेहद कम है, क्योंकि सीनेट में जैसे-जैसे बदलाव होते हैं, उन्हें बिल को दोबारा हाउस में पास कराना होगा।

रिपब्लिकन पार्टी का एक धड़ा मानता है कि यह बिल, ट्रम्प की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा का प्रतीक है और ‘मागा’ एजेंडा को कानून का रूप देने का अंतिम मौका है। लेकिन कुछ का मानना है कि यदि यह बिल मौजूदा स्वरूप में पास होता है तो 2026 के मध्यावधि चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है क्योंकि मध्यवर्गीय मतदाता, ग्रामीण क्षेत्र, और स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर तबका इसकी कटौती से नाराज हो सकता है। डेमोक्रेट पार्टी फिलहाल इसमें हस्तक्षेप करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन वह दूर से इसका लेखा-जोखा कर रही है ताकि चुनावी समय में इसे ‘गरीबों के खिलाफ अमीरों का बिल’ करार देकर रिपब्लिकन को घेरा जा सके।

क्विनिपियाक यूनिवर्सिटी द्वारा जारी एक जनमत सर्वेक्षण में इस विधेयक को केवल 27 फीसदी समर्थन मिला जबकि 53 प्रतिशत लोगों ने इसका विरोध किया। यह बताता है कि ट्रम्प के ‘मिडल क्लास हीरो’ बनने की कोशिशों के बावजूद आम जनता इस बिल को एकतरफा और असंतुलित मान रही है।

इस विधेयक के पक्ष में ट्रम्प प्रशासन की मुख्य दलील यह है कि यह अमेरिका की सीमाओं को सुरक्षित बनाएगा, रोजगार उत्पन्न करेगा और मंहगाई को नियंत्रित करेगा। लेकिन ट्रम्प की ही पहली टर्म के टैक्स बिल की तरह इसमें भी आंकड़ों के पीछे ‘क्रिएटिव मैथ’ और ‘आशावादी’ जीडीपी अनुमानों का सहारा लिया गया है। सीबीओ यानी कांग्रेसनल बजट ऑफिस का कहना है कि इस बिल से अगले 10 वर्षों में अमेरिका का घाटा 2.4 ट्रिलियन डाॅलर तक बढ़ सकता है।

सीनेट में बहुमत नेता जाॅन थ्यून ने स्वीकार किया कि बिल के पास होने की राह में कई ‘स्पीड बम्प’ हैं, लेकिन उन्होंने साथ ही कहा कि उनके पास प्लान-बी और प्लान-सी भी तैयार हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बिल संसद में जितना बिखरा और भ्रमित दिखता है, उतनी ही तेजी से यह अंतिम क्षणों में पास भी हो सकता है।’’ लेकिन समस्या यह है कि ट्रम्प इस विधेयक को किसी आम बजट बिल की तरह नहीं, बल्कि अपनी दूसरी पारी के निर्णायक अध्याय की तरह पेश कर रहे हैं। इसलिए उनके लिए इसका पास होना बेहद अहम है।

ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में हुई एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में इसे ‘‘हमारे देश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण कानून’’ बताया और कहा कि ‘‘हर कोई इसे कह रहा है, लगभग हर कोई।’’ उन्होंने इस मौके को एक तरह से विजय उत्सव की तरह मनाया और इस दौरान जो बाइडेन, चुनावी धांधली और ट्रांसजेंडर एथलीट्स जैसे अपने पुराने मुद्दों पर भी तंज कसते रहे। ऐसा लगा जैसे उन्हें पूरा यकीन हो कि बिल पहले ही पास हो चुका है।
लेकिन धरातल पर तस्वीर उतनी आसान नहीं है। रिपब्लिकन सांसद एरिक बर्लिसन ने साफ कहा कि ‘‘हमें बिना पढ़े, आखिरी समय में कोई बिल थमाया जाता है, यह वाशिंगटन की पुरानी आदत है। हमें इसकी जरूरत नहीं है।’’ उनका यह बयान साफ करता है कि ट्रम्प की ‘प्रेसर पाॅलिटिक्स’ हर बार की तरह काम नहीं कर रही।

राजनीतिक रूप से ट्रम्प प्रशासन इस विधेयक को अपनी ‘लीगेसी ट्रायफेक्टा’ का हिस्सा बनाना चाहता है, ईरान के परमाणु कार्यक्रम की तबाही, नाटो देशों की रक्षा बजट की 5 प्रतिशत तक की वृद्धि और अब यह विधेयक। इन तीनों को मिलाकर ट्रम्प यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी दूसरी टर्म में उन्होंने अमेरिका को फिर से महान बनाने की दिशा में निर्णायक कदम उठाए हैं। लेकिन आलोचकों का तर्क है कि यह बिल वास्तव में एक ‘धोखे’ का प्रतीक है जो अमीरों के लिए एक और टैक्स तोहफा है, और जिसे मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए ‘भला’ बताकर पेश किया जा रहा है। मिशिगन की डेमोक्रेटिक सीनेटर एलिसा स्लाॅटकिन ने इसके ‘wealth transfer disguised as populism’ कहकर ट्रम्प की नीयत पर सवाल उठाया है। अगर यह बिल पास हो भी गया, तो भी यह कई मायनों में एक अस्थायी जीत होगी। न केवल यह अमेरिका को और अधिक कर्ज में डालेगा, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधा की रीढ़ को भी कमजोर करेगा। यदि यह विधेयक समय रहते पास नहीं होता तो ट्रम्प की ‘साइनेचर सेरेमनी’ खटाई में पड़ सकती है।

ट्रम्प का यह ‘बिग, ब्यूटीफुल बिल’ इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह एक नेता की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और एक देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है। यह बिल दिखाता है कि अमेरिका जैसे लोकतंत्र में भी जब शक्ति केंद्रित हो जाए और संसदीय प्रक्रियाओं को ‘रोक’ कहकर नजरअंदाज किया जाने लगा तो परिणाम कितने जटिल और दूरगामी हो सकते हैं।

इसका क्या हश्र होगा, यह आने वाले कुछ ही दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन एक बात तय है कि चाहे यह बिल कानून बने या नहीं, ट्रम्प इसे अपने एजेंडे की अंतिम वैधानिक मोहर की तरह जनता के सामने पेश कर ही देंगे। यही वह बिंदु है जहां राजनीति और सच्चाई के बीच की खाई अमेरिका को एक बार फिर गहराई से सोचने पर मजबूर करेगी।

निर्णायक मोड़ पर व्यापार डील

गत् 1 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दिया गया एक बयान वैश्विक व्यापार जगत और कूटनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। ट्रम्प ने कहा है कि अमेरिका और भारत ‘‘बहुत जल्द एक बड़ी डील’’ के करीब हैं, जिसमें ‘‘बहुत कम टैरिफ’’ होंगे। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भारत इस बार अमेरिकी कम्पनियों के लिए अपने बाजार के दरवाजे खोलने को तैयार है।

यह बयान ऐसे समय आया है जब दोनों देशों के बीच एक अंतरिम व्यापार समझौते (Interim Trade Deal) को लेकर अंतिम दौर की वार्ता चल रही है। इस डील की समयसीमा 9 जुलाई 2025 तय की गई है, जिसके बाद अमेरिका द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगाए जा सकते हैं। ऐसे में समझौता दोनों देशों के लिए न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। फ्लोरिडा की एक यात्रा से लौटते समय ट्रम्प ने एयर फोर्स वन में पत्रकारों से कहा- ‘‘भारत किसी को भी अपने यहां घुसने नहीं देता। लेकिन मुझे लगता है कि अब भारत ऐसा करेगा। हम एक ऐसा समझौता करने जा रहे हैं जिसमें शुल्क बहुत कम होंगे।’’

इसके बाद अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्काॅट बेसेंट ने ‘ फाॅक्स न्यूज’ पर कहा कि ‘‘हम भारत के साथ व्यापार को लेकर बहुत करीब हैं।’’

इन बयानों से यह साफ हो गया है कि भारत-अमेरिका व्यापार डील की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और समझौते की घोषणा कभी भी हो सकती है। यह समझौता एक सीमित क्षेत्रीय करार होगा जो आगे चलकर एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते की नींव रखेगा। अमेरिका यह चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी क्षेत्र को भी आंशिक रूप से खोले, लेकिन भारत ने इसे फिलहाल ‘‘रेड लाइन’’ के अंतर्गत रखा है।

राष्ट्रपति ट्रम्प चुनाव में दोबारा निर्वाचित होकर 2025 में पदभार सम्भाल चुके हैं। अपनी ‘अमेरिका फस्र्ट’ नीति के तहत वे ऐसे व्यापारिक समझौते करना चाहते हैं जो घरेलू उद्योगों को लाभ दें। भारत जैसे बड़े बाजार के साथ समझौता ट्रम्प के लिए एक कूटनीतिक और आर्थिक उपलब्धि मानी जा रही है। दूसरी ओर, भारत के लिए यह समझौता अमेरिका से व्यापारिक भरोसा और निवेश को प्रोत्साहन देने का अवसर हो सकता है, बशर्ते घरेलू हितों से समझौता न हो। भारत में इस वर्ष दो राज्यों में और इसके बाद लगातार कई राज्यों में विधानसभा और फिर 2029 में आम चुनाव होने हैं। अतः वर्तमान सरकार फिलहाल किसी ऐसे अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक निर्णय से बचेगी, जिससे घरेलू किसान, व्यापारी वर्ग या मिडिल क्लास के हितों को नुकसान पहुंचे। टैरिफ की तलवार और यदि 9 जुलाई तक समझौता नहीं होता है तो अमेरिका द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगाया जा सकता है। इससे टेक्सटाइल, केमिकल्स, ऑटो और इलेक्ट्राॅनिक्स जैसे क्षेत्रों को झटका लग सकता है। यही कारण है कि भारतीय वाणिज्य मंत्रालय पूरी तरह सक्रिय है और वार्ता के अंतिम चरण वाशिंगटन में चल रहे हैं।

चीन की छाया और रणनीतिक समीकरण

भारत-अमेरिका व्यापार सम्बंध केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण हैं। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलअंदाजी के चलते अमेरिका भारत को एक भरोसेमंद रणनीतिक सहयोगी मानता है। ट्रम्प-मोदी समीकरण, जो पहले भी वैश्विक मंचों पर दिखाई दिया है, इस बार एक ठोस व्यापारिक आधार बनाकर सामने आ सकता है। भारतीय शेयर बाजारों ने ट्रम्प के बयान के बाद सतर्क रुख अपनाया। निफ्टी और सेंसेक्स में हल्की गिरावट देखी गई, लेकिन अमेरिकी डाॅलर के मुकाबले रुपए में स्थिरता रही। व्यापारिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि डील होती है तो निवेश, तकनीकी सहयोग और ऊर्जा क्षेत्र में भारत को बड़ा लाभ मिल सकता है।

कुल मिलाकर राष्ट्रपति ट्रम्प के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत और अमेरिका अब केवल वार्ताओं की नहीं, निर्णय की दहलीज पर खड़े हैं। दोनों देशों के हित, सामरिक समीकरण और वैश्विक दृष्टिकोण इस डील को एक ऐतिहासिक मोड़ दे सकते हैं। समझौता यदि होता है तो यह ट्रम्प के लिए एक कूटनीतिक उपलब्धि होगी और भारत के लिए एक आर्थिक अवसर, बशर्ते देश की कृषि, रोजगार और
सामाजिक संरचना की कीमत पर न हो।

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