भारत-बांग्लादेश के सम्बंधों का ऐतिहासिक महत्व न केवल दक्षिण एशिया में सामरिक स्थिरता को प्रभावित करता है, बल्कि दोनों देशों की आंतरिक राजनीति और आर्थिक नीतियों पर भी व्यापक असर डालता है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत की निर्णायक भूमिका ने इन सम्बंधों को एक नई दिशा दी थी, लेकिन वर्तमान में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की वापसी और व्यापारिक प्रतिबंधों को लेकर उत्पन्न तनाव ने द्विपक्षीय सम्बंधों में खटास पैदा कर दी है
वर्ष 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष के दौरान भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। युद्ध के बाद भारत और बांग्लादेश ने 25 वर्षीय मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसने दोनों देशों के व्यापार, सामाजिक और सांस्कृतिक सम्बंधों को प्रगाढ़ बनाया। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच सीमावर्ती व्यापार और आवागमन का सिलसिला जारी रहा। भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या को लेकर लम्बे समय से विवाद चल रहा है। असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की बड़ी संख्या को देखते हुए, भारत ने ‘पुश-बैक’ नीति को लागू करना शुरू किया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने इस नीति की पुष्टि की है।
बांग्लादेश सरकार ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है। बांग्लादेश के गृह मामलों के सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद जहांगीर आलम चैधरी ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है। उनका कहना है कि भारत को कानूनी प्रक्रिया के तहत इन नागरिकों को वापस भेजना चाहिए, न कि जबरन सीमा पार धकेलना चाहिए।

इस बीच चीन और बांग्लादेश के मध्य प्रगाढ़ हो रहे रिश्तों ने भारत- बांगलादेश के व्यापारिक सम्बंधों में भी तनाव गहरा दिया है। हाल ही में भारत ने बांग्लादेश को मिलने वाली कुछ व्यापारिक सुविधाओं पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें आयात निर्यात शामिल है। इससे बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। ढाका स्थित व्यापारिक संगठनों ने इसे भारतीय कूटनीति का दबाव बताया है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठ को सुरक्षा की दृष्टि से बड़ा खतरा माना जा रहा है। असम, त्रिपुरा, गुजरात और राजस्थान में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की धर-पकड़ तेज कर दी गई है। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और स्थानीय पुलिस ने इस दिशा में कड़े कदम उठाए हैं। इस तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक स्तर पर संवाद की आवश्यकता है। भारत और बांग्लादेश के बीच गहराते मतभेदों को हल करने के लिए द्विपक्षीय वार्ता ही एकमात्र समाधान है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझौतों का पालन भी सुनिश्चित करना होगा।
भारत और बांग्लादेश के बीच अवैध नागरिकों की वापसी और व्यापारिक पाबंदियों को लेकर चल रहा यह विवाद केवल द्विपक्षीय सम्बंधों को ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है। समय की आवश्यकता है कि दोनों देश कूटनीतिक समझदारी से इन मुद्दों का समाधान निकालें ताकि दक्षिण एशिया में स्थिरता और विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके।