रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए अब तक के सबसे बड़े हवाई हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्लादिमीर पुतिन को ‘पूरी तरह पागल’ बताते हुए पहली बार खुलकर उनकी आलोचना की है। इस बयान ने वैश्विक कूटनीति, अमेरिका की भूमिका और युद्ध के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह शांति की शुरुआत है या तीसरे विश्व युद्ध की आहट?
“He has gone absolutely CRAZY”
(वह पूरी तरह पागल हो चुका है) – डोनाल्ड ट्रम्प
रूस-यूक्रेन युद्ध की आग जो फरवरी 2022 में भड़की थी, अब एक वैश्विक ज्वालामुखी बन चुकी है। इस संघर्ष ने न केवल भू-राजनीतिक संतुलन को झकझोरा है, बल्कि वैश्विक नेतृत्व की नैतिकता को भी कठघरे में खड़ा किया है। 24-25 मई 2025 को रूस द्वारा किए गए सबसे बड़े हवाई हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहली बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को तीखे शब्दों में लताड़ते हुए कहा- “Something has happened to him- He has gone absolutely CRAZY” इस बयान ने अमेरिकी विदेश नीति की एक नई दिशा की सम्भावना तो दिखाई, लेकिन साथ ही यह भी उजागर किया कि अमेरिका, यूरोप और संयुक्त राष्ट्र, सब मिलकर भी इस युद्ध को थामने में अब तक असफल रहे हैं।
यूक्रेन और रूस का यह टकराव नई बात नहीं है। 2014 में क्रीमिया के अधिग्रहण से शुरू हुआ यह विवाद धीरे-धीरे एक पूर्ण युद्ध में बदल गया। 2022 में रूस की पूर्ण पैमाने पर आक्रमण योजना ने न केवल यूक्रेन की सम्प्रभुता को चुनौती दी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों को भी ठेंगा दिखाया। रूस का यह दावा कि ‘वह नाजी तत्वों को खत्म कर रहा है, अब पूरी तरह झूठा साबित हुआ है। यूक्रेन के यहूदी राष्ट्रपति वोलोडिमिट जेलेंस्की की अगुवाई में देश ने असाधारण साहस और दृढ़ता का परिचय दिया। लेकिन तीन सालों में युद्ध ने लाखों घर उजाड़े, हजारों मासूमों की जान ली और यूक्रेन की सांस्कृतिक व भौतिक धरोहर को राख कर दिया।’
पुतिन की सत्ता : एक साम्राज्यवादी स्वप्न या भीतर का डर?
व्लादिमीर पुतिन को समझना आसान नहीं है। एक पूर्व केजीबी एजेंट से लेकर रूस के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति बनने तक की उनकी यात्रा में राष्ट्रीय गौरव और नियंत्रण की भूख दोनों शामिल हैं। लेकिन हालिया घटनाएं एक अलग तस्वीर पेश कर रही हैं।
रूसी संसद में भी अब सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी नेता ऐलेक्सी नवलनी की मृत्यु और हजारों की गिरफ्तारी के बावजूद मास्को, सेंट पीटर्सबर्ग और व्लादिवोस्तोक में युद्ध-विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं। रूसी युवाओं में युद्ध से मोहभंग साफ है, सैनिकों की असंतोषजनक स्थिति और भारी हताहत संख्याएं इसका प्रमाण हैं। पुतिन की लगातार सैन्य विफलताएं और अंतरराष्ट्रीय अलगाव ने उन्हें और अधिक आक्रामक बना दिया है। हालिया ‘बफर जोन’ की घोषणा इसका प्रमाण है – यह किसी रक्षा की योजना नहीं, बल्कि एक अनियंत्रित विस्तारवादी नीति का संकेत है।
ट्रम्प की नीति : बयानबाजी या रणनीति?
डोनाल्ड ट्रम्प हमेशा से विवादों के केंद्र रहे हैं। उन्होंने अतीत में पुतिन को ‘एक महान नेता’ बताया था, लेकिन अब उन्हीं पर यह कहना कि”He is killing a lot of people for no reason” – उनके राजनीतिक स्टैंड में भारी बदलाव को दर्शाता है। ट्रम्प ने एक ओर यह दावा किया कि वे रूस और यूक्रेन के बीच 30-दिन का संघर्ष विराम करवाने की दिशा में काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जेलेंस्की पर टिप्पणी कर दी कि “Everything out of his mouth causes problems.” यह विरोधाभास ट्रम्प की नीति को अस्थिर और स्वार्थपूर्ण बनाता है।
यूक्रेन की जनता इस युद्ध में केवल शिकार नहीं, एक प्रेरणा भी बन चुकी है। बुजुर्ग महिलाएं हथियारों की ट्रेनिंग ले रही हैं, छात्र जेनरेटर के नीचे पढ़ाई कर रहे हैं और आम नागरिक सेना को खाना, दवाइयां और ड्रोन पहुंचा रहे हैं। ल्वीव, खारकीव और ओडेसा जैसे शहरों में सामूहिक रसोई, भूमिगत स्कूल और मोबाइल क्लीनिक युद्ध के बीच जीवन की जिजीविषा के प्रतीक हैं। वहीं, यूक्रेन की आर्किटेक्ट्स, इंजीनियर्स और इतिहासकार ‘पुनर्निर्माण दस्तावेजीकरण’ पर काम कर रहे हैं ताकि युद्ध के बाद सांस्कृतिक धरोहरों को फिर से जीवित किया जा सके।
चीन, भारत और वैश्विक दक्षिण: ‘तटस्थता’ की चुनौती
इस युद्ध पर चीन और भारत की स्थिति भी वैश्विक समीकरण में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। चीन ने सार्वजनिक रूप से रूस की निंदा नहीं की, लेकिन उसके व्यवहार में छिपी कूटनीतिक सतर्कता दिखती रही है। वहीं भारत, जो रूस का पुराना रक्षा सहयोगी रहा है, इस युद्ध में ‘शांति की अपील’ करता रहा, लेकिन स्पष्ट निंदा से बचता रहा। ‘वैश्विक दक्षिण’ के कई देश, विशेषकर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका, यूक्रेन युद्ध को
अमेरिका और रूस की शक्ति राजनीति का हिस्सा मानते हैं। उनके लिए यह युद्ध कहीं न कहीं उपनिवेशवाद और नव-साम्राज्यवाद की लकीरें खींचता है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों की भूमिका : संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद बार-बार रूसी वीटो के कारण पंगु साबित हुई है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने युद्ध पर ‘गम्भीर चिंता’ तो जताई, लेकिन प्रभावी हस्तक्षेप नहीं हो सका। मानवाधिकार आयोग की रिपोर्टों में रूसी युद्ध अपराधों के दस्तावेज हैं जिनमें स्कूल, अस्पताल, आवासीय इलाकों पर हमले, नागरिकों की यातनाएं और सामूहिक कब्रों की खोज शामिल है। वेटिकन सिटी और पोप फ्रांसिस ने युद्धविराम की लगातार अपील की है, लेकिन पुतिन ने उन्हें ‘धार्मिक हस्तक्षेप’ कहकर खारिज किया।
अमेरिकी संसद, मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया
अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेट और कुछ रिपब्लिकन सांसद यूक्रेन को सीधे रक्षा सहायता देने की बात कर रहे हैं। CNN, NYT, WP जैसे मीडिया संस्थानों ने रूस के हमलों की भयानक तस्वीरें प्रकाशित कीं, जिनमें बच्चों की लाशें, जलते अस्पताल और सिसकती माताएं शामिल हैं। लेकिन अमेरिकी समाज में भी थकान है – ‘यूक्रेन फंडिंग’ को लेकर टैक्सपेयर्स की नाराजगी, महंगाई और आंतरिक मुद्दों पर ध्यान देने की मांग बढ़ रही है। ट्रम्प इस भावना को भुनाना चाहते हैं, लेकिन वैश्विक जिम्मेदारियों से भी मुंह नहीं मोड़ सकते।
क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की पूर्व भूमिका है?
कई विश्लेषकों ने आशंका जताई है कि यदि यह युद्ध इसी तरह आगे बढ़ता रहा, तो यह नाटो और रूस के सीधे टकराव में बदल सकता है, जो तीसरे विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त करेगा। रूस द्वारा परमाणु हमले की धमकी और पश्चिमी देशों की सैन्य प्रतिक्रियाओं ने पहले ही यह संकेत दे दिए हैं कि यह युद्ध केवल क्षेत्रीय नहीं, वैश्विक संकट बन चुका है। युद्ध के बाद की दुनिया कैसी होगी – यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आज के नेता कितनी नैतिकता, दृष्टि और साहस के साथ निर्णय लेते हैं क्योंकि यूक्रेन की राख से केवल पुनर्निर्माण नहीं, बल्कि एक नए वैश्विक नैतिक अनुबंध की नींव भी उठनी चाहिए।